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जर्जर स्वास्थ्य व्यवस्था: बिहार में 60% से ज्यादा डॉक्टरों की कमी, राष्ट्रीय औसत से कोसो दूर - Bihar Health Minister

कोरोना काल में बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खुल गई है. राज्य में मानक के अनुरूप न तो डॉक्टर है, न ही नर्स है और ना ही संसाधन है. बावजूद इसके बिहार सरकार का दावा है कि राज्य में लालू-राबड़ी के 15 सालों के शासन की तुलना में स्वास्थ्य व्यवस्था स्थिति बेहतर हुई है. देखिए ये रिपोर्ट.

पटना
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Published : May 26, 2021, 7:37 PM IST

पटना: बिहार में स्वास्थ्य व्यवस्था (HEALTH SYSTEM OF BIHAR) को लेकर विपक्ष लगातार अभियान चला रहा है और जदयू के विधायक खुद सरकार के व्यवस्था पर सवाल खड़ा कर रहे हैं. रानीगंज के जदयू विधायक अचमित ऋषिदेव ने अपनी ही सरकार की स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खोलते हुए कहा कि यदि हालात बद से बदतर नहीं होते, तो मेरी पत्नी की जान नहीं जाती. यही नहीं सीएजी ने भी अपनी रिपोर्ट में लगातार बिहार सरकार को आईना दिखा रही है.

ये भी पढ़ें- बिहार में कोरोना संक्रमण की रफ्तार में गिरावट, मौत के आंकड़ों में नहीं आई कमी

सत्ता पक्ष की अलग ही दलील
कोरोना काल में बिहार के लोगों ने अस्पतालों में बेड और ऑक्सीजन तक की कमी का सामना किया है और उसके कारण कई लोगों की मौत हुई है. ऐसे में सत्ता पक्ष की तरफ से अभी भी दावे हो रहे हैं कि 15 सालों के लालू-राबड़ी के शासन से कोई तुलना ही नहीं की जा सकती है. नीतीश कुमार के शासन में स्वास्थ्य क्षेत्र में काफी प्रगति हुई है और लगातार काम हो रहे हैं. स्वास्थ्य व्यवस्था के कारण ही आज संक्रमण दर पूरे देश में बिहार का बेहतर है और कोरोना को नियंत्रित किया जा रहा है.

भगवान भरोसे स्वास्थ्य व्यवस्था
नीतीश सरकार की ओर से दावे भले ही कुछ भी किए जाते हो, लेकिन सच्चाई यही है कि आज भी बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था भगवान भरोसे ही चल रही है. डॉक्टरों की कमी, नर्सों की कमी और पारा मेडिकल स्टाफ की कमी किसी से छिपी नहीं है. आंकड़ों से भी साफ हो जाता है कि बिहार में केवल मानव संसाधन ही नहीं, इलाज के लिए जो आधुनिक संसाधन होने चाहिए उसकी भी घोर कमी है. अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय औसत की तुलना में बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था कहीं नहीं टिक रही है.

ये भी पढ़ें- CM नीतीश के गांव से ग्राउंड रिपोर्ट: भव्य अस्पताल, इलाज नदारद.. कल्याण बिगहा में बाकी सब ठीक है...

रिक्त पदों पर बहाली कब?
बिहार स्वास्थ्य विभाग के मंत्री और अधिकारी लगातार कह रहे हैं कि रिक्त पदों को भरने के लिए लगातार कोशिश हो रही है. तकनीकी सेवा आयोग से लेकर कर्मचारी चयन आयोग तक रिक्तियों को भरने में लगे हैं. इन सब परिस्थितियों में नीति आयोग ने 2030 तक प्रति लाख की आबादी पर 550 डॉक्टर और नर्स की संख्या बढ़ाने का लक्ष्य रखा है. ऐसे में विकसित राज्य जो अभी भी बिहार से काफी आगे हैं, वहां तो व्यवस्था हो जाएगी. लेकिन बिहार में इस लक्ष्य के नजदीक पहुंचना भी एक बड़ी चुनौती है.

