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पूर्णिया: मृत्यु भोज का बहिष्कार कर समाज की कर रहे हैं सेवा, जानिए क्या है मामला

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Published : Feb 9, 2020, 9:55 AM IST

इन भाईयों ने मिसाल कायम करते हुए मत्यु भोज पर लाखों रुपए खर्च करने के बजाए इन्हीं 10 लाख रुपयों से एक शव वाहन खरीदकर गरीबों की सेवा के लिए दान किया है.

यादव परिवार
यादव परिवार

पूर्णिया: जिले से एक अनोखा मामला सामने आया है. सदियों से चलती आ रही मृत्यु भोज की परंपरा का लोगों ने बहिष्कार कर उस पैसे से समाज की सेवा करना शुरू कर दिया है. पूर्णिया के तिनपनिया गांव के वार्ड नंबर तीन में रहने वाले यादव परिवार ने हमेशा के लिए हिन्दू धर्म में चली आ रही मृत्यु भोज की परंपरा से किनारा कर लिया है.

दरअसल, हिन्दू रिवाजों में चली आ रही भोज की परंपरा को दरकिनार करते हुए उन पैसों से समाज की सेवा करने के लिए यादव परिवार के दो भाईयों ने अहम फैसला लिया है. इतना ही नहीं इन भाईयों ने मिसाल कायम करते हुए मत्यु भोज पर लाखों रुपये खर्च करने के बजाए. इन्हीं 10 लाख रुपयों से एक शव वाहन खरीदकर गरीबों की सेवा के लिए दान किया है. लिहाजा एक ओर जहां दो भाईयों के इस फैसले की हर ओर चर्चा हो रही है वहीं, समाज का एक बड़ा तबका इस प्रयास में अपनी सहमति दिखा रहा है.

पूर्णिया से ईटीवी भारत की रिपोर्ट

दो भाईयों ने किया मृत्यु भोज का बहिष्कार
यादव परिवार के बड़े बेटे गोपाल यादव कहते हैं कि बीते 12 दिन पहले उनके पिता जी का देहांत हो गया था. लिहाजा हिंदू रीति-रिवाजों के तहत सभी परंपराएं और कर्म कांडों को पूरा किया गया. उन्होंने कहा कि इसी क्रम में उनके जहन में मृत्यु उपरांत सामूहिक तौर पर गांव में कराए जाने वाली मृत्यु भोज की परंपरा को एक सामाजिक कुरीति मानते हुए इसके बहिष्कार का साहसिक निर्णय लिया. साथ ही उन्होंने उसी पैसे के कुछ हिस्सों से लोगों के लिए शव वाहन का दान करना उचित समझा. जिससे लाचार लोगों की परेशानी नहीं बढ़े.

10 लाख का शव वाहन किया दान
यादव परिवार के छोटे बेटे मिट्ठू यादव बताते हैं कि इस बात की सहमति के बाद दोनों भाईयों ने परिवार के साथ बैठकर मृत्यु भोज पर लाखों रुपए से शव वाहन खरीदा गया. उन्होंने कहा कि इस शव वाहन से गरीब लोगों को काफी सहूलियत होगी, खासरकर जो आर्थिक रुप से कमजोर हैं. उन्होंने कहा कि शव वाहन के लिए 10 लाख की राशि ली गई.

purnea
यादव परिवार के सदस्य

अनूठे प्रयास को मिल रहा लोगों का समर्थन
वहीं, स्थानीय लोग दोनों भाईयों के इस फैसले की तारीफ करते नहीं थक रहे. स्थानीय निवासी पंचानंद ने कहा कि यह रिवाज वर्षों पहले कैसे बनी उन्हें मालूम नहीं. मगर इसको खत्म करने के लिए किया गया प्रयास बेहद सराहनीय है. उन्होंने ये भी कहा कि इन भाईयों के प्रयास के बाद समाज का एक बड़ा तबका मृत्यु भोज के विरोध में आगे आ रहा है. हालांकि, कई लोगों ने मृत्यु भोज के बहिष्कार के लिए शपथ लिया कि मृत्यु भोज पर खर्च होने वाले रुपयों से गरीबों की मदद की जाए.

