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नीतीश कुमार के अति पिछड़ा विरोधी रवैया के कारण निगम चुनाव टलने का खतरा: सुशील मोदी

बिहार नगर निकाय चुनाव (Bihar Municipal Election) को लेकर पेंच फंस गया है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद मामला उलझता देख रहा है. बिहार सरकार द्वारा गठित आयोग के गठन और प्रक्रिया पर ही सुप्रीम कोर्ट ने सवाल खड़े किए हैं. पढ़ें पूरी खबर...

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Published : Nov 30, 2022, 5:57 PM IST

पटना: बिहार के नगर निकाय चुनाव पर रोक लगी है. कोर्ट के आदेश पर बिहार सरकार ने मामला सुलझाने के लिए एक आयोग गठित किया. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने आयोग की परदर्शिता को लेकर सवाल खड़े (Supreme Court On Bihar Municipal Election) कर दिए हैं. ऐसे में एक बार फिर बिहार नगर निकाय चुनाव का मामला अटकता नजर आ रहा है.

यह भी पढ़ें: बिहार नगर निकाय चुनाव : अतिपिछड़ा के लिए बने डेडिकेटड कमीशन पर रोक, सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला

"जदूय और राजद नेता आयोग में शामिल ": इसको लेकर बीजेपी के राज्यसभा सांसद सुशील मोदी (Sushil Modi Targets CM Nitish) ने कहा कि नगर निकाय चुनाव को लेकर सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार ट्रिपल टेस्ट के लिए एक डेडिकेटेड इंडिपेंडेंट कमीशन बनाया जाना था. लेकिन नीतीश कुमार ने अति पिछड़ा आयोग को ही डेडिकेटेड कमीशन अधिसूचित कर दिया. जिसमें अध्यक्ष सहित सभी सदस्य जेडीयू-आरजेडी के वरिष्ठ नेता थे. सुशील मोदी ने आगे कहा कि भाजपा यह मांग कर रही थी कि किसी सेवानिवृत्त जज की अध्यक्षता में कमीशन गठित किया जाए, ताकि वह निष्पक्ष, पारदर्शी और बिना भेदभाव के काम कर सकें.

"बिहार सरकार ने जो अति पिछड़ा आयोग को डेडिकेटेड आयोग का दर्जा दिया था या घोषित किया था. कोर्ट ने कहा कि इस डेडिकेटेड कमीशन के रूप में अधिसूचित ना किया जाए. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के कारण एक बार फिर बिहार के अंदर नगर निकाय चुनाव टलने का खतरा पैदा हो गया है." -सुशील मोदी, राज्यसभा सांसद, बीजेपी

"जेडीयू-आरजेडी समर्थित आयोग ने अधूरा सर्वे कराया": उन्होंने आगे कहा कि जेडीयू-आरजेडी समर्थित आयोग ने जल्दबाजी में रिपोर्ट दाखिल करने के चक्कर में संपूर्ण निकाय क्षेत्र का सर्वे करने के बजाय नगर निगम में 7, नगर परिषद में 5 और नगर पंचायत में मात्र 3 वार्ड में ही सर्वे का निर्णय लिया. पटना नगर निगम में 75 वार्ड है, परंतु मात्र 7 वार्ड और वह भी मात्र 21 प्रगणक द्वारा कराया जा रहा है.कमीशन को सभी ओबीसी का सर्वे कर उसमें राजनैतिक पिछड़ापन के आधार पर रिपोर्ट देनी थी, परन्तु केवल ईबीसी का ही सर्वे कराया जा रहा था. वह भी आधा-अधूरा. जिस कारण नगर निकाय चुनाव की प्रक्रिया अधर में है.

