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लगभग 27 साल बाद CM नीतीश ने कराया था बिहार में पंचायत चुनाव, गांव की सरकार को बनाया सशक्त

बिहार पंचायत चुनाव 2021 हो या उससे पहले के चुनाव बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इसमें अहम भूमिका निभाई है. 1978 में बिहार पंचायत चुनाव हुए थे. उसके बाद 2006 में लगभग 27 सालों बाद नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) ने गांव की सरकार को सुदृढ़ करने को लेकर गंभीरता दिखाई थी और चुनाव करवाए थे. पढ़िए पूरी खबर..

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Published : Aug 24, 2021, 8:01 PM IST

Bihar Panchayat Election 2021
Bihar Panchayat Election 2021

पटना: राज्य निर्वाचन आयोग (Bihar Election Commission) ने मंगलवार को बिहार पंचायत चुनाव (Bihar Panchayat Election 2021) की अधिसूचना जारी कर दी है. 24 सितंबर को पंचायत चुनाव के पहले चरण के लिए वोट डाले जाएंगे. बिहार का पंचायत चुनाव भले ही किसी पार्टी चिन्ह पर नहीं लड़ा जाता है. लेकिन यह चुनाव हर पार्टी के लिए अहम है. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) के लिए तो यह चुनाव और भी अहम हो जाता है.

यह भी पढ़ें- बिहार में 24 सितंबर से 12 दिसंबर तक 11 चरणों में पंचायत चुनाव, अधिसूचना जारी

संयुक्त बिहार (झारखण्ड सहित) में ग्राम पंचायतों का चुनाव वर्ष 1952, 1955, 1958, 1962, 1965, 1972 एवं 1978 में हुआ था. उसके बाद लगभग 27 साल बाद बिहार में पंचायत चुनाव कराए गए. नीतीश कुमार, पंचायत चुनाव को काफी अहम मानते हैं. उन्होंने पहले ही साफ कर दिया है कि अगर गांव का विकास करना है तो गांव की सरकार जरूरी है. बिहार में गांव की सरकार को सशक्त बनाने का श्रेय सीएम नीतीश कुमार को ही जाता है.

सीएम नीतीश के लिए यह पंचायत चुनाव और भी अहम हो जाता है क्योंकि गांव की सरकार और बिहार की सत्ता का गहरा नाता है. नीतीश कुमार गांव की जनता का मन टटोलकर ये जानने की कोशिश करेंगे कि आने वाले वक्त में जेडीयू के लिए बिहार की सियासी जमीन कैसी रहेगी. इसमें कोई शक नहीं की गांव की सरकार बनने के बाद सीएम की रणनीति में उसका असर दिखने लगेगा. बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में जेडीयू का जनाधार खिसका है. ऐसे में यह पंचायत चुनाव नीतीश के लिए और भी मायने रखता है.

सीएम नीतीश कुमार पंचायत चुनाव को हमेशा से तवज्जों देते आए हैं. सालों तक पंचायत चुनाव नहीं कराने को लेकर लालू राबड़ी पर निशाना भी साधते रहे हैं. कई बार सार्वजनिक मंच से लालू-राबड़ी पर चुटकी लेते हुए नीतीश कह चुके हैं कि 2005 के नवंबर में जनता ने हमें सेवा का मौका इसलिए दिया क्योंकि पति-पत्नी ने 15 सालों में विकास का कोई काम नहीं किया. पंचायत चुनाव तक नहीं हुए थे.

पंचायत चुनाव हो या महिलाओं से जुड़े अहम फैसले नीतीश इसे लेकर हमेशा गंभीर रहे हैं. यही कारण है कि नीतीश सरकार आई तो महिलाओं से लेकर हर वर्ग को आरक्षण दिया गया. बिहार ऐसा पहला राज्य है जहां महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण मिला है.

पंचायत चुनाव में सीधे तौर पर पार्टियां शामिल नहीं होती है. मगर कहीं न कहीं दखल जरूर रखतीं हैं. 2006 में पंचायत चुनाव को लेकर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अहम फैसले लिए थे. सुसुप्त अवस्था में पड़े पंचायतों को एक नई ऊर्जा देते हुए गांव की सरकार के प्रति लोगों को जागरुक किया था.

