पूर्णिया: कोरोना काल ने जीवन के हर एक हिस्से पर अपना गहरा असर डाला है. वहीं अब इसका असर दुर्गा पूजा व इससे जुड़े मूर्तिकारों पर भी साफ देखा जा सकता है. दुर्गा पूजा में मूर्ति बनाकर साल भर का घर खर्ची जमा करने वाले मूर्तिकारों की इस संक्रमण ने कमर तोड़कर रख दी है. शहर के अधिकांश पूजा समिति इस बार मूर्ति पूजा व पंडाल निर्माण के बजाए कलश स्थापन कर पूजा की प्रथा को कायम रखेंगे. वहीं इसका असर कुम्हार और मूर्ति बाजार पर साफ देखा जा सकता है. वे मूर्तिकार जो दूर्गा पूजा में मूर्ति बनाकर लाखों कमाते थे. इस बार वे कर्ज में डूबे हैं.
दरअसल, बिहार के सबसे प्रमुख त्योहारों में से एक दुर्गा पूजा पर कोरोना काल का कैसा और कितना असर है. इसकी वस्तुस्थिति जानने ईटीवी भारत की टीम जिले के मूर्ति बाजारों और मूर्तिकारों तक पहुंची, जहां ईटीवी भारत के संवाददाता ने जिले के मूर्तिकारों से इसके प्रभाव को लेकर बातचीत की.
मूर्ति बाजारों में कोरोना ग्रहण
इस बाबत खुश्कीबाग के मूर्तिकार रवि पाल कहते हैं कि कोरोना काल ने उनकी कमर पूरी तरह तोड़ दी है. दुर्गा पूजा ही वह पर्व है. जिसमें सैकड़ों मूर्तियों की डिमांड आती थी. इन मूर्तियों को बनाकर वे लाखों कमाते थे. जिससे साल भर का खर्चा जमा होता था, लेकिन इस बार कोरोना के कारण लागत तो छोड़िए लाखों का कर्ज हो गया है.
कर्ज में डूबे बिहार के मूर्तिकार
इस बाबत मूर्तिकार धोरेन्द्र नागमणि ने बताया कि शनिवार से नवरात्रि की शुरुआत हो गई है. इसी के साथ मां दुर्गा की मूर्ति स्थापना में महज 6 दिन का वक्त और शेष रह गया है. बावजूद इसके मूर्तियों के आर्डर नहीं मिल रहे है. वे कहते हैं कि जहां वे 50 के करीब मूर्ति बनाकर 10-15 लाख कमाते थे. इस बार इसके उलट उनपर ढाई लाख का कर्ज हो गया है.
मूर्ति डिमांड में 90 फीसद की कमी
वहीं मूर्तिकार शशिधर बताते हैं कि हर साल दुर्गा पूजा के समय 14 कारीगर उनके यहां काम करते थे. लेकिन इस बार कोरोना के कारण सभी बेरोजगार हो गए. कोरोना संक्रमण के फैलाव के खतरे को लेकर कोई मूर्ति पूजा नहीं होने से मूर्तिकार के पास आर्थिक तंगी की समस्या बन गई है. दुर्गा पूजा को देखते हुए उन्होंने इस साल भी पिछले साल की भांति मिट्टी, पुआल, रंग रोगन और दूसरी वस्तुओं का ऑर्डर दे दिया था. कोरोना को लेकर इस साल इन वस्तुओं के कीमत में भी आसमानी बढ़ोतरी देखी गई थी. बावजूद इसके मूर्तिकारों ने अपनी जमापूंजी लगाई. लिहाजा मूर्ति की डिमांड में 80-90 फीसद की कमी आने से आलम यह है कि खाने तक को आफत हो गए हैं.
शिल्पकार मांग रहे सरकार से मदद
मूर्तिकार सागर ऋषिदेव ने कहा कि बिहार में मूर्तिकार को कोई सम्मान नहीं दिया जाता, जबकि बंगाल में शिल्पकार को बहुत इज्जत सम्मान से देखा जाता है. सरकार वहां शिल्पकारों को कई फैसिलिटी और कई योजनाओं का लाभ देती है. लेकिन बिहार सरकार हमेशा से ही मूर्तिकारों की अनदेखी करती रही है. सरकार इसको अगर उद्योग में शामिल कर लेती है, तो इससे एक बड़े समाज का भला हो सकता है. कोरोना के कारण मूर्तिकारों के लिए कोई योजना लाए तो एक बड़े तबके को बेरोजगार होने से बचाया जा सकता है.