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पूर्णिया: NGO परोस रहा स्वादिष्ट और सेहतमंद MDM, 50 हजार बच्चों को मिल रहा लाभ - स्वाद और सेहत का विशेष ध्यान

बताया जाता है कि मध्यान्ह भोजन में लगातार मिल रही शिकायतों पर शिक्षा महकमे की नजर थी जिसके बाद ही मध्यान्ह भोजन का दारोमदार सीएनडीआई नाम की एनजीओ को सौंप दिया गया है.

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NGO परोस रहा स्कूली बच्चों को स्वाद और सेहत का निवाला
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Published : Dec 5, 2019, 9:58 AM IST

पूर्णिया: बेहतर शिक्षा के साथ सेहत और स्वाद से भरपूर मध्यान्ह भोजन का आनंद सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे ले सकें, इसके लिये शिक्षा विभाग ने एक एनजीओ के सहयोग से नई पहल शुरू की है. मध्यान्ह भोजन में स्वास्थ्य के साथ सेहत परोसने का दारोमदार सीएनडीआई नाम की एनजीओ ने उठाया है. स्वच्छता के साथ ही पकवानों की बदलती वेराइटीज के साथ यह एनजीओ जिले के 80 से अधिक सरकारी स्कूलों के 50 हजार बच्चों को मध्यान्ह भोजन कराएगी.

शिक्षा महकमे की इस पहल का लाभ शुरुआती दौर में केवल शहरी क्षेत्र के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे ही उठा सकेंगे. मध्यान्ह भोजन योजना समिति ने यह दारोमदार फिलहाल सेंटर फॉर नेशनल डेवलपमेन्ट इनिशिएटिव नाम के एनजीओ को दिया है. एनजीओ का मुख्य रसोईघर मरंगा पोलिटिकल में रखा गया है. जहां से दो दर्जन फूड वैन की सहायता से स्वाद और सेहत की थाली सरकारी स्कूलों तक पहुंचाई जाती है.

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50 हजार बच्चों को मिल रहा पायलट प्रोजेक्ट का लाभ

NGO की पहल
इससे पहले स्कूलों में बनने वाले मध्यान्ह भोजन का का जिम्मा स्कूली रसोइयों और सेविकाओं के कंधे पर था. लेकिन अब ये जिम्मेदारी एक एनजीओ को दे दी गई है. इसकी बड़ी वजह खाने की गुणवत्ता में पाई जा रही शिकायतों को बताया जा रहा है. बताया जाता है कि मध्यान्ह भोजन में लगातार मिल रही शिकायतों पर शिक्षा महकमे की नजर थी जिसके बाद ही मध्यान्ह भोजन का दारोमदार एनजीओ को सौंप दिया गया है.

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NGO परोस रहा स्कूली बच्चों को स्वाद और सेहत का निवाला

पायलट प्रोजेक्ट के तहत परोसा जा रहा MDM
फिलहाल इस पहल को पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर पूर्णिया सहित 5 जिलों में ही उतारा गया है. लिहाजा इसकी सफलता के बाद यह पहल सूबे के बाकी जिलों के साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों के सभी सरकारी विद्यालयों में उतारा जाएगा. जानकारी देते हुए एनजीओ को-कॉर्डिनेटर नितिन जैन ने बताया कि 40 रसोइयों के सहयोग से बच्चों की थाली तैयार की जाती है।.भोजन में स्वच्छता संबंधी शिकायतें न आए, लिहाजा रसोइयां हाथों के ग्लब्स, हेयर मास्क व माउथ मॉस्क लगाकर मध्यान्ह भोजन तैयार करते हैं.

