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सियासत संजोने का वक्त! दिल्ली में भी फेल हुई BJP, अब बिहार में नीतीश के साथ कैसे लेगी स्टैंड - BJP's defeat in Delhi

बिहार में अगली लड़ाई है और हर तैयारी जोरों पर है. दिल्ली वालों का दिल हार चुकी बीजेपी की नई राह में बिहार है. जरूरत है सियासत संजोने की जो बीजेपी को राजनीतिक तपिस से सुकून की राहत दे सके.

दिल्ली में प्रचार के दौरान नरेंद्र मोदी
दिल्ली में प्रचार के दौरान नरेंद्र मोदी
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Published : Feb 11, 2020, 4:47 PM IST

Updated : Feb 14, 2020, 5:13 PM IST

पटना: देश में भाजपा के असर को लेकर बदल रही लहर से एक बात तो सभी राजनीतिक दलों की समझ में आ गयी है कि वक्त सियासत को संजोने का है. खुद भाजपा भी इस बात से इनकार नहीं कर सकती है कि जो कुछ उसके हाथ से निकलता जा रहा है. उसका साथ नहीं दे पाने में बीजेपी रणनीति के स्तर पर फेल रही है.

1989 में मंदिर के मुद्दे को लेकर सियासत में अपने वजूद को खोजने निकली भाजपा 2013 में इतनी मजबूत होकर उभरी कि अटल वाली भाजपा की पूरी धुरी ही बदल दी. 2014 मोदी की लहर के असर पर दिल्ली पर आसीन हुई, तो देश को उम्मीद जग गयी कि कांग्रेस ने जो कुछ देश के सामने सवाल खड़ा किया है. उसका हर जवाब नरेन्द मोदी और उनके रणनीति वाली भाजपा दे देगी. अपनी सरकार को रफ्तार देने के बाद मोदी ने देश और राष्ट्रहित के लिए जो किया वह देश की जरूरत का हिस्सा था. लेकिन सियासत में जिस वादे के बदौलत मोदी के अच्छे दिन आए थे, वे लोगों की उम्मीदों के तराजू में दम तोड़ गए.

बिहार में बनानी होगी राणनीति
बिहार में बनानी होगी राणनीति

बीजेपी की मनमानी
'सबका साथ, सबका विकास' सरकार बनाने के एजेंडे में था. काला धन वापस आना था और इसी के बदौलत मोदी की सरकार आई. पढ़ाई, कमाई, दवाई पर पूरा देश मोदी मय हुआ और 'हर-हर मोदी, घर-घर मोदी' के नारे के साथ देश ने एक नए बदलाव की कहानी लिख दी. 2014 में मोदी की परीक्षा राज्यों में भी हुई, जिसमें मोदी भले ही पीएम थे. लेकिन वे चेहरा राज्य के भी थे. हालांकि, अपनों को जोड़ पाने में मोदी हर डगर पर फेल होते रहे. वह भी इसलिए नहीं क्योंकि मन की नहीं भाजपा में मनमानी होने लगी.

विकास का एजेंडा, कहीं हो न जाए फेल
विकास का एजेंडा, कहीं हो न जाए फेल

राज्यों में मिली हार
2019 के लिए जब फिर से मोदी को सत्ता दिलाने की तैयारी में भाजपा जुटी, तो टूटी कहां-कहां इसकी गिनती, जब तक अंकों में आती अपने कई पराए हो चले थे. मोदी मंत्रिमंडल से सबसे पहले बिहार के रालोसपा के उपेन्द्र कुशवाहा ने इस्तीफा दिया. बीजेपी को अवसरवादी पार्टी कह दिया. 2014 में लोकसभा चुनाव में हार के बाद मोदी विरोध को लेकर ही नीतीश ने सीएम पद से इस्तीफा दिया और 2015 में मोदी के पूरे लहर का असर भी बिहार में फेल कर दिया.

बीजेपी से दिल्ली में हुई चूक! सवाल ये भी
बीजेपी से दिल्ली में हुई चूक! सवाल ये भी

2019 से पहले बीजेपी जिस राजनीतिक जनाधार को हर राज्य में खडा करा चाहती थी, वहां वह हार गयी. मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान हाथ से निकल गया. हरियाणा किसी तरह बचा लेकिन महाराष्ट्र और झारखंड में अपनो के विभेद को नहीं पाट पाने का खामियाजा रहा कि यहां भी भाजपा की नीति हार गयी.

