पटना: बिहार में शिक्षा विभाग (Education Department) के फरमान से एक बार फिर हजारों शिक्षक परेशान हैं. इनमें प्रमुख तौर पर फर्जी शिक्षकों (Fake Teachers) से मेरिट लिस्ट (Merit List) की मांग और ट्रांसफर के लिए आवेदन करने वाले शिक्षकों से उनके सर्टिफिकेट के जांच (Verification Of Certificates) की पुष्टि का मामला है. जिसको लेकर शिक्षकों ने शिक्षा विभाग को पत्र लिखकर इन बातों पर आपत्ति जताई है. जानकारी के मुताबिक, शिक्षा विभाग शिक्षक संघों की आपत्ति पर आंतरिक संशोधन को तैयार हो गया है.
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बिहार में साल 2014 में मामला सामने आया था कि फर्जी प्रमाण पत्र के आधार पर पंचायती राज संस्थाओं के माध्यम से शिक्षक बहाल हो गए हैं. मामले की गंभीरता को देखते हुए हाईकोर्ट ने वर्ष 2015 में जांच का जिम्मा निगरानी विभाग को सौंप दिया. लेकिन अब तक यह जांच किसी मुकाम पर नहीं पहुंच पाई है. जांच को मुकाम तक पहुंचाने के लिए शिक्षा विभाग ने ऑनलाइन पोर्टल के जरिए आरोपित शिक्षकों का सर्टिफिकेट अपलोड करने का आदेश दिया, लेकिन इस आदेश में इन शिक्षकों से मेधा सूची की भी मांग की गई है.
बिहार राज्य प्राथमिक शिक्षक संघ के कार्यकारी अध्यक्ष मनोज कुमार ने पूछा है कि आखिर सरकार शिक्षकों से मेरिट लिस्ट की मांग क्यों कर रही है. जबकि मेरिट लिस्ट बनाना और इसे मेंटेन करना नियोजन इकाईयों का काम है.
"निगरानी विभाग जांच कर रही है. इस जांच में करीब-करीब 86 हजार से अधिक शिक्षकों का होल्डर निगरानी विभाग को प्राप्त है. जिसमें शिक्षकों को शैक्षणिक और प्रशैक्षणिक प्रमाण पत्र मेघा सूची ईकाई को देना था. लेकिन नियोजन ईकाइ द्वारा मेघा सूची नहीं जमा किय गया. जिसके कारण शैक्षणिक और प्रशैक्षणिक प्रमाण पत्र निगरानी विभाग को प्राप्त नहीं हो सका. इसमें दोष नियोजन इकाई का है." - मनोज कुमार, कार्यकारी अध्यक्ष, प्राथमिक शिक्षक संघ
शिक्षकों के ट्रांसफर में मुश्किलें?
इधर, जिन शिक्षकों को ट्रांसफर का मौका मिलने वाला है. उनके लिए भी शिक्षा विभाग ने कई मुश्किलें खड़ी कर दी हैं. शिक्षकों का आरोप है कि ट्रांसफर के लिए आवेदन देने के वक्त इस बात की पुष्टि करनी है कि उनके सर्टिफिकेट की जांच हुई है या नहीं. जब तक शिक्षा विभाग की ओर से ऐसे शिक्षकों को कोई सर्टिफिकेट या कोई ऐसा प्रूफ नहीं दिया गया जिससे ये साबित कर सके की उनके सर्टिफिकेट की जांच हुई है. ऐसे में ट्रांसफर के लिए शिक्षक कैसे आवेदन कर पाएंगे.
