पूर्णिया: हिंदी साहित्य को अनंत ऊंचाइयों तक पहुंचाने में राष्ट्रकवि दिनकर की अद्वितीय भूमिका रही है. उनके इसी सिद्धि का असर रहा कि वे ऐसे एकलौते कवि हुए जिन्हें 'राष्ट्रकवि' की उपाधि मिली. वैसे तो ऐसी अनगिनत कृतियां हैं. जिसने दिनकर की कतार में खड़े कवियों से अलग पहचान बनाई. मगर इन सभी कृतियों में प्रसिद्ध 'रश्मिरथी' ही थी, जिसने इन्हें दिनकर से राष्ट्रकवि दिनकर बनाया. लिहाजा आप जानते हैं बेटी विंध्यवासिनी की शादी और उसके गौने की सामाजिक-आर्थिक संघर्ष से जुड़ी 'रश्मिरथी' की रचना से जुड़ी अनसुनी कहानी. क्या है 'रश्मिरथी' का महाभारत कालीन सिकलीगढ़ धरहरा कनेक्शन.
ईटीवी भारत बताएगा रश्मिरथी से जुड़ी अनसुनी कहानी
क्या आप जानते हैं कि दिनकर ने अपनी सुप्रसिद्ध कृति 'रश्मिरथी' की रचना पैतृक गांव सिमरिया, शिक्षा अर्जन के केंद्र पटना विश्वविद्यालय, सियासत की सीढ़ियों तक चढ़ाने वाली दिल्ली, सेवा क्षेत्र रहे मुजफ्फरपुर, भागलपुर या फिर सहरसा के बजाए पूर्णिया से ही क्यों की? क्या आप ये जानते हैं प्रसिद्ध 'रश्मिरथी' की रचना के केंद्र में महाभारत के मुख्य पात्र कर्ण के समानांतर केंद्र में कोई और नहीं खुद दिनकर और उनकी बेटी विंध्यवासिनी हैं. इसकी रचना की कहानी बेटी विंध्यवासिनी की शादी और गौने से जुड़ी सामाजिक-आर्थिक अर्चन की कहानी कहती है.
वह काझा जहां दिनकर ने किया था चहेती बेटी का विवाह
ईटीवी भारत की टीम पूर्णिया हेड क्वार्टर से 14 किलोमीटर का फासला तय कर काझा काली स्थान पहुंची. जहां आज भी राष्ट्रकवि दिनकर का परिवार रहता है. दरअसल, राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर को दो बेटे और दो बेटियों समेत कुल 4 संतानें थीं. इनमें से एक की शादी राष्ट्रकवि दिनकर ने पूर्णिया में किया. इस तरह नगर प्रखंड स्थित काझा गांव राष्ट्रकवि दिनकर की बेटी का ससुराल बना. दिनकर की चार संतानों में वह विंध्यवासिनी ही थी, जिससे दिनकर का विशेष जुड़ाव रहा.
4 संतानों में विंध्यवासिनी से था सबसे ज्यादा लगाव
दिनकर को 4 संतानों में विंध्यवासिनी से सबसे ज्यादा लगाव था. यही वजह रही तमाम व्यस्तताओं के बाद भी दिनकर को इनकी चिट्ठी आए न आए, तो वे अक्सर उनसे मिलने उनके ससुराल चले आया करते. आपको यह जानकर हैरानी होगी कि 2011 में विंध्यवासिनी का देहांत हो गया. मगर आज भी विंध्यवासिनी के बेटे और उनका परिवार दिया हुआ हर एक सामान संभालकर रखा है.
सामाजिक-आर्थिक उलझनों से भरा रहा दिनकर का जीवन
राष्ट्रकवि दिनकर और उनकी प्रसिद्ध कृति 'रश्मिरथी' से जुड़ी यादों के पन्ने पलटते हुए दिनकर के पौत्र त्रिपुरारी शर्मा बताते हैं कि सिमरिया स्थित उनके घर में रोजाना होने वाले रामचरितमानस ने उनके अंदर उत्तम विचारों का प्रवाह किया. वहीं, महाभारत के एक अहम पात्र के संघर्ष को वे अपने जीवन के संघर्ष से जोड़कर जीते रहे. बचपन में ही सर से पिता का साया छीन जाने से छात्र जीवन भी कष्टप्रद रहा. सरकारी सेवा में आने और इससे कहीं अधिक एक प्रतिष्ठित जीवन में रहते हुए भी समाजिक-आर्थिक उलझनों ने कभी उनका पीछा नहीं छोड़ा.