पंचायत चुनाव उम्मीदवार स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ते हैं. मगर इस पर राजनीतिक प्रभाव जरूर रहता है. पंचायत चुनाव में ज्यादातर लोग जाति और निजी संबंधों के आधार पर वोट डालते हैं. तब सवाल उठता है कि जब पार्टी बेस्ड चुनाव ही नहीं है तो पार्टियां ग्राउंड पर कैसे काम करती हैं? पार्टियों के ज्यादातर कार्यकर्ता और मतदाता पंचायत लेवल से होते हैं. सब विधायक या सांसद तो नहीं बन सकते. पार्टियां अपने कार्यकर्ताओं को पंचायत लेवल पर समायोजित करतीं हैं. मगर बिहार में पार्टी स्तर पर चुनाव नहीं होने से कार्यकर्ताओं और पार्टियों के लिए बड़ी समस्या होती है.

खुलकर कोई भी नेता झंडा बैनर के साथ प्रचार नहीं कर सकता है. न ही उम्मीदवार पार्टियों के झंडा-बैनर का इस्तेमाल कर सकते हैं. हालांकि बीजेपी के कई नेता बयान दे चुके हैं कि दूसरे राज्यों की तरह बिहार में भी पंचायत चुनाव पार्टी बेस्ड होनी चाहिए, मगर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इसके लिए तैयार नहीं होते हैं. नीतीश पंचायत चुनाव को पार्टी बेस्ड नहीं चाहते हैं.

चूंकि सीधे तौर पर कोई भी पार्टी इसमें शामिल नहीं होती है, मगर बैकडोर से दखल जरूर रखती है. मसलन बिहार की सत्ता में काबिज बीजेपी के साथ ही जेडीयू भी पंचायत चुनाव की सियासी जंग फतह करने की कवायद में जुट गई है. नीतीश कुमार की भी नजर पंचायत चुनाव पर बनी हुई है.

एक अप्रैल 2016 को बिहार में शराबबंदी क़ानून लागू किया गया था. सरकार को इस वजह से तगड़ा राजस्व घाटा भी हुआ, लेकिन राज्य सरकार ने समाज सुधार के नाम पर इसे लागू करने का फ़ैसला लिया. माना जा रहा है कि इसका फायदा भी पंचायत चुनाव के दौरान नीतीश कुमार को मिल सकता है क्योंकि नीतीश के इस फैसले से महिलाएं काफी खुश हैं. साथ ही पंचायत चुनाव में महिलाओं को 50 प्रतिशत का आरक्षण देना भी नीतीश कुमार के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है. महिलाएं नीतीश के फैसलों से काफी खुश नजर आती हैं. कई बार सीएम नीतीश की जमकर तारीफ भी कर चुकी है.

नीतीश कुमार 2005 से 2021 तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे हैं. मई 2014 से नौ महीने छोड़कर, जब जीतनराम मांझी को उन्होंने मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठा दिया था. ऐसे में बिहार पंचायत चुनाव 2021 सीएम का लिटमस टेस्ट तो होगा ही साथ ही उनके आगे की कार्य योजना की जमीन भी तैयार करने में मददगार साबित होगा. अब इंतजार किया जा रहा है कि क्या एक बार फिर गांव की सरकार सीएम के लिए मील का पत्थर साबित होगी और नीतीश अपनी राजनीतिक जमीन को इसके माध्यम से कैसे मजबूत कर पाएंगे. ये सब कुछ भविष्य के गर्भ में है.

आपको बताएं कि पंचायत चुनाव के लिए 24 सितंबर, 29 सितंबर, 8 अक्टूबर, 20 अक्टूबर, 24 अक्टूबर, 3 नवंबर, 15 नवंबर, 24 नवंबर, 29 नवंबर, 8 दिसंबर और 12 दिसंबर को मतदान होगा. चुनाव आयोग ने बताया कि मुखिया के 8072 पद, ग्राम पंचायत सदस्य के 113307 पद, पंचायत समिति सदस्य के 11104 पद, जिला परिषद सदस्य के 1160, ग्राम कचहरी सरपंच के लिए 8072 और पंच के लिए 113307 पदों पर चुनाव होंगे. कुल 255022 पदों के लिए वोट डाले जाएंगे.