दिल्ली चुनाव में क्या हुई गलती
दिल्ली चुनाव में क्या हुई गलती

नीतीश कुमार के ऊपर जिम्मेदारी!
2019 में महाराष्ट्र और झारखंड से सत्ता जाने के बाद बीजेपी को 2020 में दिल्ली से उम्मीद थी. लेकिन वहां भी पार्टी को हर मोर्चे पर हार मिली. 2020 भी भाजपा के लिए ठीक आगाज लेकिन नहीं आया. अब दिल्ली के बाद बिहार की बारी है. हालांकि, यहां बीजेपी को ज्यादा कुछ नहीं करना है. सब कुछ नीतीश के चेहरे पर है. लेकिन फिर भी राजनीति और सियासत में अपनों को संजोना ही पड़ेगा.

देखें पूरी रिपोर्ट

साथ रहे लोगों को नहीं सहेज पाने का खामियाजा बीजेपी को इतना मिल चुका है कि उनके वॉर रूम में यह चर्चा आम है कि किस राज्य में किसकी भूमिका कितनी थी, कितनी है ? और अब प्रयोग कर चुकी भाजपा को किस चेहरे के सहारे राज्यों में जाना चाहिए.

दिल्ली में प्रचार के दौरान नरेंद्र मोदी
दिल्ली में प्रचार के दौरान नरेंद्र मोदी
अगला पड़ाव बिहार
अगला पड़ाव बिहार

क्या बिहार में आएगी बीजेपी की बहार?
दिल्ली में भाजपा लगातार केजरीवाल से लड़ती रही और केजरीवाल दिल्ली के हक के नाम पर. चेहरे और हक की लड़ाई में मोदी केजरीवाल के हक से हार गए. जनता के हक को केजरीवाल ने मुद्दा बनया, तो वह दिल्ली में चल गया. सियासत में दिल्ली के दिल में क्या है? यह नब्ज केजरीवाल समझ गए. लेकिन सियासत में क्या सजोना है? शायद भाजपा और बीजेपी वाले मोदी नहीं समझ पाए. बिहार में अगली लड़ाई है और हर तैयारी जोरों पर है. अब देखना यही होगा कि क्या बिहार से वो बहार फिर से भाजपा के खाते में जुड़ती है, जिसकी बयार भाजपा को नई राह में राजनीतिक तपिस की गर्मी से सुकून की राहत दे सके.

पटना: देश में भाजपा के असर को लेकर बदल रही लहर से एक बात तो सभी राजनीतिक दलों की समझ में आ गयी है कि वक्त सियासत को संजोने का है. खुद भाजपा भी इस बात से इनकार नहीं कर सकती है कि जो कुछ उसके हाथ से निकलता जा रहा है. उसका साथ नहीं दे पाने में बीजेपी रणनीति के स्तर पर फेल रही है.

1989 में मंदिर के मुद्दे को लेकर सियासत में अपने वजूद को खोजने निकली भाजपा 2013 में इतनी मजबूत होकर उभरी कि अटल वाली भाजपा की पूरी धुरी ही बदल दी. 2014 मोदी की लहर के असर पर दिल्ली पर आसीन हुई, तो देश को उम्मीद जग गयी कि कांग्रेस ने जो कुछ देश के सामने सवाल खड़ा किया है. उसका हर जवाब नरेन्द मोदी और उनके रणनीति वाली भाजपा दे देगी. अपनी सरकार को रफ्तार देने के बाद मोदी ने देश और राष्ट्रहित के लिए जो किया वह देश की जरूरत का हिस्सा था. लेकिन सियासत में जिस वादे के बदौलत मोदी के अच्छे दिन आए थे, वे लोगों की उम्मीदों के तराजू में दम तोड़ गए.