पूर्णिया: जिले से एक अनोखा मामला सामने आया है. सदियों से चलती आ रही मृत्यु भोज की परंपरा का लोगों ने बहिष्कार कर उस पैसे से समाज की सेवा करना शुरू कर दिया है. पूर्णिया के तिनपनिया गांव के वार्ड नंबर तीन में रहने वाले यादव परिवार ने हमेशा के लिए हिन्दू धर्म में चली आ रही मृत्यु भोज की परंपरा से किनारा कर लिया है.

दरअसल, हिन्दू रिवाजों में चली आ रही भोज की परंपरा को दरकिनार करते हुए उन पैसों से समाज की सेवा करने के लिए यादव परिवार के दो भाईयों ने अहम फैसला लिया है. इतना ही नहीं इन भाईयों ने मिसाल कायम करते हुए मत्यु भोज पर लाखों रुपये खर्च करने के बजाए. इन्हीं 10 लाख रुपयों से एक शव वाहन खरीदकर गरीबों की सेवा के लिए दान किया है. लिहाजा एक ओर जहां दो भाईयों के इस फैसले की हर ओर चर्चा हो रही है वहीं, समाज का एक बड़ा तबका इस प्रयास में अपनी सहमति दिखा रहा है.

पूर्णिया से ईटीवी भारत की रिपोर्ट

दो भाईयों ने किया मृत्यु भोज का बहिष्कार
यादव परिवार के बड़े बेटे गोपाल यादव कहते हैं कि बीते 12 दिन पहले उनके पिता जी का देहांत हो गया था. लिहाजा हिंदू रीति-रिवाजों के तहत सभी परंपराएं और कर्म कांडों को पूरा किया गया. उन्होंने कहा कि इसी क्रम में उनके जहन में मृत्यु उपरांत सामूहिक तौर पर गांव में कराए जाने वाली मृत्यु भोज की परंपरा को एक सामाजिक कुरीति मानते हुए इसके बहिष्कार का साहसिक निर्णय लिया. साथ ही उन्होंने उसी पैसे के कुछ हिस्सों से लोगों के लिए शव वाहन का दान करना उचित समझा. जिससे लाचार लोगों की परेशानी नहीं बढ़े.

10 लाख का शव वाहन किया दान
यादव परिवार के छोटे बेटे मिट्ठू यादव बताते हैं कि इस बात की सहमति के बाद दोनों भाईयों ने परिवार के साथ बैठकर मृत्यु भोज पर लाखों रुपए से शव वाहन खरीदा गया. उन्होंने कहा कि इस शव वाहन से गरीब लोगों को काफी सहूलियत होगी, खासरकर जो आर्थिक रुप से कमजोर हैं. उन्होंने कहा कि शव वाहन के लिए 10 लाख की राशि ली गई.

purnea
यादव परिवार के सदस्य

अनूठे प्रयास को मिल रहा लोगों का समर्थन
वहीं, स्थानीय लोग दोनों भाईयों के इस फैसले की तारीफ करते नहीं थक रहे. स्थानीय निवासी पंचानंद ने कहा कि यह रिवाज वर्षों पहले कैसे बनी उन्हें मालूम नहीं. मगर इसको खत्म करने के लिए किया गया प्रयास बेहद सराहनीय है. उन्होंने ये भी कहा कि इन भाईयों के प्रयास के बाद समाज का एक बड़ा तबका मृत्यु भोज के विरोध में आगे आ रहा है. हालांकि, कई लोगों ने मृत्यु भोज के बहिष्कार के लिए शपथ लिया कि मृत्यु भोज पर खर्च होने वाले रुपयों से गरीबों की मदद की जाए.

