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राष्ट्रकवि दिनकर ने यहीं की थी प्रसिद्ध 'रश्मिरथी' की रचना, सरकार को मुंह चिढ़ा रही है आज की हालत

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Published : Sep 15, 2019, 7:44 AM IST

पुस्तकालय में टूटी फूटी तो कुछ सलामत पड़ी कुर्सियां मेज और अलमीरे इधर-उधर बिखड़े और धूल फांकते नजर आ रहे हैं. अलमीरे के ज्यादातर रैक खाली और कुछ रैकों में किताबें धूल फांकती प्रतीत हो रही हैं. वहीं, एक अन्य कमरा जिसे राष्ट्रकवि दिनकर अपने आराम करने और सोने के प्रयोग में लाया करते थे, उसमें अंधेरा कायम है.

पुस्तकालय

पूर्णिया: एक तरफ शनिवार को देश हिंदी दिवस मना रहा था. लोग हिंदी साहित्य और उनसे जुड़े साहित्यकारों को याद कर रहे थे. तो वहीं दूसरी तरफ हकीकत यह है कि वह स्थान जहां राष्ट्रकवि दिनकर द्वारा प्रसिद्ध कविता 'रश्मिरथी की रचना' की गई. वह स्थल आज अपनी बदहाली पर आंसू बहाता नजर आ रहा है. दिनकर वह कवि थे, जिसने हिंदी साहित्य को नए फलक दिया था. इस हिंदी दिवस पर भारत उनके अमूल्य अंश को याद करते हुए इस स्थल को एक धरोहर के तौर पर विकसित करने को लेकर ईटीवी अपनी आवाज बुलंद करता है.

मामला जिले में स्थित पूर्णिया कॉलेज कैंपस के उस ऐतिहासिक पुस्तकालय की है. जहां कभी राष्ट्रकवि रामधारी से दिनकर ने हिंदी साहित्य की सुप्रसिद्ध कृति 'रश्मिरथी' की रचना की थी. पुस्तकालय के स्थिति काफी खराब है. इसमें ना तो कभी साफ-सफाई होती है और न ही यहां पर किसी चीज की सुविधा उपलब्ध कराया गया है. जिसके कारण छात्र यहां बैठकर पढ़ना नहीं चाहते है.

purnea
विकास की राह देख रहा है दिनकर पुस्तकालय

जानें कौन थे राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर
राष्ट्रकवि दिनकर वीररस के ऐसे एकलौते कवि थे. जिनकी अमिट छाप महज साहित्य जगत पर ही नहीं पड़ी बल्कि कुरीतियों के खिलाफ जन-जागृति ,स्वतंत्रता आंदोलन और शिक्षा जगत के साथ ही विशुद्ध राजनीत पर भी समान रूप से पड़ी. वहीं, कवि कोकिल रामधारी सिंह दिनकर का जन्म 23 सिंतबर 1908 को बेगूसराय जिले के सिमरिया गांव में हुआ था. उन्होंने पटना विश्वविद्यालय से इतिहास ,दर्शनशास्त्र व पोलिटिकल साइंस में अपनी पढ़ाई पूरी की थी. मुजफ्फरपुर के साथ ही भागलपुर विश्वविद्यालय के वीसी भी रहे चुके है. इनकी विद्वता ने इन्हें उच्च सदन राज्यसभा पहुंचाया था. बाद में अविस्मरणीय योगदान के लिए इन्हें पदम विभूषण से अलंकृत किया गया.

purnea
खराब स्थिति में पुस्तकालय

क्या होता है रश्मिरथी का मतलब
दरअसल बेहद कम लोग यह जानते हैं कि रश्मिरथी शब्द वास्तव में कहीं और से नहीं बल्कि हिंदुओं के ही पौराणिक महाकाव्य महाभारत से आया है. जिसका अर्थ है वह मनुष्य जिसका रश्मि यानी कि सूर्य की किरणे हैं. महाभारत में पांडवों के घर जन्मा महाभारत का वह यशस्वी पात्र कर्ण जो स्वयं सूर्य और उसकी किरणों के समान तेज से भरा था. अपार तेज से भरे दिनकर स्वयं संपूर्ण जीवन आर्थिक परेशानियों से जूझते रहें. लेकिन विपरीत परिस्थितियों के बाद भी जनसामान्य के लिए लिखते रहें

