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देश विदेशों में सुनाई दे रही पूर्णिया जिले की बांसुरी की तान

पूर्णिया जिले के कदगामा गांव 'जादुई बांसुरी' को लेकर सुर्खियों में है. मुस्लिम परिवार के द्वारा बनाई जाने वाली इन बांसुरियों की डिमांड बिहार ही नहीं बल्कि देश विदेशों में भी है. इस मुस्लिम बस्ती में कुल 4 परिवार हैं. जो 3 पुश्तों से बांसुरी बनाकर अपना रोजी रोटी चला रहे हैं. देखिए ये रिपोर्ट.

पूर्णिया
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Published : Jan 31, 2021, 9:07 PM IST

Updated : Jan 31, 2021, 11:12 PM IST

पूर्णिया: भगवान कृष्ण की मनमोही बांसुरी की धुन पर आम जन मानस के साथ-साथ पूरी प्रकृति मोहित हो जाती थी. लेकिन, क्या आपने कभी उस बांसुरी की धुन को सुना है जिसके कायल गोकुल और मथुरा के लाखों नंदलाल हैं. आपको ये जानकर बड़ी हैरानी होगी कि पूर्णिया जिले में मुस्लिम बस्ती की बांसुरी देश, प्रदेश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी खूब खरीदार हैं. यही कारण है कि इन सुरीली बांसुरियों को 'जादुई बांसुरी' भी कहा जाने लगा.

''हमारी बांसुरी देशभर में बिकती है. दिल्ली, पंजाब, मथुरा, गोकुल तक हमारी बांसुरी जाती है. पूरी बस्ती में 4 परिवार मिलकर इसे बनाते हैं. एक-एक बांसुरी को बनाने में काफी समय लगता है''- मो. मोइनुद्दीन, बांसुरी कारीगर, सर पर मुरेठा

पूर्णिया जिले की बांसुरियां
पूर्णिया जिले की बांसुरियां

मुस्लिम परिवार सालों से बना रहे बांसुरी
दरअसल, जिला मुख्यालय से करीब 35 किलोमीटर दूर श्रीनगर प्रखंड के हंसेली खुट्टी पंचायत में कदगामा नाम की एक ऐसी अनोखी बस्ती है. जहां मुस्लिम परिवार की तीन पीढ़ियां कान्हा की नगरी गोकुल के लिए बांसुरी बनाने की कारीगरी में जुटा है. सुरीली बांसुरी की कमाई से ही कदगामा गांव के मुस्लिम परिवार की दाल-रोटी से लेकर सभी छोटी-बड़ी जरूरतें पूरी होती हैं.

देश विदेशों में बांसुरी की डिमांड
देश विदेशों में बांसुरी की डिमांड

''हम तीन पीढ़ी से इस काम को कर रहे हैं. दूसरों की बांसुरी की अपेक्षा देशभर में हमारे द्वारा बनाई गई बांसुरी की ज्यादा डिमांड है. हमारी बांसुरी का नाम ही जादुई बांसुरी पड़ गया है''- मो. जावेद आलम, बांसुरी कारीगर, चेक स्वेटर

देश विदेशों में बांसुरी की डिमांड
सड़क से लगे इस मुस्लिम बस्ती में कुल 4 परिवार हैं. जो अपने 3 पुश्तों की तरह ही बांसुरी बनाकर अपना पेट पाल रहे हैं. इन परिवारों की मानें तो यह पहला ऐसा गांव है, जहां हिंदू नहीं बल्कि मुस्लिम कारीगर बांसुरी बनाते हैं. मुस्लिम परिवारों के हाथों की बनी बांसुरी की हिंदुओं के बीच खासी डिमांड है. बिहार के अलावा बांसुरी गोकुल और मथुरा भेजी जाती है. जिस व्यापार की शुरुआत शाह जलील नाम के एक मुस्लिम शख्स ने की थी. देखते ही देखते आज समूचे गांव ने इसे अपना लिया.

देखें वीडियो

''हर दिन बच्चों के लिए छोटी बड़ी 50 बांसुरी तैयार होती है. लेकिन सुरीली और बढ़िया बांसुरी दिन में केवल 25 ही तैयार की जाती हैं- मो साजिद, बांसुरी कारीगर, जैकेट

हर जगह जादुई बांसुरी के दीवाने
आज इन मुस्लिम परिवारों की जादुई बांसुरी के दीवाने महज बिहार ही नहीं बल्कि कृष्ण नगरी गोकुल, मथुरा, वृंदावन और इस्कॉन जैसे धार्मिक स्थलों पर भी है. सीमावर्ती नेपाल और भूटान जैसे देशों में भी यहां की बांसुरी की खूब मांग है. मुस्लिम कारीगर शाह आरिफ ने बताया कि यहां 3 मेल की बांसुरी बनाई जाती है. जिसकी कीमत 30 रुपए से शुरू होकर 3 हजार तक है. लेकिन बाजारों में इनकी कीमत 7 से 10 हजार के करीब है.

मुस्लिम परिवार सालों से बना रहा बांसुरी
मुस्लिम परिवार सालों से बना रहा बांसुरी

''इस बांसुरी को हम तीन पीढ़ी से बना रहे हैं. पूरा परिवार मिलकर बांसुरी बनाते हैं और इसी से हम हमारी रोजी रोटी चला रहे हैं. हमारी बांसुरी की बिहार के कई जिलों के अलावा देश विदेश में भी भारी मांग है. हमें सरकार की तरफ से कोई मदद नहीं मिलती है''- शाह आरिफ, बांसुरी कारीगर

सरकार से आर्थिक मदद की दरकार
बहरहाल, श्रीनगर के इन बांसुरी कारीगरों की मांग है कि अगर इनके बांसुरी उद्योग को सरकार की आर्थिक मदद मिलती है, तो वे मिथिला पेंटिंग की ही तरह बांसुरी को बिहार की नई पहचान बना सकते हैं.