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मशीन से खाना बनाते NGO कर्मी

स्वाद और सेहत का विशेष ध्यान
यहां मौजूद 2 दर्जन फूड वैन इन थालियों को सुरक्षित स्कूलों तक पहुंचाते हैं. सभी वैन को उनका टारगेट दिया गया है. इन्हें दोपहर 1 बजे के तय मध्यान्ह भोजन के समयांतराल से पहले जिले के सभी 80 स्कूलों तक यह थाली बच्चों की उपस्थिति के हिसाब से पहुंचानी होती है जिसके बाद स्कूली सेविकाएं ठीक 1 बजे माध्यन भोजन के समय बच्चों को यह खाना परोसती हैं. खाना स्कूलों तक पहुंचाने से पहले खुद एनजीओ स्टाफ खाने को चखते हैं. इसके बाद प्रिंसिपल को यह खाना चखना होता है. फिर बाद यह खाना बच्चों को परोसा जाता है.

जानकारी देते NGO के कर्मी

ये भी पढ़ें- भागलपुर: 14 दिसंबर को राष्ट्रीय लोक अदालत का आयोजन, सुलह के आधार पर मामलों का होगा निपटारा

गुणवत्तापूर्ण भोजन से बच्चों में खुशी
स्कूल में पढ़ने वाली छात्राओं का कहना है कि मध्यान्ह भोजन का जिम्मा एनजीओ को सौंपे जाने के बाद स्वाद और दोनों का फायदा हुआ है. इसके साथ ही भोजन में किसी तरह की शिकायत भी नहीं आती है. प्रत्येक दिन मेन्यू में बदलाव रहता है. इनकी मानें तो स्कूल में माध्यन भोजन तैयार होने से पढ़ाई बाधित होती थी. किसी न किसी प्रकार से शिक्षक और स्टूडेंट्स को भी पठन-पाठन का कुछ समय मध्यान्ह भोजन की तैयारियों में लगाना पड़ता था. लेकिन अब इस समस्या से सभी को निजात मिलेगा.

पूर्णिया: बेहतर शिक्षा के साथ सेहत और स्वाद से भरपूर मध्यान्ह भोजन का आनंद सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे ले सकें, इसके लिये शिक्षा विभाग ने एक एनजीओ के सहयोग से नई पहल शुरू की है. मध्यान्ह भोजन में स्वास्थ्य के साथ सेहत परोसने का दारोमदार सीएनडीआई नाम की एनजीओ ने उठाया है. स्वच्छता के साथ ही पकवानों की बदलती वेराइटीज के साथ यह एनजीओ जिले के 80 से अधिक सरकारी स्कूलों के 50 हजार बच्चों को मध्यान्ह भोजन कराएगी.

शिक्षा महकमे की इस पहल का लाभ शुरुआती दौर में केवल शहरी क्षेत्र के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे ही उठा सकेंगे. मध्यान्ह भोजन योजना समिति ने यह दारोमदार फिलहाल सेंटर फॉर नेशनल डेवलपमेन्ट इनिशिएटिव नाम के एनजीओ को दिया है. एनजीओ का मुख्य रसोईघर मरंगा पोलिटिकल में रखा गया है. जहां से दो दर्जन फूड वैन की सहायता से स्वाद और सेहत की थाली सरकारी स्कूलों तक पहुंचाई जाती है.

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50 हजार बच्चों को मिल रहा पायलट प्रोजेक्ट का लाभ

NGO की पहल
इससे पहले स्कूलों में बनने वाले मध्यान्ह भोजन का का जिम्मा स्कूली रसोइयों और सेविकाओं के कंधे पर था. लेकिन अब ये जिम्मेदारी एक एनजीओ को दे दी गई है. इसकी बड़ी वजह खाने की गुणवत्ता में पाई जा रही शिकायतों को बताया जा रहा है. बताया जाता है कि मध्यान्ह भोजन में लगातार मिल रही शिकायतों पर शिक्षा महकमे की नजर थी जिसके बाद ही मध्यान्ह भोजन का दारोमदार एनजीओ को सौंप दिया गया है.

