पटना: बिहार में महज 10 दिन पहले पूर्व शिक्षा मंत्री मेवालाल चौधरी की मौत किस वजह से हुई उसे कोई भूला नहीं है. पूर्व शिक्षा मंत्री मेवालाल चौधरी ने 12 अप्रैल को मुंगेर में अपनी आरटी-पीसीआर जांच करायी थी, लेकिन उनको कोरोना जांच रिपोर्ट 16 अप्रैल को शाम में मिली. इस बीच उनकी तबीयत खराब होती चली गई. जब वे पटना के आईजीआईएमएस पहुंचे तो वहां उन्हें इसलिए एडमिट नहीं किया गया, क्योंकि उनके पास आरटी-पीसीआर पॉजिटिव की रिपोर्ट नहीं थी.
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कोरोना से हालात जस के तस
कोरोना की रैंडम जांच में मेवालाल चौधरी को निगेटिव बताया गया था और जब वह जिद पर अड़े तब उन्हें एक निजी अस्पताल में ले जाया गया और वहां एचआर सीटी स्कैन कराया तो इस बात की पुष्टि हुई कि उन्हें कोरोना का गंभीर संक्रमण है, लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी और समय पर इलाज नहीं मिलने की वजह से पूर्व शिक्षा मंत्री की मौत हो गई. इसे लेकर खासा हंगामा भी मचा, लेकिन स्थिति जस की तस है.
भर्ती होने के लिए रिपोर्ट जरूरी
पिछले दिनों दरभंगा में भी एक ऐसा ही मामला सामने आया, जब एक मरीज ने निजी अस्पताल का दरवाजा खटखटाया और ये कहा कि मेरी स्थिति खराब है. मुझे सांस लेने में परेशानी हो रही है तो अस्पताल ने उसे कोविड-19 की रिपोर्ट लाने को कहा. मरीज ने ये भी कहा कि वह जांच करा चुका है, लेकिन उसके पास रिपोर्ट नहीं आई है. जिस पर अस्पताल ने उसे एडमिट करने से मना कर दिया. बाद में उस मरीज ने जब 2 दिन बाद अपनी रिपोर्ट लाकर अस्पताल को दी तब मुश्किल से उसे भर्ती किया गया.
इलाज के लिए पॉजिटिव रिपोर्ट जरूरी
अब तक बिहार के अस्पतालों ने इस बड़ी घटना से कोई सीख नहीं ली है. यही वजह है कि अब भी बिहार के कई अस्पताल कोरोना वायरस रिपोर्ट लाने पर ही मरीज को एडमिट करते हैं, जिसकी वजह से कई बार मरीजों की हालत गंभीर हो जाती है और कई मरीजों की जान भी चली जाती है. इस गंभीर बात का जिक्र करते हुए राष्ट्रीय जनता दल के विधायक सुधाकर सिंह ने स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव को एक पत्र लिखा है.
''कोरोना वायरस से संक्रमित कई ऐसे मरीज हैं, जिनकी आरटी-पीसीआर रिपोर्ट निगेटिव आई है. लेकिन एचआर सीटी स्कैन रिपोर्ट में कोरोना वायरस उनके लंग्स को प्रभावित कर रहा है. जब ऐसे मरीज उचित इलाज के लिए सरकारी या निजी अस्पताल जाते हैं, तो उन्हें अस्पताल प्रबंधन इलाज करने से साफ मना कर देता है. ये केवल इसलिए क्योंकि उनका आरटी-पीसीआर रिपोर्ट निगेटिव है.''- सुधाकर सिंह, विधायक, आरजेडी
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दिल्ली हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण आदेश
सुधाकर सिंह ने सरकार को इस बात की याद दिलाई कि दिल्ली हाईकोर्ट ने ऐसे ही एक मामले में आदेश पारित किया था कि ऐसे मरीज जिनके सिटी स्कैन रिपोर्ट में लंग्स कोरोना वायरस की वजह से प्रभावित हो गया है, उन्हें भी सरकारी और निजी अस्पताल अन्य कोरोना मरीजों की तरह सुनिश्चित इलाज मुहैया कराएं, लेकिन बिहार में अस्पताल प्रबंधन ऐसे मरीजों के इलाज से मना कर रहे हैं, जिससे उनकी स्थिति दिन-प्रतिदिन बिगड़ती जा रही है और कई बार ऐसे मरीजों की मृत्यु तक हो जाती है.
क्या कहते हैं IMA के डॉक्टर?
इस बारे में आईएमए बिहार के उपाध्यक्ष डॉ.अजय कुमार ने ईटीवी भारत को बताया कि अगर मरीज को कोविड-19 के लक्षण हैं और एचआर सिटी स्कैन से उसकी बीमारी स्पष्ट हो रही है, तो अस्पताल ऐसे मरीज के इलाज से इंकार नहीं कर सकते हैं. भले ही उसकी आरटी-पीसीआर की जांच उपलब्ध नहीं हो या वो निगेटिव हो.
क्या कहते हैं सोशल एक्सपर्ट?
सामाजिक कार्यकर्ता विकास चंद्र उर्फ गुड्डू बाबा ने इस मामले में स्पष्ट किया कि ऐसे मामले में पटना हाईकोर्ट ने एक साल पहले आदेश जारी किया था, जिसमें कहा गया था कि कोई भी अस्पताल किसी भी मरीज के इलाज से इंकार नहीं कर सकते हैं. उन्हें सबसे पहले मरीज को इलाज मुहैया कराना होगा. ऐसी स्थिति में जब कोरोना महामारी का कहर है, तब मरीज से पॉजिटिव रिपोर्ट की डिमांड करना कहीं से भी उचित नहीं है.
क्या कहते हैं मेडिकल एक्सपर्ट?
मेडिकल एक्सपर्ट डॉ.दिवाकर तेजस्वी ने बताया कि आज के समय में अगर आरटी-पीसीआर जांच के वक्त सैंपलिंग सही तरीके से नहीं हुई, तो रिपोर्ट निगेटिव भी आ सकती है. इसके अलावा जांच में देरी होने या अन्य वजहों से भी आरटी-पीसीआर रिपोर्ट निगेटिव आ सकती है. इसलिए रिपोर्ट के आधार पर मरीज को अस्पताल में जगह नहीं देना उचित नहीं है.
''एचआर सिटी स्कैन आज के समय में सबसे प्रमाणिक तरीका है, जिससे ये स्पष्ट हो जाता है कि मरीज को कोविड की वजह से कितना असर हुआ है और इसी आधार पर अस्पताल में उसका इलाज तुरंत शुरू किया जाना चाहिए, ताकि मरीज की जान बचाई जा सकें''- डॉ.दिवाकर तेजस्वी, मेडिकल एक्सपर्ट
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रिपोर्ट के आधार पर मरीजों की भर्ती
महामारी के वक्त जब चारों ओर चीख-पुकार मची है और बिहार का हर व्यक्ति किसी न किसी तरह प्रभावित हुआ है, ऐसे वक्त में अस्पताल अगर पॉजिटिव और निगेटिव रिपोर्ट के आधार पर मरीजों को भर्ती करने से इंकार कर रहे हैं तो ये कहीं से जायज नहीं है. इस गंभीर विषय पर उम्मीद है कि सरकार की ओर से त्वरित और ठोस कार्रवाई होगी.
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