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शारदीय नवरात्र 2019: दूसरे दिन होती है मां ब्रह्मचारिणी की पूजा, पूरी होगी मुराद, पढ़ें ये व्रत कथा - patna news

पूर्ण रूप से ज्योतिर्मय मां दुर्गा का दूसरा स्वरूप देवी ब्रह्मचारिणी का है, जो मां ब्रह्मचारिणी सदैव शांत और संसार से विरक्त होकर तपस्या में लीन रहती हैं. नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है.

माता की आरती
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Published : Sep 30, 2019, 12:04 AM IST

पटना: शारदीय नवरात्र में दुर्गा पूजा के दौरान मां के नौ रूपों की पूजा-उपासना की जाती है. नवरात्र के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी के लिए जाना जाता है. इस दिन उन्हीं की पूजा-अर्चना की जाती है. मां के नाम में ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी का अर्थ है आचरण करने वाली. इससे ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ तप का आचरण करने वाली.

  • मां ने भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी. इस कठिन तपस्या के कारण इस देवी का नाम तपश्चारिणी अर्थात् ब्रह्मचारिणी पड़ा.

मां का दिव्य स्वरूप...
पूर्ण रूप से ज्योतिर्मय मां दुर्गा का दूसरा स्वरूप देवी ब्रह्मचारिणी का है, जो मां ब्रह्मचारिणी सदैव शांत और संसार से विरक्त होकर तपस्या में लीन रहती हैं. कठोर तप के कारण इनके मुख पर अद्भूद तेज और आभामंडल विद्यमान रहता है. उनके हाथों अक्ष माला और कमंडल होता है. मां को साक्षात ब्रह्म का स्वरूप माना जाता है. मां ब्रह्मचारिणी के स्वरूप की उपासना कर सहज की सिद्धि मिलती है.

माता की आरती
  • पूजन का मंत्र- दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू। देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥

मां ब्रह्मचारिणी की पौराणिक कथा
मां ब्रह्मचारिणी ने हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लिया था. उन्होंने नारद जी के उपदेश से भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की. इस कठिन तपस्या के कारण इनका नाम ब्रह्मचारिणी पड़ा.

कई हजार वर्ष तक की तपस्या
मां ने एक हजार वर्ष तक केवल फल-फूल खाकर बिताए और सौ वर्षों तक केवल जमीन पर रहकर शाक पर निर्वाह किया. कुछ दिनों तक कठिन व्रत रखे और खुले आकाश के नीचे वर्षा और धूप के घोर कष्ट सहे. तीन हजार वर्षों तक टूटे हुए बिल्व पत्र खाए और भगवान शंकर की आराधना करती रहीं. इसके बाद तो उन्होंने सूखे बिल्व पत्र खाना भी छोड़ दिए. वो कई हजार वर्षों तक निर्जल और निराहार रह कर तपस्या करती रहीं.

मिला वरदान...
कठिन तपस्या के कारण देवी का शरीर दुर्बल हो गया. देवता, ऋषि, सिद्धगण, मुनि सभी ने ब्रह्मचारिणी की तपस्या को अभूतपूर्व पुण्य कृत्य बताया और सराहना की. उन्हें आशीर्वाद देते हुए कहा कि, 'हे देवी आज तक किसी ने इस तरह की कठोर तपस्या नहीं की. यह आप से ही संभव थी. आपकी मनोकामना परिपूर्ण होगी. भगवान चंद्रमौलि शिवजी तुम्हें पति रूप में प्राप्त होंगे.'

कैसे करें पूजा...

  • मां ब्रह्मचारिणी की पूजा में सबसे पहले मां को फूल, अक्षत, रोली, चंदन आदि अर्पण करें.
  • उन्हें दूध, दही, घृत, मधु व शर्करा से स्नान कराएं और इसके देवी को प्रसाद चढ़ाएं.
  • प्रसाद पश्चात आचमन कराएं और फिर पान, सुपारी, लौंग अर्पित करें.
  • पूजा करने के समय हाथ में फूल लेकर इस मंत्र से मां की प्रार्थना करें, 'दधाना कर मद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डलू। देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।'
  • इसके बाद अक्षत, कुमकुम, सिंदूर आदि अर्पित करें.