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NGO परोस रहा स्कूली बच्चों को स्वाद और सेहत का निवाला

पायलट प्रोजेक्ट के तहत परोसा जा रहा MDM
फिलहाल इस पहल को पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर पूर्णिया सहित 5 जिलों में ही उतारा गया है. लिहाजा इसकी सफलता के बाद यह पहल सूबे के बाकी जिलों के साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों के सभी सरकारी विद्यालयों में उतारा जाएगा. जानकारी देते हुए एनजीओ को-कॉर्डिनेटर नितिन जैन ने बताया कि 40 रसोइयों के सहयोग से बच्चों की थाली तैयार की जाती है।.भोजन में स्वच्छता संबंधी शिकायतें न आए, लिहाजा रसोइयां हाथों के ग्लब्स, हेयर मास्क व माउथ मॉस्क लगाकर मध्यान्ह भोजन तैयार करते हैं.

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मशीन से खाना बनाते NGO कर्मी

स्वाद और सेहत का विशेष ध्यान
यहां मौजूद 2 दर्जन फूड वैन इन थालियों को सुरक्षित स्कूलों तक पहुंचाते हैं. सभी वैन को उनका टारगेट दिया गया है. इन्हें दोपहर 1 बजे के तय मध्यान्ह भोजन के समयांतराल से पहले जिले के सभी 80 स्कूलों तक यह थाली बच्चों की उपस्थिति के हिसाब से पहुंचानी होती है जिसके बाद स्कूली सेविकाएं ठीक 1 बजे माध्यन भोजन के समय बच्चों को यह खाना परोसती हैं. खाना स्कूलों तक पहुंचाने से पहले खुद एनजीओ स्टाफ खाने को चखते हैं. इसके बाद प्रिंसिपल को यह खाना चखना होता है. फिर बाद यह खाना बच्चों को परोसा जाता है.

जानकारी देते NGO के कर्मी

ये भी पढ़ें- भागलपुर: 14 दिसंबर को राष्ट्रीय लोक अदालत का आयोजन, सुलह के आधार पर मामलों का होगा निपटारा

गुणवत्तापूर्ण भोजन से बच्चों में खुशी
स्कूल में पढ़ने वाली छात्राओं का कहना है कि मध्यान्ह भोजन का जिम्मा एनजीओ को सौंपे जाने के बाद स्वाद और दोनों का फायदा हुआ है. इसके साथ ही भोजन में किसी तरह की शिकायत भी नहीं आती है. प्रत्येक दिन मेन्यू में बदलाव रहता है. इनकी मानें तो स्कूल में माध्यन भोजन तैयार होने से पढ़ाई बाधित होती थी. किसी न किसी प्रकार से शिक्षक और स्टूडेंट्स को भी पठन-पाठन का कुछ समय मध्यान्ह भोजन की तैयारियों में लगाना पड़ता था. लेकिन अब इस समस्या से सभी को निजात मिलेगा.

Intro:आकाश कुमार(पूर्णिया)
special report ।

बेहतर शिक्षा के साथ सेहत और स्वाद से भरपूर मध्यान भोजन का आनंद सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे ले सकें। लिहाजा शिक्षा महेकमे ने एक एनजीओ के सहयोग से नई पहल शुरू है। वहीं मध्यान थालियों में स्वास्थ्य के साथ सेहत परोसने का दारोमदार सीएनडीआई नाम की एनजीओ ने उठाया है। स्वच्छता के साथ ही पकवानों की बदलती वेराइटीज के साथ यह एनजीओ जिले के 80 से अधिक सरकारी स्कूलों के 50 हजार बच्चों को मध्यान भोजन कराएगी।



Body:वहीं शिक्षा महेकमे के इस पहल का लाभ शुरुआत में केवल शहरी क्षेत्र के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे ही उठा सकेंगे।
मध्यान भोजन योजना समिति ने यह दारोमदार फिलहाल सेंटर फॉर नेशनल डेवलपमेन्ट इनिशिएटिव नाम के एनजीओ को दिया है। एनजीओ का मुख्य रसोईघर मरंगा पोलिटिकल में रखा गया है। जहां से दो दर्जन फ़ूड वैन की सहायता से स्वाद और सेहत की थाली सरकारी स्कूलों तक पहुंचाई जाती है।