क्यों बार-बार पूर्णिया आते थे राष्ट्रकवि दिनकर
बताया जाता हैं कि जनार्दन प्रसाद झा जिनके कर -कमलों से पूर्णिया कॉलेज की स्थापना की नींव पड़ी थी. वे राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर के घनिष्ट मित्र थे. इनदोनों की गहरी मित्रता ही थी. जिसके आकर्षण में दिनकर सहस ही इनसे मिलने चले आया करते थे।.यह दोस्ती तब और गहरी हो गई जब मित्र के सहयोग से दिनकर ने अपनी पुत्री का कन्यादान यहां के काझा गांव में किया. वे जब भी बिटिया के घर आते अपने मित्र के घर रूकते थे.

देखें यह रिपोर्ट

कहां हुई थी विश्व प्रसिद्ध कृति रश्मिरथी की रचना
1952 में जब दिनकर को रश्मिरथी की रचना के लिए किसी शांति से भरे स्थान की जरूरत महसूस हुई. तो वो पूर्णियां चले आए और अपने मित्र जनार्दन को सारी बात बताई. इसके बाद जनार्दन प्रसाद ने पूर्णिया कॉलेज का खाली पड़ा अपना सबसे खास कक्ष दिनकर को भेंट कर दिया. उन्होंने दिनकर के रहने और सोने और भोजन से लेकर रौशनी तक का हर एक प्रबंध सच्ची मित्रता का परिचय देते हुए किया था.

खराब स्थिति में है पुस्तकालय
पुस्तकालय में टूटी फूटी तो कुछ सलामत पड़ी कुर्सियां मेज व अलमीरे इधर उधर बिखड़े व धूल फांकते नजर आ रहे है. अलमीरे के ज्यादातर रैक खाली और कुछ रैकों में किताबें धूल फांकती प्रतीत हो रही है. वहीं एक अन्य कमरा जिसे राष्ट्रकवि दिनकर अपने आराम करने और सोने के प्रयोग में लाया करते थे. उस कमरे में अंधेरा कायम है. दीवारें पपडियां छोड़ चुकी है और चारों तरफ मकड़ियों का जाल है. वहीं न मेंटेनेंस स्टाफ हैं न इसकी सफाई के लिए सफाईकर्मी की व्यवस्था है. वहीं, वॉशरूम भी गंदे और दुर्गंध से भरे पड़े हैं. यही वजह है कि छात्रों का यहां बैठकर पढ़ाई करना तो दूर दो पल ठहरकर गुजारना भी नहीं चाह रहे है.

पूर्णिया: एक तरफ शनिवार को देश हिंदी दिवस मना रहा था. लोग हिंदी साहित्य और उनसे जुड़े साहित्यकारों को याद कर रहे थे. तो वहीं दूसरी तरफ हकीकत यह है कि वह स्थान जहां राष्ट्रकवि दिनकर द्वारा प्रसिद्ध कविता 'रश्मिरथी की रचना' की गई. वह स्थल आज अपनी बदहाली पर आंसू बहाता नजर आ रहा है. दिनकर वह कवि थे, जिसने हिंदी साहित्य को नए फलक दिया था. इस हिंदी दिवस पर भारत उनके अमूल्य अंश को याद करते हुए इस स्थल को एक धरोहर के तौर पर विकसित करने को लेकर ईटीवी अपनी आवाज बुलंद करता है.

