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पूर्णिया: 114वीं जयंती पर याद किए गए बिहार विस के पूर्व सभापति डॉ. लक्ष्मी नारायण सुधांशु

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Published : Dec 16, 2020, 12:10 PM IST

बिहार विधानसभा के तीसरे अध्यक्ष रहे डॉ. लक्ष्मी नारायण सुधांशु को 114वीं जयंती पर लोगों ने याद किया. महात्मा गांधी के आह्वान पर स्वतंत्रता संग्राम में कूदने वाले महान योद्धा सुधांशु जी ने अपने मुल्क की आजादी की खातिर अपनी जान की बाजी लगा दी थी.

पूर्णिया
पूर्व सभापति डॉ लक्ष्मी नारायण सुधांशु

पूर्णिया: बिहार विधानसभा के तीसरे अध्यक्ष रहे डॉ. लक्ष्मी नारायण सुधांशु को 114 वीं जयंती पर आज लोगों ने याद किया. जहां शिक्षा, साहित्य ,चिकित्सा समेत राजनीतिक जगत के दर्जनों बुद्धिजीवी उपस्थित रहे. लोगों ने उनकी तस्वीर पर पुष्पांजलि अर्पित की.

साहित्य,राजनीत और देश की आजादी के अग्रणी थे सुधांशु
इस अवसर पर लक्ष्मीनारायण सुधांशु की जीवनी पर प्रकाश डालते हुए शहर के जाने-माने चिकित्सक डॉ डी राम ने कहा कि लक्ष्मी नारायण सुधांशु न सिर्फ साहित्यकार थे बल्कि कुशल राजनीतिज्ञ व भारतीय आजादी के अहम पुरोधा भी थे. स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भी कई बार जेल जा चुके थे. राजनीतिक कुशलता के बल पर उन्होंने बिहार विधान सभा का सभापति का पद शुशोभित किया.

" 1935 में उन्होंने साहित्य और संस्कृति के विकास के लिए कला भवन की परिकल्पना को जन्म दिया. साहित्य समाज का दर्पण होता है. जैसी साहित्य होती है, वैसा समाज होता है. साहित्य और राजनीत जगत में उनकी एक अलग पहचान थी. आज उनके अविस्मरणीय कार्यों को याद करते हुए जिले के लोग उनकी जयंती मना रहे हैं" .- डॉ डी राम, चिकित्सक

पूर्णिया: बिहार विधानसभा के तीसरे अध्यक्ष रहे डॉ. लक्ष्मी नारायण सुधांशु को 114 वीं जयंती पर आज लोगों ने याद किया. जहां शिक्षा, साहित्य ,चिकित्सा समेत राजनीतिक जगत के दर्जनों बुद्धिजीवी उपस्थित रहे. लोगों ने उनकी तस्वीर पर पुष्पांजलि अर्पित की.

साहित्य,राजनीत और देश की आजादी के अग्रणी थे सुधांशु
इस अवसर पर लक्ष्मीनारायण सुधांशु की जीवनी पर प्रकाश डालते हुए शहर के जाने-माने चिकित्सक डॉ डी राम ने कहा कि लक्ष्मी नारायण सुधांशु न सिर्फ साहित्यकार थे बल्कि कुशल राजनीतिज्ञ व भारतीय आजादी के अहम पुरोधा भी थे. स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भी कई बार जेल जा चुके थे. राजनीतिक कुशलता के बल पर उन्होंने बिहार विधान सभा का सभापति का पद शुशोभित किया.

" 1935 में उन्होंने साहित्य और संस्कृति के विकास के लिए कला भवन की परिकल्पना को जन्म दिया. साहित्य समाज का दर्पण होता है. जैसी साहित्य होती है, वैसा समाज होता है. साहित्य और राजनीत जगत में उनकी एक अलग पहचान थी. आज उनके अविस्मरणीय कार्यों को याद करते हुए जिले के लोग उनकी जयंती मना रहे हैं" .- डॉ डी राम, चिकित्सक

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