मानक से कोसो दूर स्वास्थ्यकर्मी
बिहार में जो मानक है, उससे काफी कम संख्या में डॉक्टर हैं. एक लाख की आबादी पर औसत डॉक्टर और अन्य स्वास्थ्य कर्मी 221 होना चाहिए, लेकिन बिहार में केवल 20 के आसपास है. बिहार की जो आबादी है उसके अनुसार हर तरह के 1 लाख डॉक्टर की जरूरत है, लेकिन उसका आधा भी बिहार में नहीं हैं. उसी तरह नर्सों की भारी कमी है. 90% से अधिक नर्स की और जरूरत है.

ये भी पढ़ें- मेदांता में कोविड-19 वार्ड शुरू, स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे ने किया अस्पताल का दौरा

बिहार में विशेषज्ञ चिकित्सकों कमी
विशेषज्ञ चिकित्सकों की तो भारी कमी है और सरकार चाहकर भी विशेषज्ञ चिकित्सक की बहाली नहीं कर पा रही है. बिहार में वेंटीलेटर्स का इस्तेमाल इसलिए नहीं हो पाता है क्योंकि विशेषज्ञ चिकित्सक नहीं मिल पाए और यह बात खुद स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे ने पिछले दिनों कही है.

'स्वास्थ्य व्यवस्था पर नहीं दिया ध्यान'
आईएमए बिहार के अध्यक्ष डॉ. अजय कुमार का कहना है कि बिहार में स्वास्थ्य व्यवस्था पर जिस प्रकार से ध्यान देना चाहिए, वह नहीं दिया गया. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विकसित देशों में 550 की आबादी पर एक डॉक्टर की व्यवस्था है, लेकिन बिहार में 2400 की आबादी पर एक डॉक्टर है. जबकि डब्ल्यूएचओ के अनुसार एक हजार की आबादी पर एक डॉक्टर का होना जरूरी है.

डॉ. अजय कुमार, अध्यक्ष, आईएमए बिहार
डॉ. अजय कुमार, अध्यक्ष, आईएमए बिहार

''बिहार में जो विशेषज्ञ डॉक्टर है, उनके शर्तों के अनुसार सरकार बहाली करें. जो एमबीबीएस किए हुए हैं, उनकी नियुक्ति में कई तरह की छूट दें, उम्र में छूट दें और उन सब की बहाली सरकार करें. इसी तरह स्वास्थ्य कर्मियों की नियुक्ति में भी सरकार को ध्यान देना होगा, तभी स्थिति में कुछ सुधार हो सकता है.''- डॉ. अजय कुमार, अध्यक्ष, आईएमए बिहार

जदयू ने राजद शासनकाल पर मढ़ा आरोप
वहीं, जदयू चिकित्सा प्रकोष्ठ के अध्यक्ष डॉक्टर सुनील कुमार सिंह नीतीश सरकार का बचाव करते हुए कहते हैं कि बिहार में राजद के 15 साल के शासन में स्वास्थ्य व्यवस्था की क्या स्थिति थी, ये किसी से छिपी नहीं है. लेकिन, नीतीश राज में सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था पर लोगों का विश्वास बना है, कई नए मेडिकल कॉलेज, नर्सिंग कॉलेज और पैरामेडिकल संस्थान खोले गए हैं. आने वाले दिनों में जिलों में मेडिकल कॉलेज और अन्य संस्थान खोलने की तैयारी है. जिससे कमियों को दूर किया जा सकेगा.

डॉ. सुनील कुमार सिंह, अध्यक्ष, जदयू चिकित्सा प्रकोष्ठ
डॉ. सुनील कुमार सिंह, अध्यक्ष, जदयू चिकित्सा प्रकोष्ठ

''आज सरकारी अस्पतालों के प्रति लोगों का विश्वास बढ़ा है और इसलिए कोरोना के समय यदि सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था ठीक नहीं रहती, तो बिहार में कोरोना संक्रमण का दर इतनी जल्दी नहीं घटता.''- डॉ. सुनील कुमार सिंह, अध्यक्ष, जदयू चिकित्सा प्रकोष्ठ

ये भी पढ़ें- बिहार के 'गांव वाले डॉक्टर' करें कोरोना काल में मदद: नीतीश कुमार

विपक्ष के निशाने पर सरकार
विपक्ष लगातार स्वास्थ्य व्यवस्था की बदहाल स्थिति को सोशल मीडिया के माध्यम से उजागर कर रहा है और सरकार की पोल खोल रहा है. आरजेडी प्रवक्ता शक्ति यादव का कहना है कि बिहार में स्वास्थ्य व्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई है.