यह भी पढ़ें: बिहार में EBC का सर्वे पूरा, सरकार को इस महीने मिल सकती है रिपोर्ट

"गठित आयोग ना तो पारदर्सी और ना निष्पक्ष": सुशील मोदी ने कहा कि बिहार सरकार द्वारा बनाया गया आयोग ना तो पारदर्शी था और ना ही निष्पक्ष था. इन्हीं सब कारणों से न्यायाधीश सूर्यकांत और जेजे महेश्वरी की खंडपीठ ने ईबीसी कमीशन को डेडिकेटेड कमीशन के रूप में अधिसूचित करने पर 28 नवंबर को रोक लगा दी. संविधान की धारा 243 (U) में निकाय की पहली बैठक से 5 वर्ष की अवधि तक ही निकाय का कार्यकाल होगा. निकाय का चुनाव अवधि पूरे होने के पूर्व या भंग होने के 6 माह के भीतर कराए जाने का संवैधानिक प्रावधान है. परंतु बिहार में बड़ी संख्या में निकायों का चुनाव एक-डेढ़ वर्ष से लंबित है.

यह भी पढ़ें: EBC की स्थिति का अध्ययन करेगा AN सिन्हा इंस्टीट्यूट, रिपोर्ट के आधार पर होगा आरक्षण पर फैसला

सीएम नीतीश और तेजस्वी पर तीखा हमला: उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव पर नगर निकाय चुनाव को लेकर तीखा हमला किया. उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार की जिद के कारण बिहार का निकाय चुनाव कानूनी दांवपेच में फंस गया है. तेजस्वी यादव नगर विकास मंत्री हैं, परंतु उन्हें अति पिछड़ों और विभाग से दूर-दूर तक कोई मतलब नहीं है.

पहले चरण के ठीक पहले चुनाव पर रोक: बिहार नगर निकाय चुनाव में आरक्षण की अनदेखी और जारी रोस्टर में गड़बड़ी मामले में पटना हाईकोर्ट के आदेश के बाद राज्य निर्वाचन आयोग ने प्रथम यानि 10 अक्टूबर और द्वितीय चरण यानि 20 अक्टूबर को होने वाले निकाय चुनाव को स्थगित कर दिया था. चुनाव से चंद दिन पहले ही हाईकोर्ट के नगर निकाय चुनाव पर रोक का निर्देश आया और सारी तैयारी धरी रह गई. जिसके बाद बिहार की नीतीश सरकार चुनाव कराने के लिए हरसंभव प्रयास कर रही है.

आरक्षण के लिए कमीशन: नगर निकाय चुनाव पर रोक लगने के बाद बिहार सरकार ने पटना हाई कोर्ट को बताया था कि अति पिछडे वर्ग के राजनीतिक पिछड़ेपन के लिए एक विशेष कमीशन का गठन किया गया है. ये कमीशन राज्य में अति पिछड़े वर्ग में राजनीतिक पिछड़ेपन पर अध्ययन कर राज्य सरकार को रिपोर्ट सौपेंगी. इसके बाद राज्य सरकार के रिपोर्ट के आधार पर राज्य चुनाव आयोग, राज्य में नगर निकाय चुनाव कराएगा.

इससपे पहले क्या कहा था सुप्रीम कोर्ट ने: इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जब तक ‘तीन जांच' की अर्हता को राज्य सरकार पूरी नहीं करती है. तब तक राज्य के निकाय चुनाव में ओबीसी सीट को सामान्य श्रेणी की सीट ही मानकर फिर से बताया जाये. जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस हिमा कोहली की इस बात का जिक्र किया कि अगर नगर निकाय चुनाव 10 अक्टूबर 2022 को है और हाईकोर्ट इस याचिका पर पहले ही सुनवाई कर देता है, तो यह नगर निकाय चुनाव के उम्मीदवारों के लिए सही होगा.

सुप्रीम कोर्ट ने तय किया था मानक: दिसंबर 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राज्य सरकार तय मानकों को पूरा न होने तक स्थानीय निकाय चुनाव में आरक्षण की अनुमति तक नहीं दी जा सकती है. चुनाव के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 2010 में मानक तय किए थे. सुप्रीम कोर्ट ने तीन जांच के मानक (Supreme Court On OBC Reservation) के तहत राज्य को प्रत्येक स्थानीय निकाय में ओबीसी के पिछड़ेपन पर आंकड़े जुटाने के लिए एक विशेष आयोग गठित करने और आयोग की सिफारिशों के आलोक में प्रत्येक स्थानीय निकाय में आरक्षण का अनुपात तय करने की जरूरत बताई. साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, और ओबीसी के लिए इस तरह के आरक्षण की सीमा में कुल सीटों की संख्या के 50 प्रतिशत को पार नहीं कर पाये.