वहीं अब तक स्कूलों में बनने वाले मध्यान भोजन का दारोमदार स्कूली रसोइयों और सेविकाओं के कंधे से हटाकर एक
एनजीओ को दिए जाने की एक बड़ी वजह इसकी गुणवत्ता में पाई जा रही शिकायतों को बताया जा रहा है। बताया जाता है कि मध्यान भोजन में लगातार मिल रही शिकायतों पर शिक्षा महेकमे की नजर थी। जिसके बाद ही शिक्षा महेकमे ने मध्यान भोजन का
दारोमदार एनजीओ को सौंपा। फिलहाल इस पहल को शिक्षा महेकमे की ओर से पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर पूर्णिया सहित
5 जिलों में ही उतारा गया है। लिहाजा इसकी सफलता के बाद यह पहल सूबे के बाकी जिलों के साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों के सभी सरकारी विद्यालयों में उतारा जाएगा।


इस बाबत ईटीवी भारत की टीम एनजीओ के मरंगा स्थित रसोईघर पहुंची। जहां स्वच्छता को अहम प्राथमिकता देकर यहां मौजूद रसोइयों की टीम खाना बनाने में मशगूल दिखें। इस बाबत एनजीओ को-कॉर्डिनेटर नितिन जैन ने बताया कि बच्चों को स्वाद व सेहत से भरपूर थाली तैयार करने में एक चेन काम करती है। जहां 40 रसोइयों के सहयोग से बच्चों की थाली तैयार की जाती है। भोजन में स्वच्छता संबंधी शिकायतें न आए। लिहाजा रसोइये हाथों के ग्लब्स, हेयर मास्क व माउथ मॉस्क लगाकर मध्यान भोजन तैयार करते हैं।



वहीं संस्था के आधा दर्जन सदस्य खाने की गुणवत्ता और स्वच्छता का ख्याल रखते हैं। इसके बाद यहां मौजूद 2 दर्जन फ़ूड वैन इन थालियों को सुरक्षित स्कूलों तक पहुंचाते हैं। सभी वैन को उनका टारगेट बंटा होता है। इन्हें दोपहर 1 बजे के तय मध्यान भोजन के समयांतराल से पहले जिले के सभी 80 स्कूलों तक यह थाली बच्चों की उपस्थिति के हिसाब से पहुंचानी होती है। जिसके बाद स्कूली सेविकाएं ठीक 1 बजे माध्यन भोजन के समय बच्चों को यह खाना परोसती हैं। खाने को भोजन के सुरक्षा लेयर से गुजरना होता है। इसके तहत पहले खुद खाना पहुंचाने वाले एनजीओ स्टाफ खाने को चखते हैं। इसके बाद प्रिंसिपल को यह खाना चखना होता है। इसके बाद यह खाना बच्चों के थालियों में जाता है।



एनजीओ की इस थाली को ले बच्चों की प्रतिक्रिया जानने ईटीवी भारत की टीम दुर्गाबाड़ी स्थित सरकारी स्कूल पहुंची। यहां पढ़ने वाली छात्रा गौरी आंचल बताती है कि मध्यान भोजन का जिम्मा एनजीओ को सौंपे जाने से इन्हें स्वाद और सेहत का फायदा तो हुआ ही है। इसके साथ ही भोजन में किसी तरह की शिकायत भी नहीं आती। वहीं दिव्या कहती हैं कि स्कूल में ही माध्यन भोजन तैयार होने से पढ़ाई में दी जाने वाली समय की खूब बर्बादी होती थी। किसी न किसी प्रकार से शिक्षक और स्टूडेंट्स को भी पठन-पाठन का कुछ समय मध्यान भोजन की तैयारियों में लगाना पड़ता था। जिससे सबको निजात मिली।





Conclusion:बाईट- नितिन जैन , एनजीओ को कॉर्डिनेटर
बाईट- आनंद प्रियदर्शी ,एनजीओ प्रोजेक्ट इंचार्ज
बाईट- छात्रा गौरी आंचल व दिव्या
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