शक्ति यादव, राजद विधायक
शक्ति यादव, राजद विधायक

''बिहार के कई अस्पताल खस्ता हाल है. कई अस्पताल तो तबेले बने हुए हैं. बिहार में पूरा स्वास्थ्य महकमा बीमार है. राज्य में स्वास्थ्य व्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई है.''- शक्ति यादव, राजद विधायक

नियमित बहाली में सरकार काफी पीछे
बिहार में डॉक्टरों की काफी कमी है और कोरोना के समय जो स्थिति पैदा हुई, उसके बाद सरकार ने तत्काल डॉक्टरों की कमी को दूर करने के लिए 1995 चिकित्सकों की संविदा पर बहाली का फैसला लिया है और बहाली की प्रक्रिया चल रही है. 3 सालों के लिए यह बहाली हो रही है. पारा मेडिकल स्टाफ की भी सरकार बहाली की प्रक्रिया शुरू की है, लेकिन नियमित बहाली में सरकार अभी भी काफी पीछे है.

सीएम नीतीश की समीक्षा बैठक
सीएम नीतीश की समीक्षा बैठक

व्यवस्था दुरूस्त होने में लगेगा लंबा समय
अब सरकार की ओर से 11 नए मेडिकल कॉलेज बनाए जा रहे हैं. 23 नए जीएनएम स्कूल की व्यवस्था की जा रही है. 25 नए नर्सिंग स्कूल और 28 नए पारा मेडिकल संस्थान खोले जा रहे हैं. लेकिन इन संस्थानों के शुरू होने और फिर उसमें जो चिकित्सक और चिकित्सा कर्मी तैयार होंगे, उसमें लंबा समय लगेगा. ऐसे में बिहार के लोगों को स्वास्थ्य व्यवस्था में जो कमी है, उसका सामना आगे भी लंबे समय तक करना होगा.

ये भी पढ़ें- EXCLUSIVE: बोले स्वास्थ्य मंत्री- बीमारी से निपटने में बिहार सक्षम, महामारी से जंग की बड़ी तैयारी जारी

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ये भी पढ़ें- बिहार में कोरोना संक्रमण 5000 से नीचे, राजधानी पटना में संक्रमित मरीज 1000 से कम

पटना: बिहार में स्वास्थ्य व्यवस्था (HEALTH SYSTEM OF BIHAR) को लेकर विपक्ष लगातार अभियान चला रहा है और जदयू के विधायक खुद सरकार के व्यवस्था पर सवाल खड़ा कर रहे हैं. रानीगंज के जदयू विधायक अचमित ऋषिदेव ने अपनी ही सरकार की स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खोलते हुए कहा कि यदि हालात बद से बदतर नहीं होते, तो मेरी पत्नी की जान नहीं जाती. यही नहीं सीएजी ने भी अपनी रिपोर्ट में लगातार बिहार सरकार को आईना दिखा रही है.

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सत्ता पक्ष की अलग ही दलील
कोरोना काल में बिहार के लोगों ने अस्पतालों में बेड और ऑक्सीजन तक की कमी का सामना किया है और उसके कारण कई लोगों की मौत हुई है. ऐसे में सत्ता पक्ष की तरफ से अभी भी दावे हो रहे हैं कि 15 सालों के लालू-राबड़ी के शासन से कोई तुलना ही नहीं की जा सकती है. नीतीश कुमार के शासन में स्वास्थ्य क्षेत्र में काफी प्रगति हुई है और लगातार काम हो रहे हैं. स्वास्थ्य व्यवस्था के कारण ही आज संक्रमण दर पूरे देश में बिहार का बेहतर है और कोरोना को नियंत्रित किया जा रहा है.