मामला जिले में स्थित पूर्णिया कॉलेज कैंपस के उस ऐतिहासिक पुस्तकालय की है. जहां कभी राष्ट्रकवि रामधारी से दिनकर ने हिंदी साहित्य की सुप्रसिद्ध कृति 'रश्मिरथी' की रचना की थी. पुस्तकालय के स्थिति काफी खराब है. इसमें ना तो कभी साफ-सफाई होती है और न ही यहां पर किसी चीज की सुविधा उपलब्ध कराया गया है. जिसके कारण छात्र यहां बैठकर पढ़ना नहीं चाहते है.

purnea
विकास की राह देख रहा है दिनकर पुस्तकालय

जानें कौन थे राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर
राष्ट्रकवि दिनकर वीररस के ऐसे एकलौते कवि थे. जिनकी अमिट छाप महज साहित्य जगत पर ही नहीं पड़ी बल्कि कुरीतियों के खिलाफ जन-जागृति ,स्वतंत्रता आंदोलन और शिक्षा जगत के साथ ही विशुद्ध राजनीत पर भी समान रूप से पड़ी. वहीं, कवि कोकिल रामधारी सिंह दिनकर का जन्म 23 सिंतबर 1908 को बेगूसराय जिले के सिमरिया गांव में हुआ था. उन्होंने पटना विश्वविद्यालय से इतिहास ,दर्शनशास्त्र व पोलिटिकल साइंस में अपनी पढ़ाई पूरी की थी. मुजफ्फरपुर के साथ ही भागलपुर विश्वविद्यालय के वीसी भी रहे चुके है. इनकी विद्वता ने इन्हें उच्च सदन राज्यसभा पहुंचाया था. बाद में अविस्मरणीय योगदान के लिए इन्हें पदम विभूषण से अलंकृत किया गया.

purnea
खराब स्थिति में पुस्तकालय

क्या होता है रश्मिरथी का मतलब
दरअसल बेहद कम लोग यह जानते हैं कि रश्मिरथी शब्द वास्तव में कहीं और से नहीं बल्कि हिंदुओं के ही पौराणिक महाकाव्य महाभारत से आया है. जिसका अर्थ है वह मनुष्य जिसका रश्मि यानी कि सूर्य की किरणे हैं. महाभारत में पांडवों के घर जन्मा महाभारत का वह यशस्वी पात्र कर्ण जो स्वयं सूर्य और उसकी किरणों के समान तेज से भरा था. अपार तेज से भरे दिनकर स्वयं संपूर्ण जीवन आर्थिक परेशानियों से जूझते रहें. लेकिन विपरीत परिस्थितियों के बाद भी जनसामान्य के लिए लिखते रहें

क्यों बार-बार पूर्णिया आते थे राष्ट्रकवि दिनकर
बताया जाता हैं कि जनार्दन प्रसाद झा जिनके कर -कमलों से पूर्णिया कॉलेज की स्थापना की नींव पड़ी थी. वे राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर के घनिष्ट मित्र थे. इनदोनों की गहरी मित्रता ही थी. जिसके आकर्षण में दिनकर सहस ही इनसे मिलने चले आया करते थे।.यह दोस्ती तब और गहरी हो गई जब मित्र के सहयोग से दिनकर ने अपनी पुत्री का कन्यादान यहां के काझा गांव में किया. वे जब भी बिटिया के घर आते अपने मित्र के घर रूकते थे.

देखें यह रिपोर्ट

कहां हुई थी विश्व प्रसिद्ध कृति रश्मिरथी की रचना
1952 में जब दिनकर को रश्मिरथी की रचना के लिए किसी शांति से भरे स्थान की जरूरत महसूस हुई. तो वो पूर्णियां चले आए और अपने मित्र जनार्दन को सारी बात बताई. इसके बाद जनार्दन प्रसाद ने पूर्णिया कॉलेज का खाली पड़ा अपना सबसे खास कक्ष दिनकर को भेंट कर दिया. उन्होंने दिनकर के रहने और सोने और भोजन से लेकर रौशनी तक का हर एक प्रबंध सच्ची मित्रता का परिचय देते हुए किया था.

