पूर्णिया: जिले से एक अनोखा मामला सामने आया है. सदियों से चलती आ रही मृत्यु भोज की परंपरा का लोगों ने बहिष्कार कर उस पैसे से समाज की सेवा करना शुरू कर दिया है. पूर्णिया के तिनपनिया गांव के वार्ड नंबर तीन में रहने वाले यादव परिवार ने हमेशा के लिए हिन्दू धर्म में चली आ रही मृत्यु भोज की परंपरा से किनारा कर लिया है.
दरअसल, हिन्दू रिवाजों में चली आ रही भोज की परंपरा को दरकिनार करते हुए उन पैसों से समाज की सेवा करने के लिए यादव परिवार के दो भाईयों ने अहम फैसला लिया है. इतना ही नहीं इन भाईयों ने मिसाल कायम करते हुए मत्यु भोज पर लाखों रुपये खर्च करने के बजाए. इन्हीं 10 लाख रुपयों से एक शव वाहन खरीदकर गरीबों की सेवा के लिए दान किया है. लिहाजा एक ओर जहां दो भाईयों के इस फैसले की हर ओर चर्चा हो रही है वहीं, समाज का एक बड़ा तबका इस प्रयास में अपनी सहमति दिखा रहा है.
दो भाईयों ने किया मृत्यु भोज का बहिष्कार
यादव परिवार के बड़े बेटे गोपाल यादव कहते हैं कि बीते 12 दिन पहले उनके पिता जी का देहांत हो गया था. लिहाजा हिंदू रीति-रिवाजों के तहत सभी परंपराएं और कर्म कांडों को पूरा किया गया. उन्होंने कहा कि इसी क्रम में उनके जहन में मृत्यु उपरांत सामूहिक तौर पर गांव में कराए जाने वाली मृत्यु भोज की परंपरा को एक सामाजिक कुरीति मानते हुए इसके बहिष्कार का साहसिक निर्णय लिया. साथ ही उन्होंने उसी पैसे के कुछ हिस्सों से लोगों के लिए शव वाहन का दान करना उचित समझा. जिससे लाचार लोगों की परेशानी नहीं बढ़े.
10 लाख का शव वाहन किया दान
यादव परिवार के छोटे बेटे मिट्ठू यादव बताते हैं कि इस बात की सहमति के बाद दोनों भाईयों ने परिवार के साथ बैठकर मृत्यु भोज पर लाखों रुपए से शव वाहन खरीदा गया. उन्होंने कहा कि इस शव वाहन से गरीब लोगों को काफी सहूलियत होगी, खासरकर जो आर्थिक रुप से कमजोर हैं. उन्होंने कहा कि शव वाहन के लिए 10 लाख की राशि ली गई.
अनूठे प्रयास को मिल रहा लोगों का समर्थन
वहीं, स्थानीय लोग दोनों भाईयों के इस फैसले की तारीफ करते नहीं थक रहे. स्थानीय निवासी पंचानंद ने कहा कि यह रिवाज वर्षों पहले कैसे बनी उन्हें मालूम नहीं. मगर इसको खत्म करने के लिए किया गया प्रयास बेहद सराहनीय है. उन्होंने ये भी कहा कि इन भाईयों के प्रयास के बाद समाज का एक बड़ा तबका मृत्यु भोज के विरोध में आगे आ रहा है. हालांकि, कई लोगों ने मृत्यु भोज के बहिष्कार के लिए शपथ लिया कि मृत्यु भोज पर खर्च होने वाले रुपयों से गरीबों की मदद की जाए.