यह भी पढ़ें- पंचायत चुनाव: मसौढ़ी के ग्रामीणों का फैसला, विकास के नाम पर ठगने वालों को नहीं देंगे वोट

यह भी पढ़ें- Bihar Panchayat Election 2021: मुखिया, सरपंच, वार्ड पार्षद चुनाव के लिए आप इन्हीं 'छापों' पर डालेंगे वोट

पटना: राज्य निर्वाचन आयोग (Bihar Election Commission) ने मंगलवार को बिहार पंचायत चुनाव (Bihar Panchayat Election 2021) की अधिसूचना जारी कर दी है. 24 सितंबर को पंचायत चुनाव के पहले चरण के लिए वोट डाले जाएंगे. बिहार का पंचायत चुनाव भले ही किसी पार्टी चिन्ह पर नहीं लड़ा जाता है. लेकिन यह चुनाव हर पार्टी के लिए अहम है. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) के लिए तो यह चुनाव और भी अहम हो जाता है.

यह भी पढ़ें- बिहार में 24 सितंबर से 12 दिसंबर तक 11 चरणों में पंचायत चुनाव, अधिसूचना जारी

संयुक्त बिहार (झारखण्ड सहित) में ग्राम पंचायतों का चुनाव वर्ष 1952, 1955, 1958, 1962, 1965, 1972 एवं 1978 में हुआ था. उसके बाद लगभग 27 साल बाद बिहार में पंचायत चुनाव कराए गए. नीतीश कुमार, पंचायत चुनाव को काफी अहम मानते हैं. उन्होंने पहले ही साफ कर दिया है कि अगर गांव का विकास करना है तो गांव की सरकार जरूरी है. बिहार में गांव की सरकार को सशक्त बनाने का श्रेय सीएम नीतीश कुमार को ही जाता है.

सीएम नीतीश के लिए यह पंचायत चुनाव और भी अहम हो जाता है क्योंकि गांव की सरकार और बिहार की सत्ता का गहरा नाता है. नीतीश कुमार गांव की जनता का मन टटोलकर ये जानने की कोशिश करेंगे कि आने वाले वक्त में जेडीयू के लिए बिहार की सियासी जमीन कैसी रहेगी. इसमें कोई शक नहीं की गांव की सरकार बनने के बाद सीएम की रणनीति में उसका असर दिखने लगेगा. बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में जेडीयू का जनाधार खिसका है. ऐसे में यह पंचायत चुनाव नीतीश के लिए और भी मायने रखता है.

सीएम नीतीश कुमार पंचायत चुनाव को हमेशा से तवज्जों देते आए हैं. सालों तक पंचायत चुनाव नहीं कराने को लेकर लालू राबड़ी पर निशाना भी साधते रहे हैं. कई बार सार्वजनिक मंच से लालू-राबड़ी पर चुटकी लेते हुए नीतीश कह चुके हैं कि 2005 के नवंबर में जनता ने हमें सेवा का मौका इसलिए दिया क्योंकि पति-पत्नी ने 15 सालों में विकास का कोई काम नहीं किया. पंचायत चुनाव तक नहीं हुए थे.

पंचायत चुनाव हो या महिलाओं से जुड़े अहम फैसले नीतीश इसे लेकर हमेशा गंभीर रहे हैं. यही कारण है कि नीतीश सरकार आई तो महिलाओं से लेकर हर वर्ग को आरक्षण दिया गया. बिहार ऐसा पहला राज्य है जहां महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण मिला है.

पंचायत चुनाव में सीधे तौर पर पार्टियां शामिल नहीं होती है. मगर कहीं न कहीं दखल जरूर रखतीं हैं. 2006 में पंचायत चुनाव को लेकर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अहम फैसले लिए थे. सुसुप्त अवस्था में पड़े पंचायतों को एक नई ऊर्जा देते हुए गांव की सरकार के प्रति लोगों को जागरुक किया था.