बिहार में बनानी होगी राणनीति
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बीजेपी की मनमानी
'सबका साथ, सबका विकास' सरकार बनाने के एजेंडे में था. काला धन वापस आना था और इसी के बदौलत मोदी की सरकार आई. पढ़ाई, कमाई, दवाई पर पूरा देश मोदी मय हुआ और 'हर-हर मोदी, घर-घर मोदी' के नारे के साथ देश ने एक नए बदलाव की कहानी लिख दी. 2014 में मोदी की परीक्षा राज्यों में भी हुई, जिसमें मोदी भले ही पीएम थे. लेकिन वे चेहरा राज्य के भी थे. हालांकि, अपनों को जोड़ पाने में मोदी हर डगर पर फेल होते रहे. वह भी इसलिए नहीं क्योंकि मन की नहीं भाजपा में मनमानी होने लगी.

विकास का एजेंडा, कहीं हो न जाए फेल
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राज्यों में मिली हार
2019 के लिए जब फिर से मोदी को सत्ता दिलाने की तैयारी में भाजपा जुटी, तो टूटी कहां-कहां इसकी गिनती, जब तक अंकों में आती अपने कई पराए हो चले थे. मोदी मंत्रिमंडल से सबसे पहले बिहार के रालोसपा के उपेन्द्र कुशवाहा ने इस्तीफा दिया. बीजेपी को अवसरवादी पार्टी कह दिया. 2014 में लोकसभा चुनाव में हार के बाद मोदी विरोध को लेकर ही नीतीश ने सीएम पद से इस्तीफा दिया और 2015 में मोदी के पूरे लहर का असर भी बिहार में फेल कर दिया.

बीजेपी से दिल्ली में हुई चूक! सवाल ये भी
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2019 से पहले बीजेपी जिस राजनीतिक जनाधार को हर राज्य में खडा करा चाहती थी, वहां वह हार गयी. मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान हाथ से निकल गया. हरियाणा किसी तरह बचा लेकिन महाराष्ट्र और झारखंड में अपनो के विभेद को नहीं पाट पाने का खामियाजा रहा कि यहां भी भाजपा की नीति हार गयी.

दिल्ली चुनाव में क्या हुई गलती
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नीतीश कुमार के ऊपर जिम्मेदारी!
2019 में महाराष्ट्र और झारखंड से सत्ता जाने के बाद बीजेपी को 2020 में दिल्ली से उम्मीद थी. लेकिन वहां भी पार्टी को हर मोर्चे पर हार मिली. 2020 भी भाजपा के लिए ठीक आगाज लेकिन नहीं आया. अब दिल्ली के बाद बिहार की बारी है. हालांकि, यहां बीजेपी को ज्यादा कुछ नहीं करना है. सब कुछ नीतीश के चेहरे पर है. लेकिन फिर भी राजनीति और सियासत में अपनों को संजोना ही पड़ेगा.

देखें पूरी रिपोर्ट

साथ रहे लोगों को नहीं सहेज पाने का खामियाजा बीजेपी को इतना मिल चुका है कि उनके वॉर रूम में यह चर्चा आम है कि किस राज्य में किसकी भूमिका कितनी थी, कितनी है ? और अब प्रयोग कर चुकी भाजपा को किस चेहरे के सहारे राज्यों में जाना चाहिए.

दिल्ली में प्रचार के दौरान नरेंद्र मोदी
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अगला पड़ाव बिहार
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क्या बिहार में आएगी बीजेपी की बहार?
दिल्ली में भाजपा लगातार केजरीवाल से लड़ती रही और केजरीवाल दिल्ली के हक के नाम पर. चेहरे और हक की लड़ाई में मोदी केजरीवाल के हक से हार गए. जनता के हक को केजरीवाल ने मुद्दा बनया, तो वह दिल्ली में चल गया. सियासत में दिल्ली के दिल में क्या है? यह नब्ज केजरीवाल समझ गए. लेकिन सियासत में क्या सजोना है? शायद भाजपा और बीजेपी वाले मोदी नहीं समझ पाए. बिहार में अगली लड़ाई है और हर तैयारी जोरों पर है. अब देखना यही होगा कि क्या बिहार से वो बहार फिर से भाजपा के खाते में जुड़ती है, जिसकी बयार भाजपा को नई राह में राजनीतिक तपिस की गर्मी से सुकून की राहत दे सके.

Last Updated : Feb 14, 2020, 5:13 PM IST
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