पटना: शारदीय नवरात्र में दुर्गा पूजा के दौरान मां के नौ रूपों की पूजा-उपासना की जाती है. नवरात्र के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी के लिए जाना जाता है. इस दिन उन्हीं की पूजा-अर्चना की जाती है. मां के नाम में ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी का अर्थ है आचरण करने वाली. इससे ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ तप का आचरण करने वाली.

  • मां ने भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी. इस कठिन तपस्या के कारण इस देवी का नाम तपश्चारिणी अर्थात् ब्रह्मचारिणी पड़ा.

मां का दिव्य स्वरूप...
पूर्ण रूप से ज्योतिर्मय मां दुर्गा का दूसरा स्वरूप देवी ब्रह्मचारिणी का है, जो मां ब्रह्मचारिणी सदैव शांत और संसार से विरक्त होकर तपस्या में लीन रहती हैं. कठोर तप के कारण इनके मुख पर अद्भूद तेज और आभामंडल विद्यमान रहता है. उनके हाथों अक्ष माला और कमंडल होता है. मां को साक्षात ब्रह्म का स्वरूप माना जाता है. मां ब्रह्मचारिणी के स्वरूप की उपासना कर सहज की सिद्धि मिलती है.

माता की आरती
  • पूजन का मंत्र- दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू। देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥

मां ब्रह्मचारिणी की पौराणिक कथा
मां ब्रह्मचारिणी ने हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लिया था. उन्होंने नारद जी के उपदेश से भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की. इस कठिन तपस्या के कारण इनका नाम ब्रह्मचारिणी पड़ा.

कई हजार वर्ष तक की तपस्या
मां ने एक हजार वर्ष तक केवल फल-फूल खाकर बिताए और सौ वर्षों तक केवल जमीन पर रहकर शाक पर निर्वाह किया. कुछ दिनों तक कठिन व्रत रखे और खुले आकाश के नीचे वर्षा और धूप के घोर कष्ट सहे. तीन हजार वर्षों तक टूटे हुए बिल्व पत्र खाए और भगवान शंकर की आराधना करती रहीं. इसके बाद तो उन्होंने सूखे बिल्व पत्र खाना भी छोड़ दिए. वो कई हजार वर्षों तक निर्जल और निराहार रह कर तपस्या करती रहीं.

मिला वरदान...
कठिन तपस्या के कारण देवी का शरीर दुर्बल हो गया. देवता, ऋषि, सिद्धगण, मुनि सभी ने ब्रह्मचारिणी की तपस्या को अभूतपूर्व पुण्य कृत्य बताया और सराहना की. उन्हें आशीर्वाद देते हुए कहा कि, 'हे देवी आज तक किसी ने इस तरह की कठोर तपस्या नहीं की. यह आप से ही संभव थी. आपकी मनोकामना परिपूर्ण होगी. भगवान चंद्रमौलि शिवजी तुम्हें पति रूप में प्राप्त होंगे.'

कैसे करें पूजा...

  • मां ब्रह्मचारिणी की पूजा में सबसे पहले मां को फूल, अक्षत, रोली, चंदन आदि अर्पण करें.
  • उन्हें दूध, दही, घृत, मधु व शर्करा से स्नान कराएं और इसके देवी को प्रसाद चढ़ाएं.
  • प्रसाद पश्चात आचमन कराएं और फिर पान, सुपारी, लौंग अर्पित करें.
  • पूजा करने के समय हाथ में फूल लेकर इस मंत्र से मां की प्रार्थना करें, 'दधाना कर मद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डलू। देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।'
  • इसके बाद अक्षत, कुमकुम, सिंदूर आदि अर्पित करें.
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