पूर्णिया: आमतौर पर बाढ़ और जलजमाव को मिथिलांचल, कोसी और सीमांचल के बाकी जिलों की तरह ही जिले के लिए अभिशाप माना जाता है. हालाकि बीते कुछ सालों में परंपरागत खेती से होने वाले नुकसान के बाद मखाने की खेती का ट्रेंड बढ़ा है. बाढ़ की मार व परंपरागत खेती के भारी नुकसान के बाद जलजमाव से जल का सदुपयोग कर मखाना संग मछली पालन की तकनीक अपनाकर किसान ढाई गुना मुनाफा कमा रहे हैं.
दरअसल ईटीवी भारत से खास बातचीत में मखाना मैन के नाम से मशहूर भोला पासवान शास्त्री कृषि महाविद्यालय के मखाना वैज्ञानिक डॉ अनिल कुमार कहते हैं कि सीमांचल में 2 लाख हेक्टेयर से अधिक जलजमाव वाली भूमि है. लिहाजा वैज्ञानिक विधि से मखाने की खेती करके किसान दोहरा मुनाफा कमा सकते हैं.
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धनवान बनाएगा मखाना संग मछली उत्पादन
ईटीवी भारत से बात करते हुए मखाना वैज्ञानिक अनिल कुमार कहते हैं मखाना ऐसा एकलौता फसल है जिससे सीमित खेत से आमद को चौगुना किया जा सकता है. इसकी दो पद्धतियां हैं. जिनमें से एक तालाब पद्धति है. तो वहीं दूसरी खेत पद्धति है.
खेत पद्धति में मखाना की खेती के लिए एक हेक्टेयर में 30 किलोग्राम मखाना के बीज को तैयार किया जाता है. जो 65 -70 दिन की अवधि में पौधा का रूप ले लेता है. वहीं इसकी दो उन्नतिशील प्रजाति हैं, जो बिहार कृषि विश्वविद्यालय सबौर से विकसित की गई है. लिहाजा इसकी उत्पादन क्षमता करीब 35 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. जबकि औसत उपज वाली आम प्रजातियों की महज 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.
मखाना प्रबंधन के मूल मंत्र
वहीं बिहार सरकार के ज्ञान निदेशालय द्वारा भोला पासवान शास्त्री कृषि महाविद्यालय कैंपस से उत्पादित कराए जा रहे बीज को तय सरकारी मूल्य पर प्राप्त किया जा सकता है. वहीं पौधशाला तैयार करने के लिए ठीक धान की खेत की तरह कीचड़ बनाने की जरूरत होती है. जिसके बाद एक हेक्टेयर में 500-600 वर्ग मीटर के लिए 30 किलोग्राम बीज का प्रयोग किया जाता है. वहीं दिसंबर महीने में बीज की बुलाई होती है. जिसके बाद 65-70 दिन के बाद फरवरी के आखिरी सप्ताह और मार्च के पहले सप्ताह में बीज से विकसित पौध की रोपाई की जाती है. जिसे एक से डेढ़ मीटर की दूरी पर लगाना होता है.
मखाना संग मछली उत्पादन कर किसान बढ़ा रहे आमदनी
वहीं तालाब पद्धति में तालाब क्षेत्रफल के मध्य भाग 1/10 भाग खाली छोड़ना होता है. जिसमें रेहु ,कतला और मृगल जैसी मछलियों का पालन किया जा सकता हैं. एक हेक्टेयर मखाने की खेती में 90 हजार का औसतन खर्च आता है. जिससे 30 क्विंटल गुर्री प्राप्त होता है. लिहाजा प्रति क्विंटल 10 हजार रुपये की भी प्राप्ति हुई तो 3 लाख का मुनाफा महज मखाने से उठाया जा सकता है. वहीं, मछली पालन से 2 लाख तक का मुनाफा कमाया जा सकता है.
ढाई गुना मुनाफा कमा रहे किसान
कृषि महाविद्यालय की पहल के बाद करीब 2 एकड़ जमीन में मखाने की खेती करने वाले किसान रामस्वरूप महतो बताते हैं कि इससे पूर्व वे अपने वाहनों को भाड़े पर चलवाया करते थे. मगर इसमें हो रहे नुकसान के बाद खराब पड़ी जलजमाव वाली भूमि पर कृषि महाविद्यालय की पहल पर उन्होंने मछली संग मखाना उत्पादन शुरू किया. बीते दो वर्षों से वे लागत से ढाई गुना अधिक मुनाफा कमा रहे हैं.
अब 'वेस्ट लैंड' बन रही 'बेस्ट लैंड'
ईटीवी भारत से खास बातचीत में कृषि महाविद्यालय के कुलपति डॉ पारसनाथ कहते हैं कि सीमांचल, कोसी और मिथिलांचल बाढ़ प्रभावित इलाके हैं। जहां सालभर ही जलजमाव के कारण हजारों एकड़ जमीन वेस्ट पड़ी रहती हैं. हालांकि कृषि विश्वविद्यालय सबौर, मखाना अनुसंधान केंद्र दरभंगा और कृषि महाविद्यालय पूर्णिया की पहल से बेहद तेजी से किसानों ने वेस्ट लैंड का सदुपयोग करते हुए मखाने की खेती शुरू की है। जिससे उनकी आमदनी व जीवन स्तर काफी बदलाव आया है.