पटना: बिहार के नगर निकाय चुनाव पर रोक लगी है. कोर्ट के आदेश पर बिहार सरकार ने मामला सुलझाने के लिए एक आयोग गठित किया. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने आयोग की परदर्शिता को लेकर सवाल खड़े (Supreme Court On Bihar Municipal Election) कर दिए हैं. ऐसे में एक बार फिर बिहार नगर निकाय चुनाव का मामला अटकता नजर आ रहा है.

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"जदूय और राजद नेता आयोग में शामिल ": इसको लेकर बीजेपी के राज्यसभा सांसद सुशील मोदी (Sushil Modi Targets CM Nitish) ने कहा कि नगर निकाय चुनाव को लेकर सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार ट्रिपल टेस्ट के लिए एक डेडिकेटेड इंडिपेंडेंट कमीशन बनाया जाना था. लेकिन नीतीश कुमार ने अति पिछड़ा आयोग को ही डेडिकेटेड कमीशन अधिसूचित कर दिया. जिसमें अध्यक्ष सहित सभी सदस्य जेडीयू-आरजेडी के वरिष्ठ नेता थे. सुशील मोदी ने आगे कहा कि भाजपा यह मांग कर रही थी कि किसी सेवानिवृत्त जज की अध्यक्षता में कमीशन गठित किया जाए, ताकि वह निष्पक्ष, पारदर्शी और बिना भेदभाव के काम कर सकें.

"बिहार सरकार ने जो अति पिछड़ा आयोग को डेडिकेटेड आयोग का दर्जा दिया था या घोषित किया था. कोर्ट ने कहा कि इस डेडिकेटेड कमीशन के रूप में अधिसूचित ना किया जाए. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के कारण एक बार फिर बिहार के अंदर नगर निकाय चुनाव टलने का खतरा पैदा हो गया है." -सुशील मोदी, राज्यसभा सांसद, बीजेपी

"जेडीयू-आरजेडी समर्थित आयोग ने अधूरा सर्वे कराया": उन्होंने आगे कहा कि जेडीयू-आरजेडी समर्थित आयोग ने जल्दबाजी में रिपोर्ट दाखिल करने के चक्कर में संपूर्ण निकाय क्षेत्र का सर्वे करने के बजाय नगर निगम में 7, नगर परिषद में 5 और नगर पंचायत में मात्र 3 वार्ड में ही सर्वे का निर्णय लिया. पटना नगर निगम में 75 वार्ड है, परंतु मात्र 7 वार्ड और वह भी मात्र 21 प्रगणक द्वारा कराया जा रहा है.कमीशन को सभी ओबीसी का सर्वे कर उसमें राजनैतिक पिछड़ापन के आधार पर रिपोर्ट देनी थी, परन्तु केवल ईबीसी का ही सर्वे कराया जा रहा था. वह भी आधा-अधूरा. जिस कारण नगर निकाय चुनाव की प्रक्रिया अधर में है.

यह भी पढ़ें: बिहार में EBC का सर्वे पूरा, सरकार को इस महीने मिल सकती है रिपोर्ट

"गठित आयोग ना तो पारदर्सी और ना निष्पक्ष": सुशील मोदी ने कहा कि बिहार सरकार द्वारा बनाया गया आयोग ना तो पारदर्शी था और ना ही निष्पक्ष था. इन्हीं सब कारणों से न्यायाधीश सूर्यकांत और जेजे महेश्वरी की खंडपीठ ने ईबीसी कमीशन को डेडिकेटेड कमीशन के रूप में अधिसूचित करने पर 28 नवंबर को रोक लगा दी. संविधान की धारा 243 (U) में निकाय की पहली बैठक से 5 वर्ष की अवधि तक ही निकाय का कार्यकाल होगा. निकाय का चुनाव अवधि पूरे होने के पूर्व या भंग होने के 6 माह के भीतर कराए जाने का संवैधानिक प्रावधान है. परंतु बिहार में बड़ी संख्या में निकायों का चुनाव एक-डेढ़ वर्ष से लंबित है.