भगवान भरोसे स्वास्थ्य व्यवस्था
नीतीश सरकार की ओर से दावे भले ही कुछ भी किए जाते हो, लेकिन सच्चाई यही है कि आज भी बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था भगवान भरोसे ही चल रही है. डॉक्टरों की कमी, नर्सों की कमी और पारा मेडिकल स्टाफ की कमी किसी से छिपी नहीं है. आंकड़ों से भी साफ हो जाता है कि बिहार में केवल मानव संसाधन ही नहीं, इलाज के लिए जो आधुनिक संसाधन होने चाहिए उसकी भी घोर कमी है. अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय औसत की तुलना में बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था कहीं नहीं टिक रही है.

ये भी पढ़ें- CM नीतीश के गांव से ग्राउंड रिपोर्ट: भव्य अस्पताल, इलाज नदारद.. कल्याण बिगहा में बाकी सब ठीक है...

रिक्त पदों पर बहाली कब?
बिहार स्वास्थ्य विभाग के मंत्री और अधिकारी लगातार कह रहे हैं कि रिक्त पदों को भरने के लिए लगातार कोशिश हो रही है. तकनीकी सेवा आयोग से लेकर कर्मचारी चयन आयोग तक रिक्तियों को भरने में लगे हैं. इन सब परिस्थितियों में नीति आयोग ने 2030 तक प्रति लाख की आबादी पर 550 डॉक्टर और नर्स की संख्या बढ़ाने का लक्ष्य रखा है. ऐसे में विकसित राज्य जो अभी भी बिहार से काफी आगे हैं, वहां तो व्यवस्था हो जाएगी. लेकिन बिहार में इस लक्ष्य के नजदीक पहुंचना भी एक बड़ी चुनौती है.

मानक से कोसो दूर स्वास्थ्यकर्मी
बिहार में जो मानक है, उससे काफी कम संख्या में डॉक्टर हैं. एक लाख की आबादी पर औसत डॉक्टर और अन्य स्वास्थ्य कर्मी 221 होना चाहिए, लेकिन बिहार में केवल 20 के आसपास है. बिहार की जो आबादी है उसके अनुसार हर तरह के 1 लाख डॉक्टर की जरूरत है, लेकिन उसका आधा भी बिहार में नहीं हैं. उसी तरह नर्सों की भारी कमी है. 90% से अधिक नर्स की और जरूरत है.

ये भी पढ़ें- मेदांता में कोविड-19 वार्ड शुरू, स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे ने किया अस्पताल का दौरा

बिहार में विशेषज्ञ चिकित्सकों कमी
विशेषज्ञ चिकित्सकों की तो भारी कमी है और सरकार चाहकर भी विशेषज्ञ चिकित्सक की बहाली नहीं कर पा रही है. बिहार में वेंटीलेटर्स का इस्तेमाल इसलिए नहीं हो पाता है क्योंकि विशेषज्ञ चिकित्सक नहीं मिल पाए और यह बात खुद स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे ने पिछले दिनों कही है.

'स्वास्थ्य व्यवस्था पर नहीं दिया ध्यान'
आईएमए बिहार के अध्यक्ष डॉ. अजय कुमार का कहना है कि बिहार में स्वास्थ्य व्यवस्था पर जिस प्रकार से ध्यान देना चाहिए, वह नहीं दिया गया. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विकसित देशों में 550 की आबादी पर एक डॉक्टर की व्यवस्था है, लेकिन बिहार में 2400 की आबादी पर एक डॉक्टर है. जबकि डब्ल्यूएचओ के अनुसार एक हजार की आबादी पर एक डॉक्टर का होना जरूरी है.

