पटनाः बिहार की राजनीति आरक्षण के इर्द-गिर्द घूमती रही है. मंडल और कमंडल ने राजनीति की दशा और दिशा बदली आरक्षण की सियासत ने कई नेताओं को सत्ता के सिर पर पहुंचाया. निजीकरण और विनिवेश के इस दौर में एक बार फिर आरक्षण का मुद्दा सियासत का हथकंडा बन गया है.
विनिवेश और निजीकरण आरक्षण खत्म करने की दिशा में कदम
देश में बड़े पैमाने पर सरकारी कंपनियों का निजीकरण और विनिवेश हो रहा है. फिलहाल साढे 49.5 प्रतिशत आरक्षित श्रेणी के लोग नौकरियों में हैं. लेकिन निजीकरण के बाद स्थिति क्या बनेगी इसे लेकर सियासत शुरू हो गई है. सवाल यह उठ रहा है कि क्या एससी एसटी और ओबीसी को मिलने वाले हजारों नौकरियां खत्म हो जाएंगे.
2013 से घट गई सरकारी नौकरियों की संख्या
केंद्र सरकार इस साल 23 कंपनियों को बेचने जा रही है. इसके लिए मंजूरी दी जा चुकी है. 2019 के पब्लिक इंटरप्राइजेज सर्वे के मुताबिक भारत में 348 सरकारी कंपनियां थी जो आज घटकर 2 दर्जन के आसपास रह गई हैं. साल 2013 में 32 लाख 78 हजार आरक्षित श्रेणी के लोगों नौकरियों में थे जो 2017 में घटकर 13 लाख रह गए.
सरकार के पास नहीं है डेटाबेस
बिहार में 92 हजार बैकलॉग हैं. लेकिन 2007 के बाद से सरकार के पास कोई डेटाबेस नहीं है. सरकार ने आरक्षित पदों को लेकर कोई सर्वे नहीं कराया है. बिहार में 16.5% के विरुद्ध मात्र 5.6% को ही प्रमोशन में रिजर्वेशन का लाभ मिला है. रिजर्व कैटेगरी के बच्चों का ड्रॉपआउट भी लगातार बढ़ रहा है. उच्च शिक्षा के क्षेत्र में 22% जहां ड्रॉपआउट है. वहीं मध्य विद्यालय के स्तर पर 52.65% ड्रॉपआउट है. बिहार में 49.5% आरक्षण का प्रावधान है और इसके अलावा 10% आर्थिक रूप से कमजोर के लिए आरक्षण का प्रावधान है.
"स्वंय सेवक संघ की जो पॉलिटिकल पार्टी बीजेपी है. उनकी मानसिकता हमेशा से दलितों के अधिकारों का हनन करने की रही है. हमलोगों ने अप्रैल में आंदोलन करके कहा था कि आरक्षण के सारे मामलों को नौवीं अनुसूची में शामिल कर लिया जाए. लेकिन ऐसा नहीं किया गया. इससे आरक्षण खुद ब खुद खत्म हो जाएगा."- श्याम रजक, पूर्व मंत्री
निजी क्षेत्रों में आरक्षण को लेकर बहस
बिहार के दलित नेता लगातार प्रोमोशन में आरक्षण और निजी क्षेत्रों में आरक्षण को लेकर आवाज उठाते रहे हैं. पूर्व मंत्री श्याम रजक ने कहा है कि केंद्र की सरकार आरक्षण को खत्म करने की दिशा में आगे बढ़ रही है. बिहार के तमाम दलित नेता सहित मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी आरक्षण के मुद्दे को नौवीं अनुसूची में शामिल करने की वकालत करते रहे हैं.
"गर्वनमेंट ऑफ इंडिया के ज्वॉइंट सेक्रेटरी लेवल के अधिकारी पॉलिसी मेकर्स होते हैं. इन क्षेत्रों में निजी लोगों को लेने से काफी चीजें प्रभावित होंगी. सरकारी नौकरियां पहले से काफी घट गई हैं."- नरेंद्र कुमार, जनरल सेक्रेटरी, एआईएफ
'रिजर्वेशन पॉलिसी के खिलाफ है लेटरल भर्ती'
एआईएफ के जनरल सेक्रेटरी नरेंद्र कुमार ने कहा कि निजीकरण और विनिवेश से आरक्षण व्यवस्था ही खत्म हो सकती है. बिहार जैसे राज्यों के लिए तो और भी समस्या गंभीर होगी. राज्य में सरकार ने 2006-2007 के बाद से बैकलॉग और आरक्षित सीटों को लेकर कोई डाटा तैयार नहीं किया है. लेटरल भर्ती भी रिजर्वेशन पॉलिसी के खिलाफ है.
"पूरी तरह एक साथ विश्वविद्यालय में रिक्तियां नहीं निकाली गई. इससे कई पढ़े लिखे पीएचडी होल्डर आज बेरोजगार हैं. अगर कोई भी कंपनी निजीकरण की तरफ जाएगी तो इससे आरक्षण का प्रावधान समाप्त हो जाएगा. इससे अनूसूचित वर्ग को बड़े पैमाने पर घाटा होगा."- सुबोध पासवान, नेता, भाजपा
ये भी पढ़ेः बिहार में राजनीति और प्रशासन के गठजोड़ से चल रहा शराब का अवैध कारोबार: CPIML
निजी क्षेत्रों में किए जाए आरक्षण के प्रावधान
भाजपा के वरिष्ठ नेता सुबोध पासवान ने कहा है कि केंद्र और राज्य की सरकारें आरक्षण को लेकर गंभीर नहीं रही है जो भी सरकार रही उसने आरक्षण के विरुद्ध काम किया है. विनिवेश और निजी करण से हजारों लोग बेरोजगार होंगे. भाजपा नेता ने कहा कि केंद्र की सरकार से हम अनुरोध करेंगे कि निजी क्षेत्रों में भी आरक्षण के प्रावधान किए जाएं.