पंचायत चुनाव उम्मीदवार स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ते हैं. मगर इस पर राजनीतिक प्रभाव जरूर रहता है. पंचायत चुनाव में ज्यादातर लोग जाति और निजी संबंधों के आधार पर वोट डालते हैं. तब सवाल उठता है कि जब पार्टी बेस्ड चुनाव ही नहीं है तो पार्टियां ग्राउंड पर कैसे काम करती हैं? पार्टियों के ज्यादातर कार्यकर्ता और मतदाता पंचायत लेवल से होते हैं. सब विधायक या सांसद तो नहीं बन सकते. पार्टियां अपने कार्यकर्ताओं को पंचायत लेवल पर समायोजित करतीं हैं. मगर बिहार में पार्टी स्तर पर चुनाव नहीं होने से कार्यकर्ताओं और पार्टियों के लिए बड़ी समस्या होती है.

खुलकर कोई भी नेता झंडा बैनर के साथ प्रचार नहीं कर सकता है. न ही उम्मीदवार पार्टियों के झंडा-बैनर का इस्तेमाल कर सकते हैं. हालांकि बीजेपी के कई नेता बयान दे चुके हैं कि दूसरे राज्यों की तरह बिहार में भी पंचायत चुनाव पार्टी बेस्ड होनी चाहिए, मगर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इसके लिए तैयार नहीं होते हैं. नीतीश पंचायत चुनाव को पार्टी बेस्ड नहीं चाहते हैं.

चूंकि सीधे तौर पर कोई भी पार्टी इसमें शामिल नहीं होती है, मगर बैकडोर से दखल जरूर रखती है. मसलन बिहार की सत्ता में काबिज बीजेपी के साथ ही जेडीयू भी पंचायत चुनाव की सियासी जंग फतह करने की कवायद में जुट गई है. नीतीश कुमार की भी नजर पंचायत चुनाव पर बनी हुई है.

एक अप्रैल 2016 को बिहार में शराबबंदी क़ानून लागू किया गया था. सरकार को इस वजह से तगड़ा राजस्व घाटा भी हुआ, लेकिन राज्य सरकार ने समाज सुधार के नाम पर इसे लागू करने का फ़ैसला लिया. माना जा रहा है कि इसका फायदा भी पंचायत चुनाव के दौरान नीतीश कुमार को मिल सकता है क्योंकि नीतीश के इस फैसले से महिलाएं काफी खुश हैं. साथ ही पंचायत चुनाव में महिलाओं को 50 प्रतिशत का आरक्षण देना भी नीतीश कुमार के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है. महिलाएं नीतीश के फैसलों से काफी खुश नजर आती हैं. कई बार सीएम नीतीश की जमकर तारीफ भी कर चुकी है.

नीतीश कुमार 2005 से 2021 तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे हैं. मई 2014 से नौ महीने छोड़कर, जब जीतनराम मांझी को उन्होंने मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठा दिया था. ऐसे में बिहार पंचायत चुनाव 2021 सीएम का लिटमस टेस्ट तो होगा ही साथ ही उनके आगे की कार्य योजना की जमीन भी तैयार करने में मददगार साबित होगा. अब इंतजार किया जा रहा है कि क्या एक बार फिर गांव की सरकार सीएम के लिए मील का पत्थर साबित होगी और नीतीश अपनी राजनीतिक जमीन को इसके माध्यम से कैसे मजबूत कर पाएंगे. ये सब कुछ भविष्य के गर्भ में है.

आपको बताएं कि पंचायत चुनाव के लिए 24 सितंबर, 29 सितंबर, 8 अक्टूबर, 20 अक्टूबर, 24 अक्टूबर, 3 नवंबर, 15 नवंबर, 24 नवंबर, 29 नवंबर, 8 दिसंबर और 12 दिसंबर को मतदान होगा. चुनाव आयोग ने बताया कि मुखिया के 8072 पद, ग्राम पंचायत सदस्य के 113307 पद, पंचायत समिति सदस्य के 11104 पद, जिला परिषद सदस्य के 1160, ग्राम कचहरी सरपंच के लिए 8072 और पंच के लिए 113307 पदों पर चुनाव होंगे. कुल 255022 पदों के लिए वोट डाले जाएंगे.

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