Intro:आकाश कुमार (पूर्णिया)
special report ।

जिले में दो भाइयों ने सदियों से चली आ रही मृत्यु भोज की परंपरा का बहिष्कार किया है। जिसके बाद कसबा प्रखंड
स्थित तिनपनिया गांव में रहने वाले यादव परिवार ने हमेशा के लिए हिन्दू धर्म मे चली आ रही इस परंपरा से किनारा कर लिया है। इतना ही नहीं इन भाईयों ने मिसाल कायम करते हुए मत्यु भोज पर लाखों रुपए खर्च करने के बजाए इन्हीं 10 लाख रुपयों से एक शव वाहन खरीदकर गरीबों की सेवा के लिए दान किया है। लिहाजा एक ओर जहां दो भाइयों के इस फैसले की हर ओर चर्चा है। वहीं समाज का एक बड़ा तबका इस प्रयास में अपनी सहमति के साथ खड़ा नजर आ रहा है।




Body:तिनपनिया गांव में टूटी मृत्यु भोज की सदियों पुरानी परंपरा ...

दरअसल जैसे-जैसे जिले के लोगों के बीच कसबा प्रखंड स्थित तिनपनिया गांव के वार्ड 3 में रहने वाले दो भाइयों के प्रयासों की खबर पहुंच रही है। वे आगे आकर अपना समर्थन देते हुए सदियों से चली आ रही मृत्यु भोज की परंपरा के बहिष्कार की शपथ ले रहे हैं।



दो भाइयों ने किया मृत्यु भोज का बहिष्कार...


यादव परिवार के बड़े बेटे गोपाल यादव कहते हैं कि बीते 12 दिन पहले उनके पिता जी का देहांत हो गया था। लिहाजा हिंदू रीति-रिवाजों के तहत सभी परंपराएं व कर्म कांडों को पूरा किया गया। इसी क्रम में उनके जहन में मृत्यु उपरांत सामूहिक तौर पर गांव में कराए जाने वाली मृत्यु भोज की परंपरा को एक सामाजिक कुरीति मानते हुए इसके बहिष्कार का साहसिक निर्णय लिया । जिसके बाद उन्होंने यह बात अपने छोटे भाई से साझा की। जिसके बाद दोनों भाइयों को परिवार के अन्य सदस्यों की सहमति हासिल हुई।



10 लाख का शव वाहन दान कर कायम किया मिसाल...


यादव परिवार के छोटे बेटे मिट्ठू यादव बताते हैं कि सहमति के बाद दोनों भाइयों ने परिवार के साथ बैठकर मृत्यु भोज पर लाखों रुपए खर्च करने के बजाय मृत्यु उपरांत सामूहिक भोज की परंपरा को तोड़ इन पैसों से समाज कि सेवा में काम आने वाली शव वाहन खरीदने का निर्णय लिया। इस तरह 10 लाख की राशि से शव वाहन खरीदी गई जो समाज में रहने वाले आर्थिक रूप से गरीब लोगों को अपनी सेवा देगी। ऐसा करने के पीछे हमारा मकसद सदियों से चली आ रही इस कुरीति को पूरी तरह खत्म करना है, ताकि गरीबों को मृत्यु भोज के दबाव में लाखों का कर्ज न लेना पड़े। अपनों को खोना बेहद दुखद होता है। ऐसे में परंपरा के नाम पर कुरीति की खोखकी प्रथा को कायम रखने के लिए लाखों का कर्ज लेना और उसे चुकाने में अपनी आधी जिंदगी झोंक देना अपने आप में एक त्रासदी जैसा है।



अनूठे प्रयास को मिल रहा लोगों का समर्थन...


वहीं स्थानीय दोनों भाइयों के इस फैसले की तारीफ करते नहीं थक रहे। स्थानीय कहते हैं कि यह कुरीति वर्षों पहले कैसे बनी उन्हें मालूम नहीं। मगर इस कुरीति को खत्म करने के लिए किया गया प्रयास बेहद सराहनीय है। इन भाइयों के प्रयास के बाद समाज का एक बड़ा तबका मृत्यु भोज के विरोध में आगे आ रहा है। कई लोगों ने मृत्यु भोज के बहिष्कार के लिए शपथ लिया है, साथ ही मृत्यु भोज पर खर्च होने वाले इन रुपयों से गरीबों की मदद का फैसला।


बाईट 1- गोपाल यादव
बाईट 2- मिट्ठू यादव
बाईट 3- स्थानीय ,पंचानंद




Conclusion:
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