डॉ. अजय कुमार, अध्यक्ष, आईएमए बिहार
डॉ. अजय कुमार, अध्यक्ष, आईएमए बिहार

''बिहार में जो विशेषज्ञ डॉक्टर है, उनके शर्तों के अनुसार सरकार बहाली करें. जो एमबीबीएस किए हुए हैं, उनकी नियुक्ति में कई तरह की छूट दें, उम्र में छूट दें और उन सब की बहाली सरकार करें. इसी तरह स्वास्थ्य कर्मियों की नियुक्ति में भी सरकार को ध्यान देना होगा, तभी स्थिति में कुछ सुधार हो सकता है.''- डॉ. अजय कुमार, अध्यक्ष, आईएमए बिहार

जदयू ने राजद शासनकाल पर मढ़ा आरोप
वहीं, जदयू चिकित्सा प्रकोष्ठ के अध्यक्ष डॉक्टर सुनील कुमार सिंह नीतीश सरकार का बचाव करते हुए कहते हैं कि बिहार में राजद के 15 साल के शासन में स्वास्थ्य व्यवस्था की क्या स्थिति थी, ये किसी से छिपी नहीं है. लेकिन, नीतीश राज में सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था पर लोगों का विश्वास बना है, कई नए मेडिकल कॉलेज, नर्सिंग कॉलेज और पैरामेडिकल संस्थान खोले गए हैं. आने वाले दिनों में जिलों में मेडिकल कॉलेज और अन्य संस्थान खोलने की तैयारी है. जिससे कमियों को दूर किया जा सकेगा.

डॉ. सुनील कुमार सिंह, अध्यक्ष, जदयू चिकित्सा प्रकोष्ठ
डॉ. सुनील कुमार सिंह, अध्यक्ष, जदयू चिकित्सा प्रकोष्ठ

''आज सरकारी अस्पतालों के प्रति लोगों का विश्वास बढ़ा है और इसलिए कोरोना के समय यदि सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था ठीक नहीं रहती, तो बिहार में कोरोना संक्रमण का दर इतनी जल्दी नहीं घटता.''- डॉ. सुनील कुमार सिंह, अध्यक्ष, जदयू चिकित्सा प्रकोष्ठ

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विपक्ष के निशाने पर सरकार
विपक्ष लगातार स्वास्थ्य व्यवस्था की बदहाल स्थिति को सोशल मीडिया के माध्यम से उजागर कर रहा है और सरकार की पोल खोल रहा है. आरजेडी प्रवक्ता शक्ति यादव का कहना है कि बिहार में स्वास्थ्य व्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई है.

शक्ति यादव, राजद विधायक
शक्ति यादव, राजद विधायक

''बिहार के कई अस्पताल खस्ता हाल है. कई अस्पताल तो तबेले बने हुए हैं. बिहार में पूरा स्वास्थ्य महकमा बीमार है. राज्य में स्वास्थ्य व्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई है.''- शक्ति यादव, राजद विधायक

नियमित बहाली में सरकार काफी पीछे
बिहार में डॉक्टरों की काफी कमी है और कोरोना के समय जो स्थिति पैदा हुई, उसके बाद सरकार ने तत्काल डॉक्टरों की कमी को दूर करने के लिए 1995 चिकित्सकों की संविदा पर बहाली का फैसला लिया है और बहाली की प्रक्रिया चल रही है. 3 सालों के लिए यह बहाली हो रही है. पारा मेडिकल स्टाफ की भी सरकार बहाली की प्रक्रिया शुरू की है, लेकिन नियमित बहाली में सरकार अभी भी काफी पीछे है.

सीएम नीतीश की समीक्षा बैठक
सीएम नीतीश की समीक्षा बैठक

व्यवस्था दुरूस्त होने में लगेगा लंबा समय
अब सरकार की ओर से 11 नए मेडिकल कॉलेज बनाए जा रहे हैं. 23 नए जीएनएम स्कूल की व्यवस्था की जा रही है. 25 नए नर्सिंग स्कूल और 28 नए पारा मेडिकल संस्थान खोले जा रहे हैं. लेकिन इन संस्थानों के शुरू होने और फिर उसमें जो चिकित्सक और चिकित्सा कर्मी तैयार होंगे, उसमें लंबा समय लगेगा. ऐसे में बिहार के लोगों को स्वास्थ्य व्यवस्था में जो कमी है, उसका सामना आगे भी लंबे समय तक करना होगा.

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