पटना: सनातन धर्म में नवरात्रि का अलग महत्व है. राजधानी के अखंडवासनि मंदिर की मान्यता केवल प्रदेश तक ही सीमित नहीं है. दूर-दराज से भी भक्त यहां अपनी मनोकामना लेकर पहुंचते हैं. मंदिर में सदियों से जल रही ज्योति के दर्शन मात्र से भक्तों का दुख दूर हो जाता है. नवरात्रि के अलावा अन्य दिनों में भी अखंडवासनि मंदिर में भक्तों का अपार हुजूम उमड़ता है.
115 साल पहले असम के कामाख्या मंदिर से लाई गई ज्योति
पटना के गोलघर के पास बना श्री अखंडवासनि मंदिर सदियों से आस्था का केंद्र बना हुआ है. इस मंदिर में सालों से अखंड ज्योति जल रही है. प्रचलित मान्यता के अनुसार इस ज्योति को असम के कामाख्या मंदिर से यहां लाया गया है. इस मंदिर में दो ज्योति जलाने की परंपरा है. एक सरसों तेल की और एक घी की.
नवरात्रि में विशेष विधि से होती है पूजा
बता दें कि अखंडवासनि मंदिर में मां काली की प्रतिमा के साथ माता की बंगला मुखी प्रतिमा स्थापित है. नवरात्रि के समय यहां माता को सात हल्दी, नौ लाल फूल और एक पैकेट सिंदूर चढ़ाने की परंपरा है. कहा जाता है कि ऐसा करने से भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है.
हर मंगलवार को लगता है भक्तों का तांता
नवरात्र में सप्तमी, अष्टमी और नवमी के दिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु यहां दर्शन-पूजन करने के लिए पहुंचते हैं. हर दिन इस मंदिर में त्रिकाल आरती भी होती है. हर मंगलवार को इस मंदिर का नजारा अद्भूत होता है. हाथ में पूजा की सामाग्री लिए भक्त तड़के सुबह से ही लाइन लगा लेते हैं. मंगलवार को यहां भक्तों का तांता लगता है.
तीन पढ़ियों से एक ही परिवार कर रहा सेवा
मंदिर पुजारी बताते हैं कि सन् 1914 में यह मंदिर झोपड़ीनुमा था. भक्तों की श्रद्धा और विश्वास के कारण देखते ही देखते आज यह पटना के प्रमुख उपासना स्थलों में शुमार हो गया है. तीन पीढ़ियों से एक ही परिवार माता की सेवा करने में लगा है.
1914 में लाया गया था अखंड दीप
मौजूदा व्यवस्था पर पुजारी की मानें तो सन् 1914 में उनके बाबा आयुर्वेदाचार्य डॉ. विश्वनाथ तिवारी ने इस अखंड दीप को कामाख्या से लाकर यहां स्थापित किया था तब से दो अखंड दीप मंदिर में लगातार जल रहे हैं. 115 वर्षों से इस मंदिर की ज्योति लगातार जल रही है. अखंड ज्योति के कारण ही इस मंदिर का नाम नाम अखंडवासनि मंदिर पड़ा है.