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नेताओं की वादाखिलाफी और राजनीति के अपराधीकरण से बढ़ा बिहार में NOTA का इस्तेमाल - Use of NOTA in Lok Sabha elections

भारत में उम्मीदवारों की सूची में नोटा को 2013 में उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद शामिल किया गया था. नोटा से मतदाताओं को एक ऐसा विकल्प मिला जिससे वे अगर अपने क्षेत्र के किसी उम्मीदवार को पसंद नहीं करते हैं तो वह अपना मतदान नोटा पर कर सकते हैं.

trend of using NOTA has increased in recent elections
नोटा
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Published : Dec 28, 2019, 6:34 AM IST

पटना: बिहार में राजनीति का अपराधीकरण लोकतंत्र के लिए बड़ी चुनौती है. सुप्रीम कोर्ट ने कई फैसलों के माध्यम से राजनीति के अपराधीकरण पर ब्रेक लगाने की कोशिश की है. इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद चुनावों में भी मतदाताओं को नोटा का अधिकार दिया गया जिसके माध्यम से वोटर्स अगर किसी भी प्रत्याशी को पसंद न करते हों तो नोटा का इस्तेमाल कर विरोध जता सकते हैं. इसी साल हुये लोकसभा चुनावों में नोटा इस्तेमाल करने में बिहार के मतदाता पूरे देश में सबसे आगे रहे.

17वें लोकसभा चुनावों में पूरे देश के कुल 65.13 लाख मतदाताओं ने नोटा का प्रयोग किया था, जो कुल वोटों का 1.06 प्रतिशत था. बिहार में 40 लोकसभा सीटों पर कुल पड़े वोटों का 2 प्रतिशत वोट नोटा के नाम रहा, जिसकी संख्या 8.17 लाख रही.

पेश है रिपोर्ट.

नेताओं की विश्वसनीयता हुई है कम
बिहार में इतने बड़े पैमाने पर हुये नोटा के इस्तेमाल पर राजनीतिक विश्लेषक डी एम दिवाकर का कहना है कि सरकार और नेताओं को जो डिलीवर करना चाहिए, वह नहीं कर पा रहे हैं. राजनीति का अपराधीकरण भी बड़ी एक वजह है. वहीं, चुनाव सुधार के लिए काम करने वाली संस्था एडीआर के बिहार संयोजक राजीव कुमार ने बताया कि बिहार जैसे राज्यों में नेताओं की विश्वसनीयता कम हुई है. लोगों की मूलभूत आवश्यकताएं पूरी नहीं हो रही. नेताओं की कथनी और करनी में बड़ा फर्क है. जिस कारण से मतदाता नोटा का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल कर रहे हैं.

2013 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद नोटा को शामिल किया गया
भारत में उम्मीदवारों की सूची में नोटा को 2013 में उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद शामिल किया गया था. नोटा से मतदाताओं को एक ऐसा विकल्प मिला जिससे वे अगर अपने क्षेत्र के किसी उम्मीदवार को पसंद नहीं करते हैं तो वह अपना मतदान नोटा पर कर सकते हैं.

नोटा को लेकर बंटा मत
हालांकि, नोटा को लेकर सियासी गलियारों में सवाल उठते रहते हैं. नेताओं का मानना है कि लोगों को पक्ष या विपक्ष में मतदान करना चाहिए. नोटा का इस्तेमाल लोकतंत्र के लिए सही नहीं है. बहरहाल, नोटा के औचित्य पर लगातार डिबेट्स हो रहे हैं और इसे राइट टू रिजेक्ट या राइट टू रिकॉल के अधिकारों के तौर पर मान्यता दिये जाने की मांग लगातार चल रही है. राजनीतिक विश्लेषकों द्वारा कहा जा रहा है कि नोटा को वैल्यू नहीं देने से चुनावों में जनता का रुझान कम हो सकता है, जो लोकतंत्र की सेहत के लिए ठीक नहीं है.

पटना: बिहार में राजनीति का अपराधीकरण लोकतंत्र के लिए बड़ी चुनौती है. सुप्रीम कोर्ट ने कई फैसलों के माध्यम से राजनीति के अपराधीकरण पर ब्रेक लगाने की कोशिश की है. इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद चुनावों में भी मतदाताओं को नोटा का अधिकार दिया गया जिसके माध्यम से वोटर्स अगर किसी भी प्रत्याशी को पसंद न करते हों तो नोटा का इस्तेमाल कर विरोध जता सकते हैं. इसी साल हुये लोकसभा चुनावों में नोटा इस्तेमाल करने में बिहार के मतदाता पूरे देश में सबसे आगे रहे.

17वें लोकसभा चुनावों में पूरे देश के कुल 65.13 लाख मतदाताओं ने नोटा का प्रयोग किया था, जो कुल वोटों का 1.06 प्रतिशत था. बिहार में 40 लोकसभा सीटों पर कुल पड़े वोटों का 2 प्रतिशत वोट नोटा के नाम रहा, जिसकी संख्या 8.17 लाख रही.

पेश है रिपोर्ट.