पूर्णिया: भगवान कृष्ण की मनमोही बांसुरी की धुन पर आम जन मानस के साथ-साथ पूरी प्रकृति मोहित हो जाती थी. लेकिन, क्या आपने कभी उस बांसुरी की धुन को सुना है जिसके कायल गोकुल और मथुरा के लाखों नंदलाल हैं. आपको ये जानकर बड़ी हैरानी होगी कि पूर्णिया जिले में मुस्लिम बस्ती की बांसुरी देश, प्रदेश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी खूब खरीदार हैं. यही कारण है कि इन सुरीली बांसुरियों को 'जादुई बांसुरी' भी कहा जाने लगा.

''हमारी बांसुरी देशभर में बिकती है. दिल्ली, पंजाब, मथुरा, गोकुल तक हमारी बांसुरी जाती है. पूरी बस्ती में 4 परिवार मिलकर इसे बनाते हैं. एक-एक बांसुरी को बनाने में काफी समय लगता है''- मो. मोइनुद्दीन, बांसुरी कारीगर, सर पर मुरेठा

पूर्णिया जिले की बांसुरियां
पूर्णिया जिले की बांसुरियां

मुस्लिम परिवार सालों से बना रहे बांसुरी
दरअसल, जिला मुख्यालय से करीब 35 किलोमीटर दूर श्रीनगर प्रखंड के हंसेली खुट्टी पंचायत में कदगामा नाम की एक ऐसी अनोखी बस्ती है. जहां मुस्लिम परिवार की तीन पीढ़ियां कान्हा की नगरी गोकुल के लिए बांसुरी बनाने की कारीगरी में जुटा है. सुरीली बांसुरी की कमाई से ही कदगामा गांव के मुस्लिम परिवार की दाल-रोटी से लेकर सभी छोटी-बड़ी जरूरतें पूरी होती हैं.

देश विदेशों में बांसुरी की डिमांड
देश विदेशों में बांसुरी की डिमांड

''हम तीन पीढ़ी से इस काम को कर रहे हैं. दूसरों की बांसुरी की अपेक्षा देशभर में हमारे द्वारा बनाई गई बांसुरी की ज्यादा डिमांड है. हमारी बांसुरी का नाम ही जादुई बांसुरी पड़ गया है''- मो. जावेद आलम, बांसुरी कारीगर, चेक स्वेटर

देश विदेशों में बांसुरी की डिमांड
सड़क से लगे इस मुस्लिम बस्ती में कुल 4 परिवार हैं. जो अपने 3 पुश्तों की तरह ही बांसुरी बनाकर अपना पेट पाल रहे हैं. इन परिवारों की मानें तो यह पहला ऐसा गांव है, जहां हिंदू नहीं बल्कि मुस्लिम कारीगर बांसुरी बनाते हैं. मुस्लिम परिवारों के हाथों की बनी बांसुरी की हिंदुओं के बीच खासी डिमांड है. बिहार के अलावा बांसुरी गोकुल और मथुरा भेजी जाती है. जिस व्यापार की शुरुआत शाह जलील नाम के एक मुस्लिम शख्स ने की थी. देखते ही देखते आज समूचे गांव ने इसे अपना लिया.

देखें वीडियो

''हर दिन बच्चों के लिए छोटी बड़ी 50 बांसुरी तैयार होती है. लेकिन सुरीली और बढ़िया बांसुरी दिन में केवल 25 ही तैयार की जाती हैं- मो साजिद, बांसुरी कारीगर, जैकेट

हर जगह जादुई बांसुरी के दीवाने
आज इन मुस्लिम परिवारों की जादुई बांसुरी के दीवाने महज बिहार ही नहीं बल्कि कृष्ण नगरी गोकुल, मथुरा, वृंदावन और इस्कॉन जैसे धार्मिक स्थलों पर भी है. सीमावर्ती नेपाल और भूटान जैसे देशों में भी यहां की बांसुरी की खूब मांग है. मुस्लिम कारीगर शाह आरिफ ने बताया कि यहां 3 मेल की बांसुरी बनाई जाती है. जिसकी कीमत 30 रुपए से शुरू होकर 3 हजार तक है. लेकिन बाजारों में इनकी कीमत 7 से 10 हजार के करीब है.

मुस्लिम परिवार सालों से बना रहा बांसुरी
मुस्लिम परिवार सालों से बना रहा बांसुरी

''इस बांसुरी को हम तीन पीढ़ी से बना रहे हैं. पूरा परिवार मिलकर बांसुरी बनाते हैं और इसी से हम हमारी रोजी रोटी चला रहे हैं. हमारी बांसुरी की बिहार के कई जिलों के अलावा देश विदेश में भी भारी मांग है. हमें सरकार की तरफ से कोई मदद नहीं मिलती है''- शाह आरिफ, बांसुरी कारीगर

सरकार से आर्थिक मदद की दरकार
बहरहाल, श्रीनगर के इन बांसुरी कारीगरों की मांग है कि अगर इनके बांसुरी उद्योग को सरकार की आर्थिक मदद मिलती है, तो वे मिथिला पेंटिंग की ही तरह बांसुरी को बिहार की नई पहचान बना सकते हैं.

Last Updated : Jan 31, 2021, 11:12 PM IST
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