यह भी पढ़ें: EBC की स्थिति का अध्ययन करेगा AN सिन्हा इंस्टीट्यूट, रिपोर्ट के आधार पर होगा आरक्षण पर फैसला

सीएम नीतीश और तेजस्वी पर तीखा हमला: उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव पर नगर निकाय चुनाव को लेकर तीखा हमला किया. उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार की जिद के कारण बिहार का निकाय चुनाव कानूनी दांवपेच में फंस गया है. तेजस्वी यादव नगर विकास मंत्री हैं, परंतु उन्हें अति पिछड़ों और विभाग से दूर-दूर तक कोई मतलब नहीं है.

पहले चरण के ठीक पहले चुनाव पर रोक: बिहार नगर निकाय चुनाव में आरक्षण की अनदेखी और जारी रोस्टर में गड़बड़ी मामले में पटना हाईकोर्ट के आदेश के बाद राज्य निर्वाचन आयोग ने प्रथम यानि 10 अक्टूबर और द्वितीय चरण यानि 20 अक्टूबर को होने वाले निकाय चुनाव को स्थगित कर दिया था. चुनाव से चंद दिन पहले ही हाईकोर्ट के नगर निकाय चुनाव पर रोक का निर्देश आया और सारी तैयारी धरी रह गई. जिसके बाद बिहार की नीतीश सरकार चुनाव कराने के लिए हरसंभव प्रयास कर रही है.

आरक्षण के लिए कमीशन: नगर निकाय चुनाव पर रोक लगने के बाद बिहार सरकार ने पटना हाई कोर्ट को बताया था कि अति पिछडे वर्ग के राजनीतिक पिछड़ेपन के लिए एक विशेष कमीशन का गठन किया गया है. ये कमीशन राज्य में अति पिछड़े वर्ग में राजनीतिक पिछड़ेपन पर अध्ययन कर राज्य सरकार को रिपोर्ट सौपेंगी. इसके बाद राज्य सरकार के रिपोर्ट के आधार पर राज्य चुनाव आयोग, राज्य में नगर निकाय चुनाव कराएगा.

इससपे पहले क्या कहा था सुप्रीम कोर्ट ने: इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जब तक ‘तीन जांच' की अर्हता को राज्य सरकार पूरी नहीं करती है. तब तक राज्य के निकाय चुनाव में ओबीसी सीट को सामान्य श्रेणी की सीट ही मानकर फिर से बताया जाये. जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस हिमा कोहली की इस बात का जिक्र किया कि अगर नगर निकाय चुनाव 10 अक्टूबर 2022 को है और हाईकोर्ट इस याचिका पर पहले ही सुनवाई कर देता है, तो यह नगर निकाय चुनाव के उम्मीदवारों के लिए सही होगा.

सुप्रीम कोर्ट ने तय किया था मानक: दिसंबर 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राज्य सरकार तय मानकों को पूरा न होने तक स्थानीय निकाय चुनाव में आरक्षण की अनुमति तक नहीं दी जा सकती है. चुनाव के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 2010 में मानक तय किए थे. सुप्रीम कोर्ट ने तीन जांच के मानक (Supreme Court On OBC Reservation) के तहत राज्य को प्रत्येक स्थानीय निकाय में ओबीसी के पिछड़ेपन पर आंकड़े जुटाने के लिए एक विशेष आयोग गठित करने और आयोग की सिफारिशों के आलोक में प्रत्येक स्थानीय निकाय में आरक्षण का अनुपात तय करने की जरूरत बताई. साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, और ओबीसी के लिए इस तरह के आरक्षण की सीमा में कुल सीटों की संख्या के 50 प्रतिशत को पार नहीं कर पाये.

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