नेताओं की विश्वसनीयता हुई है कम
बिहार में इतने बड़े पैमाने पर हुये नोटा के इस्तेमाल पर राजनीतिक विश्लेषक डी एम दिवाकर का कहना है कि सरकार और नेताओं को जो डिलीवर करना चाहिए, वह नहीं कर पा रहे हैं. राजनीति का अपराधीकरण भी बड़ी एक वजह है. वहीं, चुनाव सुधार के लिए काम करने वाली संस्था एडीआर के बिहार संयोजक राजीव कुमार ने बताया कि बिहार जैसे राज्यों में नेताओं की विश्वसनीयता कम हुई है. लोगों की मूलभूत आवश्यकताएं पूरी नहीं हो रही. नेताओं की कथनी और करनी में बड़ा फर्क है. जिस कारण से मतदाता नोटा का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल कर रहे हैं.

2013 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद नोटा को शामिल किया गया
भारत में उम्मीदवारों की सूची में नोटा को 2013 में उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद शामिल किया गया था. नोटा से मतदाताओं को एक ऐसा विकल्प मिला जिससे वे अगर अपने क्षेत्र के किसी उम्मीदवार को पसंद नहीं करते हैं तो वह अपना मतदान नोटा पर कर सकते हैं.

नोटा को लेकर बंटा मत
हालांकि, नोटा को लेकर सियासी गलियारों में सवाल उठते रहते हैं. नेताओं का मानना है कि लोगों को पक्ष या विपक्ष में मतदान करना चाहिए. नोटा का इस्तेमाल लोकतंत्र के लिए सही नहीं है. बहरहाल, नोटा के औचित्य पर लगातार डिबेट्स हो रहे हैं और इसे राइट टू रिजेक्ट या राइट टू रिकॉल के अधिकारों के तौर पर मान्यता दिये जाने की मांग लगातार चल रही है. राजनीतिक विश्लेषकों द्वारा कहा जा रहा है कि नोटा को वैल्यू नहीं देने से चुनावों में जनता का रुझान कम हो सकता है, जो लोकतंत्र की सेहत के लिए ठीक नहीं है.

Intro: बिहार में राजनीति का अपराधीकरण लोकतंत्र के लिए बड़ी चुनौती थी लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद राजनीति के अपराधीकरण पर ब्रेक लगी बाहुबलियों ने बीच का रास्ता निकाल लिया और अपनी पत्नी को मैदान में उतारने की प्रथा चल पड़ी जनता ने भी बिहार में जमकर नोटा का इस्तेमाल वादाखिलाफी करने वाले नेताओं और बाहुबली और को नोटा के जरिए जवाब दिया जाए


Body:देश के लोकतांत्रिक प्रणाली में साल 2014 से आम लोगों के लिए एक विकल्प खुला और चुनाव आयोग ने यह व्यवस्था दी कि अगर आपको उम्मीदवारों की सूची में कोई पसंद ना हो तो आप नोटा का इस्तेमाल कर सकते हैं बिहार जैसे राज्यों में वादाखिलाफी करने वाले नेताओं की भरमार है इसके अलावा राजनीति में बाहुबलियों के प्रवेश पर ब्रेक लगने के बाद बाहुबली अपनी पत्नियों को मैदान में उतारने लगे नतीजा यह हुआ कि आम लोगों ने नोटा का इस्तेमाल जमकर किया


Conclusion:पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान बिहार में मतदाताओं ने सबसे ज्यादा नोटा का इस्तेमाल किया कुल मिलाकर 8 लाख से ज्यादा मतदाताओं ने नोटा का इस्तेमाल किया बिहार के जहानाबाद बेगूसराय गोपालगंज मधुबनी पश्चिम चंपारण अररिया दरभंगा सारण समस्तीपुर भागलपुर गया नवादा आरा और जमुई जिलों में मतदाताओं ने जमकर नोटा का इस्तेमाल किया ।
दूसरे स्थान पर राजस्थान राज जहां 327000 मतदाताओं ने नोटा का इस्तेमाल किया राजस्थान में जितने वोट नोटा के पक्ष में गए उससे कम वोट सीपीआई सीपीआईएम और बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशियों को हासिल हुए बिहार में 40 लोकसभा सीटों पर कुल 2% मतदान नोटा के पक्ष में गए।
लूटा को लेकर सियासी गलियारे में सवाल उठते रहते हैं नेताओं का मानना है कि लोगों को पक्ष या विपक्ष में मतदान करना चाहिए भाजपा कोटे के मंत्री विनोद नारायण झा का कहना है कि नोटा का इस्तेमाल लोकतंत्र के लिए सही नहीं है या तो आप विपक्ष में मतदान करें या पक्ष में मतदान करें।
चुनाव सुधार के लिए काम करने वाली संस्था एडीआर के बिहार संयोजक राजीव कुमार का कहना है कि बिहार जैसे राज्यों में नोटा का इस्तेमाल इसलिए बड़ा है कि नेताओं की विश्वसनीयता कम हुई है लोगों की मूलभूत आवश्यकताएं पूरी नहीं हो रही है नेताओं के कथनी और करनी में फर्क है ।
राजनीतिक विश्लेषक डीएम दिवाकर का कहना है कि सरकार और नेताओं को जो डिलीवरी करना चाहिए वह नहीं कर पा रहे हैं राजनीति का अपराधीकरण भी एक वजह है डीएम दिवाकर ने कहा कि जो काम संतो को करना चाहिए वह आज राजनेता कर रहे हैं समाज सुधार का काम संतों का है लेकिन उस काम में आज राजनेता जुट गए हैं
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