खराब स्थिति में है पुस्तकालय
पुस्तकालय में टूटी फूटी तो कुछ सलामत पड़ी कुर्सियां मेज व अलमीरे इधर उधर बिखड़े व धूल फांकते नजर आ रहे है. अलमीरे के ज्यादातर रैक खाली और कुछ रैकों में किताबें धूल फांकती प्रतीत हो रही है. वहीं एक अन्य कमरा जिसे राष्ट्रकवि दिनकर अपने आराम करने और सोने के प्रयोग में लाया करते थे. उस कमरे में अंधेरा कायम है. दीवारें पपडियां छोड़ चुकी है और चारों तरफ मकड़ियों का जाल है. वहीं न मेंटेनेंस स्टाफ हैं न इसकी सफाई के लिए सफाईकर्मी की व्यवस्था है. वहीं, वॉशरूम भी गंदे और दुर्गंध से भरे पड़े हैं. यही वजह है कि छात्रों का यहां बैठकर पढ़ाई करना तो दूर दो पल ठहरकर गुजारना भी नहीं चाह रहे है.

Intro:आकाश कुमार (पूर्णिया)
exclusive report ।

एक तरफ आज देश हिंदी दिवस मना रहा है। लोग हिंदी साहित्य और उनसे जुड़े साहित्यकारों को याद कर रहे हैं। तो वहीं दूसरी तरफ हकीकत यह है कि वह स्थान जहां राष्ट्रकवि दिनकर द्वारा सुप्रसिद्ध कविता 'रश्मिरथी की रचना' की गई। आज अपनी बदहाली पर आंसू बहाता नजर आ रहा है। लिहाजा वह कवि और कृति जिसने हिंदी साहित्य को नए फलक दिए। इस हिंदी दिवस ईटीवी भारत उनके अमूल्य अंश को याद करते हुए इस स्थल को एक धरोहर के तौर पर विकसित करने को अपनी आवाज बुलंद करता है।





Body:लिहाजा इस हिंदी दिवस ईटीवी भारत बिहार के पूर्णिया जिले में स्थित पूर्णिया कॉलेज कैंपस के उस ऐतिहासिक पुस्तकालय में पहुंचा। जहां कभी राष्ट्रकवि रामधारी से दिनकर ने हिंदी साहित्य की सुप्रसिद्ध कृति 'रश्मिरथी' की रचना की। वह कृति जिसकी हर एक पंक्तियां मुरजबानी लोगों को जुबां पर याद है। वह विद्यार्थी हो चाहे जिस भी विषय का मगर दिनकर की यह रचना साथी बनकर उसके साथ है।

जानें कौन थे राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर....

राष्ट्रकवि दिनकर वीररस के ऐसे एकलौते कवि थे। जिनकी अमिट छाप महज साहित्य जगत पर ही नहीं पड़ी बल्कि कुरीतियों के खिलाफ जन-जागृति ,स्वतंत्रता आंदोलन और शिक्षा जगत के साथ ही विशुद्ध राजनीत पर भी समान रूप से पड़ी। वहीं कवि कोकिल रामधारी सिंह दिनकर का जन्म 23 सिंतबर 1908 को बेगूसराय जिले के सिमरिया गांव में हुआ। पटना विश्वविद्यालय से इतिहास ,दर्शनशास्त्र व पोलिटिकल साइंस में अपनी पढ़ाई पूरी की। मुजफ्फरपुर के साथ ही भागलपुर विश्वविद्यालय के वीसी भी रहे। इनकी विद्वता ने इन्हें उच्च सदन राज्यसभा पहुंचाया। बाद में अविस्मरणीय योगदान के पदम विभूषण से अलंकृत किए गए।


क्या होता है रश्मिरथी का मतलब...

दरअसल बेहद कम लोग यह जानते हैं कि रश्मिरथी शब्द वास्तव में कहीं और से नहीं बल्कि हिंदुओं के ही पौराणिक महाकाव्य महाभारत से आया है। जिसका अर्थ है वह मनुष्य जिसका रथ रश्मि यानी कि सूर्य की किरणें हैं। अर्थात पांडवों के घर जन्मा महाभारत का वह यशस्वी पात्र कर्ण जो स्वयं सूर्य और उसकी किरणों के समान तेज से भरा था। जिसकी भेदने की अजेय और अलौकिक थी। लिहाजा अपार तेज से भरे दिनकर स्वयं संपूर्ण जीवन आर्थिक परेशानियों से जूझते रहें। मगर विपरीत परिस्थितियों के बाद भी जनसामान्य के लिए लिखते और जूझते रहें।


क्यों बार-बार पूर्णिया आते थे राष्ट्रकवि दिनकर....

