पटना: बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले ही महागठबंधन में फूट के आसार नजर आने लगे हैं. हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि सीएए, एनआरसी और एनपीआर के खिलाफ शनिवार को रालोसपा, हम, वीआईपी, जाप और वम दलों ने गांधी मैदान में धरना दिया, लेकिन इससे तेजस्वी यादव और कांग्रेस ने दूरी बना ली.
क्यों नहीं पहुंचे तेजस्वी यादव?
धरना प्रदर्शन में उपेंद्र कुशवाहा, जीतनराम मांझी शामिल थे. वीआईपी से मुकेश सहनी और जाप से पप्पू यादव तो नहीं लेकिन उनके प्रतिनिधि शामिल हुए. ऐसे में तेजस्वी यादव और कांग्रेस के शामिल नहीं होने से चर्चाओं का बाजार गर्म है. हालांकि, तेजस्वी यादव राजधानी पटना में ही थे, लेकिन धरना स्थल पर महागठबंधन की आवाज बनना मुनासिब नहीं समझे.
दूरी बनाना पुरानी आदत
तेजस्वी के लिए ये कोई नई बात नहीं है. इसके पहले भी महागठबंधन की बैठकों से कई बार तेजस्वी नदारद रहे हैं. इसके पहले नवादा और औरंगाबाद में केंद्रीय विद्यालय की मांग के लिए उपेंद्र कुशवाहा आमरण अनशन पर बैठे थे. तेजस्वी यादव और तेज प्रताप यादव ने उस कार्यक्रम से भी दूरी बना रखी थी.
पहले भी नदारद रहे तेजस्वी
इसके अलावा एनडीए सरकार की नीतियों के खिलाफ विपक्षी दलों ने नवंबर में राज्यव्यापी धरना दिया, लेकिन उस प्रदर्शन से भी तेजस्वी यादव नदारद रहे. अब अगर सितंबर की बात करें तो महागठबंधन की तरफ से कांग्रेस के प्रदेश मुख्यालय सदाकत आश्रम में महागठबंधन की एकजुटता की पोल खुली थी, क्योंकि वहां भी तेजस्वी यादव नहीं पहुंचे थे.
तेजस्वी को पसंद नहीं कुशवाहा!
इन सभी घटनाक्रमों पर नजर डालने के बाद ऐसा लगता है कि तेजस्वी को कुशवाहा की अगुवाई पसंद नहीं है, सूत्रों की मानें तो तेजस्वी ऐसा इसलिए कर रहे हैं क्योंकि विधानसभा चुनाव में सीटों के बंटवारे में ये दल ज्यादा सीटें न मांग सकें. ऐसा करके इन्हें बैकफुट पर रखा जाए.
कहीं ऐसा तो नहीं
सूत्रों के मुताबिक ये भी मुमकिन है कि तेजस्वी ये सब रणनीति के तहत कर रहे हैं. क्योंकि तेजस्वी को कुशवाहा और मांझी पर भरोसा नहीं है, और तेजस्वी सिर्फ कांग्रेस के साथ जाना चाहते हैं. इसके अलावा खास बात ये भी है कि गांधी मैदान में धरना प्रदर्शन के दौरान पप्पू यादव की पार्टी भी पहुंची, इसलिए भी तेजस्वी को यह सब खटक रहा है. खैर इन सबके बाद अब इसपर कई सवाल खड़े होने लगे हैं कि क्या चुनाव से पहले ही महागठबंधन का किला ढह जाएगा.