"पंचायती राज्य द्वारा नियुक्त ऐसे शिक्षक जिनके सर्टिफिकेट का सत्यापन हो गया है. उन्ही का ट्रांसफर होना है. तो पूरे राज्य में एक भी ऐसे शिक्षक नहीं जो पंचायती राज्य द्वारा नियुक्त जिनको यह प्रमाण पत्र मिला हो कि उनके सर्टिफिकेट का सत्यापन हो गया है. साथ ही साथ इस अधिसूचना में अलग से रिक्ती प्रकाशित की बात कही गई है. तो इस रिक्ती के संबंध में जिलों को सूचना नहीं दी गई है." - मनोज कुमार, कार्यकारी अध्यक्ष, प्राथमिक शिक्षक संघ
शिक्षक संघों के आपत्ति पर संशोधन
इन तमाम मुद्दों पर शिक्षा विभाग का कोई अधिकारी खुलकर बोलने को तैयार नहीं है. सूत्रों के मुताबिक, शिक्षा विभाग ने शिक्षक संघों के आपत्ति पर कुछ संशोधन आंतरिक स्तर पर किए हैं. इनमें प्रमुख तौर पर फर्जी शिक्षकों से मांगे गए सर्टिफिकेट में मेधा सूची को ऑप्शनल रखा गया है. यानी जिन शिक्षकों के पास उनके नियोजन से संबंधित मेधा सूची उपलब्ध हो सिर्फ वहीं मेधा सूची जमा करेंगे. बाकी लोगों के लिए यह अनिवार्य नहीं होगा.
प्रमाणपत्र सत्यापित है या नहीं?
वहीं, ट्रांसफर के लिए आवेदन करने वाले दिव्यांग और महिलाओं समेत पुरुषों को भी अपने आवेदन में सिर्फ हां या ना लिखकर इस बात की पुष्टि करनी है कि उनके सर्टिफिकेट की जांच हुई है या नहीं. इन तमाम बातों के बावजूद एक बड़ा सवाल शिक्षा विभाग की कार्यप्रणाली को लेकर उठ रहा है.
दोषी पाए जाने वालों पर होगी कार्रवाई?
निगरानी जांच पटना हाई कोर्ट के दिशा निर्देश पर चल रही है. जिसमें ना सिर्फ शिक्षकों के सर्टिफिकेट की जांच बल्कि फर्जीवाड़े में नियोजन इकाइयों की भूमिका की जांच के बात भी कही गई थी. लेकिन अब तक नियोजन इकाइयों से पूछताछ को लेकर शिक्षा विभाग ने कोई पहल नहीं की है कि आखिर किस तरह से नियोजन इकाइयों की भूमिका की जांच होगी और दोषी पाए जाने पर उन पर क्या कार्रवाई होगी.
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क्या है पूरा मामला
दरअसल बिहार में बड़ी संख्या में ऐसे शिक्षक पकड़े जा चुके हैं जो फर्जी सर्टिफिकेट के आधार पर बिना पर्याप्त योग्यता के नियोजित शिक्षक के पद पर काम कर रहे थे और वेतन भी उठा रहे थे. इस मामले में वर्ष 2015 में पटना हाई कोर्ट की निगरानी में जांच शुरू हुई थी. बिहार में विजिलेंस डिपार्टमेंट ने वर्ष 2006 से वर्ष 2015 के बीच नियुक्त ऐसे करीब तीन लाख से ज्यादा शिक्षकों के सर्टिफिकेट की जांच कर रही है. निगरानी विभाग को कई नियोजन इकाइयों से एक लाख से ज्यादा शिक्षकों के फोल्डर नहीं मिले. जिसकी वजह से यह जांच अब तक पूरी नहीं हुई है.
आखिरकार दिसंबर महीने में शिक्षा विभाग ने फैसला किया कि एक वेब पोर्टल बनाकर ऐसे शिक्षकों को अपने डॉक्यूमेंट अपलोड करने को कहा जाएगा जिनके फोल्डर निगरानी को अब तक नहीं मिले हैं. शिक्षा विभाग के मुताबिक अब यह वेब पोर्टल तैयार हो गया है. इस संबंध में प्राथमिक शिक्षा निदेशक डॉ रणजीत कुमार सिंह ने सभी जिला शिक्षा पदाधिकारियों को एक पत्र जारी किया है. जिसमें सभी जिला शिक्षा पदाधिकारियों को अपने जिले में ऐसे शिक्षकों के बारे में पूरी जानकारी एनआईसी की वेबसाइट पर अपलोड करने का आदेश दिया है. जिनके फोल्डर निगरानी को नहीं मिले हैं. 17 मई तक सभी जिला शिक्षा पदाधिकारियों को अपने-अपने जिले से ऐसे शिक्षकों की सूची अपलोड करनी है. इसकी एक कॉपी प्राथमिक शिक्षा निदेशक के ई मेल पर भी भेजनी है.
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