ईटीवी भारत से बात करते हुए
बताते हैं कि जनार्दन प्रसाद झा द्वि जिनके कर -कमलों से पूर्णिया कॉलेज की स्थापना की नींव पड़ी। वे राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर के घनिष्ट मित्र थे। यह इनदोनों की गहरी मित्रता ही थी जिसके आकर्षण में दिनकर सहस ही इनसे मिलने चले आया करते थे। यह दोस्ती तब और गहरी हो गई। जब मित्र के सहयोग से दिनकर ने अपनी पुत्री का कन्यादान यहां के काझा गांव में किया। वे जब भी बिटिया के घर आते अपने मित्र के घर रहते।


कहां हुई थी विश्व प्रसिद्ध कृति रश्मिरथी की रचना....

लिहाजा 1952 में जब दिनकर को रश्मिरथी की रचना के लिए किसी शांति से भरे स्थान की जरूरत महसूस हुई। वे पूर्णियां चले आए। अपने मित्र जनार्दन को सारी बात बताई। जिसके बाद जनार्दन प्रसाद ने पूर्णिया कॉलेज का खाली पड़ा अपना सबसे खास कक्ष दिनकर को भेंट कर दिया। वह जनार्दन ही थें। जिन्होंने दिनकर के रहने और सोने और भोजन से लेकर रौशनी तक का हर एक प्रबंध सच्ची मित्रता का परिचय देते हुए कर दिया।


आज बदहाली पर आंसू बहाने को मजबूर ऐतिहासिक स्थल....

लिहाजा ईटीवी भारत की टीम पूर्णिया कॉलेज स्थित उस ऐतिहासिक स्थल पहुंची। जिसे दिनकर की याद में पुस्तकालय के तर्ज पर विकसित किया गया। मगर हैरत की बात है कि जिसे एक धरोहर के तौर पर विकसित किया जाना था। वह आज अपनी बदहाली पर आंसू बहाता नजर आ रहा है। ईटीवी भारत की टीम इस ऐतिहासिक स्थल पहुंची। तो हैरत करने वाली तस्वीरें सामबे आई। हिंदी को नए मुकाम तक पहुंचाने वाले कवि और उनकी कृति की याद में कार्यक्रम के आयोजन के बजाए यह स्थल अंधेरे में डूबा नजर आया।


घुटन से भरी है पुस्तकालय कक्ष...

टूटी फूटी तो कुछ सलामत पड़ी कुर्सियां मेज व अलमीरे इधर उधर बिखड़े व धूल फांकते नजर आए। अलमीरे के ज्यादातर रेंक खाली और कुछ रेंकों में किताबें धूल फांकती नजर आई। वहीं एक अन्य कमरा जिसे राष्ट्रकवि दिनकर अपने आराम करने और सोने के प्रयोग में लाया करते थे। उस कमरे में अंधेरा कायम हैं। दीवारें पपडियां छोड़ चुकी हैं। चारो तरफ मकड़ियों का जाल है।
वहीं न मेंटेनेंस स्टाफ हैं न इसकी सफाई को अतिरिक्त सफाई कर्मी। वहीं वॉशरूम भी गंदे व दुर्गंध से भरे पड़े हैं। यही वजह है कि छात्रों का यहां बैठकर पढ़ाई करना तो दूर दो पल ठहरकर गुजारना ही घुटन भरी है।


बदहाली पर क्या कहता है पीयू प्रशासन...


इस बाबत ईटीवी भारत ने
से पुस्तकालय के जीर्णोद्धार को ले बातचीत की। जिसकी जरूरत महसूस करते हुए उन्होंने कहा कि इस पुस्तकालय की दुर्दशा का एक कारण आर्थिक परेशानी है। पीयू के पास वह क्षमता नहीं जो इसके कायाकल्प भार उठा सके। जिस तरह भी इसका रखरखाव किया जा रहा है। वह पीयू अपने बचे कूचे फंड से करती है।




















Conclusion:फिलहाल जरूरत है
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