दिनकर के काव्य ही बन गए थे बेटी के ब्याह में अड़चन
त्रिपुरारी शर्मा अपनी मां विंध्यवासिनी की शादी और उनके गौने से जुड़ी राष्ट्रकवि दिनकर की आर्थिक-सामाजिक रुकावटों का जिक्र करते हुए कहते हैं कि उनके जीवन का सबसे अधिक कठिनाइयों वाला दौर बेटी की शादी का रहा. लिहाजा दिनकर जहां कहीं भी विंध्यवासिनी की शादी की बात छेड़ते लोगों को लगता दिनकर अपने काव्यों की करिश्माई पंक्तियां परोस उनके बेटे को अपने वश में कर लेंगें. बगैर लेन-देन उनका बेटा ब्याह के लिए राजी हो जाएगा. जिससे लोग उनसे दूरी बनाने लगे.
समाज ने नाता तोड़ा तो दोस्तों ने निभाया साथ
रामधारी सिंह दिनकर की एक चिट्ठी का जिक्र करते हुए त्रिपुरारी शर्मा कहते हैं कि दिनकर के छात्र जीवन के मित्र लक्ष्मी नारायण और द्विज की मदद से ही नगर प्रखंड के एक समृद्ध किसान के घर दिनकर ने अपनी सबसे अजीज विंध्यवासिनी का हाथ दिया. धन से संपन्न इस परिवार में सिर्फ सरस्वती की कमी थी. जिसे दिनकर ने अपनी होनहार बेटियां का कन्यादान कर समधी बनने के साथ दूर कर दिया था.
शादी और गौने के लिए एक-एक पाई के लिए जूझे थे दिनकर
यही वह दौर था जिसने 'रश्मिरथी' के बीज बोए. रिश्ता पक्का होने के बाद अब इस पिता के सामने सबसे बड़ी चुनौती बेटी के ब्याह और गौने की थी. लिहाजा आर्थिक परेशानियों से जूझते हुए दिनकर ने जो रकम अपनी लाडली के लिए जुटाई थी. इनमें से अधिकांश पैसे विंध्यवासिनी की शादी में खर्च हो चुके थे. लिहाजा दिनकर को उस वक्त और ज्यादा आर्थिक परेशानी उठानी पड़ी. जब बिटिया के गौने का समय आया. दिनकर ने चिट्ठी में जिक्र किया कि किस तरह गौने के लिए उन्होंने एक-एक रुपए जुटाए. तब जाकर बेटी को गौने के समय एक बेड, एक डायनिंग टेबल और सिंगारदान के पैसे किसी तरह जमा कर पाए.
सिकलीगढ़ से जुड़े 'रश्मिरथी' के राज
त्रिपुरारी बतातें हैं कि बेटी की शादी के बाद दिनकर का पूर्णिया आना-जाना बढ़ गया. इस दौरान वे बनमनखी प्रखंड स्थित सिकलीगढ़ धरहरा और नेपाल की तराइयों में बसे ऐसे ऐतिहासिक क्षेत्रों के संपर्क में आए जहां आज भी महाभारत युग के अवशेष जीवंत मालूम पड़ते हैं. लिहाजा महाभारत के वे सभी चित्रण जो दिनकर के साथ घूमते रहे, दिनकर को जीवित होती दिखाई दिए. महाभारत का वह मुख्य पात्र महान धनुषधारी कर्ण जिसके साथ दिनकर अन्याय होने का एहसास किया करते थे, यहां आकर वे सभी जीवंत हो उठे. कर्ण के जीवन के समानांतर वे अपनी बाल्यावस्था से लेकर छात्र जीवन, बेटी की शादी का सेवा काल और अपने प्रतिष्ठित जीवन के बावजूद आते रहे. सामाजिक-आर्थिक उलझनों से जोड़कर देखने लगे. और इस तरह राष्ट्रकवि दिनकर ने 'रश्मिरथी' की रचना की.
आज भी सहेज कर रखी गई हैं दिनकर से जुड़ी यादें
काझा स्थित इस गांव में आज भी दिनकर के होने का एहसास होता है. विंध्यवासिनी के बेटे त्रिपुरारी और पोते ने उनकी यादों को सहेज रखा है. गौने में दिए गए पलंग, साथ आई उनकी चिट्ठी, आईना और इस घर में दिनकर की एक-एक चीज आज भी सलामत है.