पटना: राजनीति भी गजब रंग की होती है, इसमें अपनी बात ही सियासत है और सियासत में सिर्फ अपनी बात ही होनी चाहिए. झारखंड (Jharkhand) में भी कुछ इसी तरह की राजनीति चल रही है, जहां झारखंड में वर्तमान में चल रही सरकार यह कह रही है कि झारखंड का बिहारी करण नहीं होने देंगे और अब झारखंड में पार्टी की मजबूती के लिए पहुंचे तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) ने कह दिया कि झारखंड हमारा पुराना घर है.
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तेजस्वी यादव बिहार में काफी मजबूती से खड़े हैं और झारखंड में पार्टी को मजबूत करना चाह रहे हैं, लेकिन झारखंड ने बिहार पर जो तंज कसा है, उसके बारे में न तो झारखंड में सवाल पूछा गया और ना ही झारखंड की सियासत इसका जवाब देने के लिए तैयार है.
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आज राँची में झारखंड के माननीय मुख्यमंत्री बड़े भाई @HemantSorenJMM जी से शिष्टाचार भेंट की। झारखंड सरकार में राजद कोटे से श्रम मंत्री श्री @BhoktaSatyanand जी भी साथ थे। pic.twitter.com/U9OmwhPX1q
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सवाल हर बिहारी इसलिए भी पूछ रहा है कि बिहार की भोजपुरी (Bhojpuri) भाषा को लेकर झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन (Hemant Soren) ने अमर्यादित बयान दिया है. मगही, मैथिली, अंगिका जैसी भाषा का कोई मतलब ही झारखंड में नहीं है. अब तेजस्वी यादव अपने पुराने घर गए हैं और अपने से ही कह दिया है कि 'झारखंड' हमारा 'पुराना घर' है. अब सवाल यह उठ रहा है कि जिस भोजपुरी भाषा से उनकी पैदाइश है और उनके खानदान की शुरुआत अगर होती है तो उसके लिए भाषा भी भोजपुरी है, दादी मरछिया देवी भोजपुरी के अलावा दूसरी भाषा बोल ही नहीं पाई.
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अब सवाल यह उठ रहा है कि जिस भाषा के लोग वहां पार्टी को मजबूत करने गए हैं और हेमंत सोरेन ने जो बयान दिया है उसके बीच समन्वय होगा कैसे. अब तेजस्वी यादव को जवाब इसलिए भी देना होगा कि विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बिहार की सबसे बड़ी पार्टी के कर्ताधर्ता हैं और लालू की सियासत (Politics of Lalu) के सबसे बड़े खेवनहार भी तेजस्वी हैं.
तेजस्वी की एक बात बिल्कुल सही है कि झारखंड उनका पुराना घर है, क्योंकि अगर सरकारी पन्ने में खोजा जाए तो लालू यादव (Lalu Yadav) ने किसी अस्पताल में रहने के एवज में 8 लाख का भुगतान नहीं किया है, लेकिन झारखंड में रहने के दौरान लालू यादव ने एक अस्पताल के लिए 8 लाख का भुगतान भी किया है, तो संभव है कि तेजस्वी यादव को तो पुराना घर याद ही होगा, क्योंकि पैसा वहां खर्च हुआ है. लेकिन, बिहार के बारे में जरा उस कर्ज को भी सोचना होगा और बिहार पर लगे आरोप और उसकी जवाबदेही के फर्ज को भी कि अगर तेजस्वी अपने पुराने घर गए हैं, तो फिर पुरानी बातों का मजाक क्यों उड़ रहा है.
