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Vishwakarma Puja 2021: आज है विश्वकर्मा पूजा, जानें पूजा विधि, शुभ मुहूर्त और महत्व

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Published : Sep 17, 2021, 5:01 AM IST

सृजन के देवता भगवान विश्वकर्मा की पूजा करने के कई महत्व हैं. विश्वकर्मा जयंती पर पूजा करने की विधि, मुहूर्त सहित पौराणिक मान्यताओं को यहां विस्तार से पढे़ं...

Vishwakarma Puja 2021
Vishwakarma Puja 2021

पटनाः देवताओं के शिल्पी, निर्माण और सृजन के देवता (God Of Creation) कहे जाने वाले भगवान विश्वकर्मा (Lord Vishwakarma) की पूजा हर साल की भांति इस साल भी 17 सितंबर को यानि आज है. आज सर्वार्थ सिद्धि योग में विश्वकर्मा पूजा मनाने की मुर्हूत है. यह योग प्रात: 06 बजकर 07 मिनट से अगले दिन 10 सितंबर को प्रात: 03 बजकर 36 मिनट तक बना रहेगा.

इसे भी पढ़ें- बाजारों में लौटी रौनक से शिल्पकारों को बंधी आस, भगवान विश्वकर्मा की मूर्ति से पटे बाजार

आज के दिन विशेष तौर पर औजारों, निर्माण कार्य से जुड़ी मशीनों, दुकानों, कारखानों आदि की पूजा की जाती है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान विश्वकर्मा की कृपा से भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, व्यापार में तरक्की और उन्नति होती है. जो भी कार्य प्रारंभ किए जाते हैं, वे पूरे होते हैं. भगवान विश्वकर्मा को संसार का पहला इंजीनियर भी कहा जाता है.

विश्वकर्मा पूजा के मुहूर्त की बात करें तो 17 सितंबर को एक घंटे 32 मिनट तक राहुकाल रहेगा. इस दौरान विश्वकर्मा पूजन की मनाही है. आदि शिल्पी की जयंती पर राहुकाल की शुरुआत पूर्वाह्न 10:43 बजे से होगी. दोपहर 12:15 बजे राहुकाल समाप्त होगा.

शास्त्रों के अनुसार औजारों, निर्माण से जुड़ी मशीनों, दुकानों, कल-कारखानों आदि में पूजन के लिए मध्याह्न 12:16 बजे से सूर्यास्त तक का समय उपयुक्त है. विश्वकर्मा भगवान को प्रसन्न करने के लिए योग के साथ ही पूजा की विधि भी बहुत महत्वपूर्ण है.

विश्वकर्मा पूजा के लिए अपने कामकाज में उपयोग में आने वाली मशीनों को साफ करना चाहिए. फिर स्नान करके भगवान विष्णु के साथ विश्वकर्माजी की प्रतिमा की विधिवत पूजा करनी चाहिए. ऋतुफल, मिष्ठान्न, पंचमेवा, पंचामृत का भोग लगाना चाहिए. दीप-धूप आदि जलाकर दोनों देवताओं की आरती उतारनी चाहिए. इससे मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.

भगवान विश्वकर्मा के जन्म को लेकर शास्त्रों में अलग-अलग कथाएं प्रचलित हैं. वराह पुराण के अनुसार ब्रह्माजी ने विश्वकर्मा को धरती पर उत्पन्न किया. वहीं विश्वकर्मा पुराण के अनुसार, आदि नारायण ने सर्वप्रथम ब्रह्माजी और फिर विश्वकर्मा जी की रचना की. भगवान विश्वकर्मा के जन्म को देवताओं और राक्षसों के बीच हुए समुद्र मंथन से भी जोड़ा जाता है.

इस तरह भगवान विश्वकर्मा के जन्म को लेकर शास्त्रों में जो कथाएं मिलती हैं, उससे ज्ञात होता है कि विश्वकर्मा एक नहीं कई हुए हैं और समय-समय पर अपने कार्यों और ज्ञान से वो सृष्टि के विकास में सहायक हुए हैं.

पटनाः देवताओं के शिल्पी, निर्माण और सृजन के देवता (God Of Creation) कहे जाने वाले भगवान विश्वकर्मा (Lord Vishwakarma) की पूजा हर साल की भांति इस साल भी 17 सितंबर को यानि आज है. आज सर्वार्थ सिद्धि योग में विश्वकर्मा पूजा मनाने की मुर्हूत है. यह योग प्रात: 06 बजकर 07 मिनट से अगले दिन 10 सितंबर को प्रात: 03 बजकर 36 मिनट तक बना रहेगा.

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आज के दिन विशेष तौर पर औजारों, निर्माण कार्य से जुड़ी मशीनों, दुकानों, कारखानों आदि की पूजा की जाती है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान विश्वकर्मा की कृपा से भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, व्यापार में तरक्की और उन्नति होती है. जो भी कार्य प्रारंभ किए जाते हैं, वे पूरे होते हैं. भगवान विश्वकर्मा को संसार का पहला इंजीनियर भी कहा जाता है.

विश्वकर्मा पूजा के मुहूर्त की बात करें तो 17 सितंबर को एक घंटे 32 मिनट तक राहुकाल रहेगा. इस दौरान विश्वकर्मा पूजन की मनाही है. आदि शिल्पी की जयंती पर राहुकाल की शुरुआत पूर्वाह्न 10:43 बजे से होगी. दोपहर 12:15 बजे राहुकाल समाप्त होगा.

शास्त्रों के अनुसार औजारों, निर्माण से जुड़ी मशीनों, दुकानों, कल-कारखानों आदि में पूजन के लिए मध्याह्न 12:16 बजे से सूर्यास्त तक का समय उपयुक्त है. विश्वकर्मा भगवान को प्रसन्न करने के लिए योग के साथ ही पूजा की विधि भी बहुत महत्वपूर्ण है.

विश्वकर्मा पूजा के लिए अपने कामकाज में उपयोग में आने वाली मशीनों को साफ करना चाहिए. फिर स्नान करके भगवान विष्णु के साथ विश्वकर्माजी की प्रतिमा की विधिवत पूजा करनी चाहिए. ऋतुफल, मिष्ठान्न, पंचमेवा, पंचामृत का भोग लगाना चाहिए. दीप-धूप आदि जलाकर दोनों देवताओं की आरती उतारनी चाहिए. इससे मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.

भगवान विश्वकर्मा के जन्म को लेकर शास्त्रों में अलग-अलग कथाएं प्रचलित हैं. वराह पुराण के अनुसार ब्रह्माजी ने विश्वकर्मा को धरती पर उत्पन्न किया. वहीं विश्वकर्मा पुराण के अनुसार, आदि नारायण ने सर्वप्रथम ब्रह्माजी और फिर विश्वकर्मा जी की रचना की. भगवान विश्वकर्मा के जन्म को देवताओं और राक्षसों के बीच हुए समुद्र मंथन से भी जोड़ा जाता है.

इस तरह भगवान विश्वकर्मा के जन्म को लेकर शास्त्रों में जो कथाएं मिलती हैं, उससे ज्ञात होता है कि विश्वकर्मा एक नहीं कई हुए हैं और समय-समय पर अपने कार्यों और ज्ञान से वो सृष्टि के विकास में सहायक हुए हैं.

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