पटना: बिहार में एक बार फिर बाढ़ की आहट आने लगी है. मानसून की पहली बारिश में ही पश्चिम चंपारण जिले के वाल्मीकिनगर के आसपास के इलाके नेपाल द्वारा छोड़े गए पानी से जलमग्न हो गए. सवाल है कि क्या एक बार फिर बिहार के दो दर्जन से ज्यादा जिले बाढ़ की विभीषिका (Flood Disaster) झेलेंगे? सवाल इसलिए भी कि बिहार में डबल इंजन की सरकार है फिर भी नेपाल और बांग्लादेश से जुड़े मुद्दे क्यों नहीं सुलझ रहे ताकि बिहार में बाढ़ (Flood in Bihar) की त्रासदी कम हो सके.
यह भी पढ़ें- नेपाल ने छोड़ा 3 लाख 3 हजार 800 क्यूसेक पानी, सीएम ने की बैठक
मानसून आने के साथ ही बिहार में बाढ़ की पुरानी कहानी फिर शुरू हो गई है. पश्चिम चंपारण, पूर्वी चंपारण, दरभंगा, मधुबनी, सीतामढ़ी, गोपालगंज, पूर्णिया, कटिहार, मुजफ्फरपुर, समस्तीपुर, किशनगंज, सहरसा और सुपौल समेत करीब दो दर्जन जिले एक बार फिर बाढ़ की त्रासदी झेलने के कगार पर हैं. सरकार के तमाम दावे एक बार फिर कसौटी पर हैं.
नेपाल और बांग्लादेश के साथ कितनी बार हुई वार्ता?
पिछले 2 महीने से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कोरोना महामारी के वक्त भी बाढ़ से बचाव के कार्य की समीक्षा करते रहे. इस बात का जवाब शायद ही सरकार के किसी अधिकारी या मंत्री के पास हो कि आखिर डबल इंजन की सरकार होने के बावजूद बाढ़ के मामले में नेपाल और बांग्लादेश के साथ कितनी बार वार्ता हुई.
लूट का जरिया है बाढ़
इस बारे में विपक्ष सरकारी खजाने की लूट का आरोप लगा रहा है. राजद के प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने कहा, "एनडीए के लिए बाढ़ तो सरकारी धन की लूट का सबसे बड़ा जरिया है. वे इसे व्यर्थ थोड़े जाने देंगे. एक बार फिर बाढ़ के नाम पर सरकारी खजाने की लूट की तैयारी हो चुकी है.
"भाजपा और जदयू के नेताओं को जवाब देना चाहिए कि डबल इंजन सरकार होने के बावजूद नेपाल से आने वाले पानी रूपी त्रासदी को कम करने के लिए कितनी कोशिश हुई है. नदियों में जमा गाद हटाने के लिए कितने प्रयास हुए."- मृत्युंजय तिवारी, प्रवक्ता, राजद
"केंद्र सरकार के स्तर पर इस मामले को लेकर पहल हुई है. बिहार सरकार की तरफ से भी बाढ़ की तबाही कम करने के लिए तटबंधों को मजबूत किया गया है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के निर्देश पर जल संसाधन विभाग के मंत्री संजय झा लगातार संभावित इलाकों का दौरा कर लोगों की मुसीबतें कम करने का प्रयास कर रहे हैं."- मृत्युंजय झा, भाजपा
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
आर्थिक और सामाजिक विश्लेषक डॉ. संजय कुमार ने कहा, "मुख्य रूप से नेपाल से आने वाला पानी बिहार के कई जिलों में तबाही लाता है. इसके अलावा गंगा और अन्य नदियों में जमा सिल्ट भी बाढ़ की बड़ी वजह है. नदियों के पानी को चैनेलाइज नहीं करना भी बिहार के लिए मानसून के समय घातक साबित होता है. इन तमाम मुद्दों पर अब तक कोई गंभीर प्रयास होता नहीं दिख रहा है."
"केंद्र सरकार और राज्य सरकार के समन्वय से ही नेपाल और बांग्लादेश से जुड़े अंतरराष्ट्रीय मुद्दे सुलझ सकते हैं. ऐसा होने पर ही बिहार को बाढ़ की त्रासदी से निजात मिल सकती है."- डॉ. संजय कुमार, आर्थिक एवं सामाजिक विश्लेषक
40 साल से बरकरार है बाढ़ की समस्या
बिहार में पिछले 40 साल से बाढ़ की समस्या बरकरार है. राज्य सरकार के मुताबिक करीब 70 हजार वर्ग किलोमीटर इलाका हर साल बाढ़ में डूब जाता है. फरक्का बराज इसका मुख्य कारण है. इसके बनने के बाद बिहार में नदी का कटाव बढ़ा. सहायक नदियों से लाई गई सिल्ट और गंगा में घटता जल प्रवाह इस परेशानी को और बढ़ा रहा है.
नदियों में जमा हो गया है सिल्ट
बिहार में हिमालय से आने वाली गंगा की सहायक नदियां विशेष रूप से कोसी, गंडक और घाघरा में बहुत ज्यादा सिल्ट रहता है. इसे वे गंगा में अपने मुहाने पर जमा करती हैं. सिल्ट की वजह से पानी नदी की मुख्यधारा की जगह आसपास के इलाकों में फैलता है. इसकी वजह से बाढ़ की समस्या गंभीर हो जाती है. बाढ़ की एक मुख्य वजह बिहार में जलग्रहण क्षेत्रों में पेड़ों की लगातार हुई अंधाधुंध कटाई भी है. इसकी वजह से केचमेंट एरिया में बाढ़ का पानी नहीं रुकता.
यह भी पढ़ें- बेतिया का हाल तो देखिए, मानसून की पहली बारिश में ही जलजमाव से शहर में बाढ़ जैसे हालात