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हेमंत सोरेन ने पहले भी कह दिया है कि बिहार के लोगों को अब शायद ही झारखंड में नौकरी मिले. झारखंड सरकार यह नियम ला रही है कि अब झारखंड के लोगों के लिए ही कुछ नौकरी हैं जो सीधे तौर पर आरक्षित रहेंगी. अब जिन बिहारियों का झारखंड पुराना घर है उनको भी वैसी नौकरी से महरूम होना पड़ेगा. बिहार सवाल पूछ रहा है कि आखिर झारखंड से तेजस्वी यादव क्या ले करके आएंगे? क्योंकि, भाषा पर तंज आ चुका है, 'झारखंड का बिहारी करण नहीं होने दिया जाएगा' यह भी हेमंत सोरेन ने कह दिया है. तो बिहार की सियासत झारखंड में किस रूप में स्थापित होगी? ये तो तेजस्वी यादव ही जानें, लेकिन बिहार की जो फजीहत हुई है उसका जवाब तेजस्वी नहीं मांगेंगे, यह बिल्कुल निश्चित है.
महाराष्ट्र में बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश के लोगों को लेकर तंज कसते रहते हैं. कई बार इन प्रदेश के लोगों को दिक्कतें भी आई हैं, लेकिन झारखंड बिहारी करण की बात कहें और उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड के लोगों को नकार दें और इस तरह की सियासत में देश सिमट जाए तो राजनीति करने वालों से सवाल तो पूछा ही जाएगा कि आप फिर किस घर में इस देश को ले जाने की कोशिश कर रहे हैं.
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बिहार के तमाम सत्ताधारी दल झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के बयान पर आपत्ति जताएं या ना जता पाएं, लेकिन जिन लोगों को झारखंड में अपनी जड़ें मजबूत करनी है उन्हें तो यह जवाब देना ही होगा. जब झारखंड का बिहारी करण नहीं होगा तो फिर बिहार की पार्टियां झारखंड में अपने को मजबूत कैसे कर पाएंगी? अब सियासत है तो चर्चा होनी भी लाजमी है, और सियासत में चर्चा उसी बात की होती है जो फायदे की हो. बिहार सरकार यह सवाल पूछे कि भाषा पर इतना बड़ा आरोप हेमंत सोरेन ने लगाया क्यों? और बिहारी करण होता क्या है? क्योंकि आज भी झारखंड बिहार का बहुत कुछ छोड़ा हुआ ही पैसे के रूप में ले रहा है, जिसकी अदायगी आज भी झारखंड के ऊपर कर्ज के रूप में है.
अब तेजस्वी यादव हेमंत सोरेन से मिल लिए, मिलने के बाद कह दिए कि केंद्र सरकार हेमंत सोरेन की पार्टी और सरकार के साथ बहुत अन्याय कर रही है, लेकिन हेमंत सोरेन ने बिहार के साथ जो किया उसके ऊपर तेजस्वी यादव ने एक शब्द नहीं कहा. फर्ज और कर्ज दोनों का बोझ बिहार ने तेजस्वी के कंधे पर डाल रखा है. अब दुहाई जमीर की तो देनी पड़ेगी कि झारखंड में बिहार का छोड़कर क्या आते हैं और झारखंड बिहारी करण नहीं होने देगा, इसे कितना तोड़ पाते हैं, क्योंकि सवाल और भी इसी के साथ है कि 15 नवंबर 2000 को जब बिहार से झारखंड बंट रहा था तो तेजस्वी के पिताजी लालू यादव ने कहा था कि झारखंड का बंटवारा मेरे शरीर के हिस्से होने जैसा है.
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लेकिन, टुकड़े टुकड़े में बैठी 'भाषा' और अब बदल रही सियासत की 'परिभाषा' में झारखंड जिस रूप में बिहार में स्थापित हो रहा है, बिहार के नेताओं को पूछना जरूर पड़ेगा. क्योंकि भोजपुरी भाषा झारखंड में अमर्यादित भाषा हो गई है. झारखंड का बिहारी करण नहीं होगा यह हेमंत कह चुके हैं, ऐसे में इन दोनों सवालों का उत्तर कैसे मिलेगा और जवाब कौन देगा?