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खास रिपोर्ट- NDA ने जातीय समीकरण के सहारे महागठबंधन की बढ़ाई मुश्किलें - nda

महागठबंधन में जिस तरह के दल और उनका वोट बैंक है, उससे मुकाबला करने के लिए एनडीए ने खास रणनीति तैयार की है.

एनडीए के नेता
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Published : Mar 25, 2019, 7:10 PM IST

पटनाःबिहार में पहले और दूसरे चरण के चुनाव के लिए नामांकन शुरू है. एनडीए के घटक दल बीजेपी, जेडीयू और लोजपा ने उम्मीदवारों की घोषणा में इस बार जातीय समीकरण साधने की पूरी कोशिश की है. एक तरफ पिछड़ी और अति पिछड़ी जाति को 20 सीटें दी गईं है तो वही सवर्ण को भी 13 सीटें बांटी गई है, लेकिन इन सीटों में यादवों और राजपूतों का विशेष ख्याल रखा गया है. विशेषज्ञ एनडीए की मजबूरी बता रहे हैं और महागठबंधन का दबाव भी.पेश है खास रिपोर्ट---

एनडीए ने उम्मीदवारों की घोषणा में सबसे अधिक स्थान पिछड़ा वर्ग के उम्मीदवारों को दी है. पिछड़ा वर्ग में 5 यादव और तीन कुशवाहा को जगह मिलीहै. वैश्य को ही 3 सीट दी गई है और कुर्मी को 1 सीट मिलीहै. वहीं, अति पिछड़ा वर्ग से 6 उम्मीदवारों को इस बार मौका मिला है. जिसमें चंद्रवंशी, गंगोत, गोसाई,केवट,धानुक जैसी जातियों को एक-एक सीट दीगईहै. जहां तकएससी एसटी की बात करें तो पासवान को 4 रविदास को एक और मुसर को 1 सीट मिलीहै.

महागठबंधन कीमुश्किलें बढ़ीं
एन डी ए ने स्वर्ण मतदाताओं को खुश करने के लिए 13 स्वर्ण उम्मीदवार भी उताराहै.जिसमें सबसे अधिक राजपूतों को 7 सीट दी गई है. ब्राह्मण को भी 2 सीट मिलीहै, जबकि भूमिहार को 3 सीट और एक कायस्थ को सीट मिलीहै. एनडीए में 1 सीट मुस्लिम को भी दीगईहै. जिस पर विपक्ष निशाना भी साध रहा है.कुल मिलाकर एनडीए ने महागठबंधन कीमुश्किलेंबढ़ाने की कोशिश की है.
ऐसे तो महागठबंधन का सबसे बड़ा वोट बैंक यादवों का रहा है. आरजेडी इसी वोट बैंक के सहारे लंबे समय तक राज करती रही साथ में मुस्लिम वोट बैंक भी आरजेडी के साथ रहा है, लेकिन नीतीश कुमार के आने के बाद स्थितियां जरूर बदली. इसके बावजूद यादव वोट आरजेडी के साथ ही रहा.इसलिएएनडीए ने 5 यादव उम्मीदवारों को मौका देकर यादव वोट को अपने पक्ष में साधने की कोशिश की है.

बयान देते नेता और प्रोफेसर

आरसीपी सिंह का क्या है कहना
इसके अलावा राजपूत का एक बड़ा वोट बैंक हमेशा से राजद के साथ रहा है, इसलिएएनडीए ने 7 राजपूत उम्मीदवारों को इस बार चुनाव मैदान में उतारा है. हालांकि जदयू के राष्ट्रीय महासचिव आरसीपी सिंह का कहना है कि हमारे नेताने विकास का काम किया है, जो कहा उसे पूरा किया है और हम जनता के बीच इसी को लेकर जाएंगे.
जातीय समीकरण साधने पर बीजेपी के प्रवक्ता निखिल आनंद ने सफाई देते हुए कहा कि समाजवाद का मुखौटा पहन परिवारवाद और जातिवाद की राजनीति कौन करते हैं वह किसी से छिपा नहीं है. हम लोग राष्ट्रवाद की परिधि में उन वर्गों को मौका दे रहे हैं जो आज तक संसद नहीं पहुंचे थे.

विशेषज्ञों का क्या कहना
हालांकि विशेषज्ञ डीएम दिवाकर का कहना है कि सभी गठबंधन और दल के लिए जातीय समीकरण साधना मजबूरी है. विकास की बात तो जरूर करते हैं,लेकिन वोट देने के समय लोग जातीय बंधन में बंध जाते हैं.इसेसोशल इंजीनियरिंग से लेकर कई तरह के नाम दिए जाते हैं, लेकिन हकीकत में जातीय समीकरण पार्टियों की मजबूरी है.
बहरहाल,महागठबंधन में जिस तरह के दल और उनका वोट बैंक है उससे मुकाबला करने के लिए विशेषज्ञ इसे एनडीए की रणनीति बता रहे हैं. ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगाकि बिहार में 40 लोकसभा सीट का रिजल्ट क्या होता है.

पटनाःबिहार में पहले और दूसरे चरण के चुनाव के लिए नामांकन शुरू है. एनडीए के घटक दल बीजेपी, जेडीयू और लोजपा ने उम्मीदवारों की घोषणा में इस बार जातीय समीकरण साधने की पूरी कोशिश की है. एक तरफ पिछड़ी और अति पिछड़ी जाति को 20 सीटें दी गईं है तो वही सवर्ण को भी 13 सीटें बांटी गई है, लेकिन इन सीटों में यादवों और राजपूतों का विशेष ख्याल रखा गया है. विशेषज्ञ एनडीए की मजबूरी बता रहे हैं और महागठबंधन का दबाव भी.पेश है खास रिपोर्ट---

एनडीए ने उम्मीदवारों की घोषणा में सबसे अधिक स्थान पिछड़ा वर्ग के उम्मीदवारों को दी है. पिछड़ा वर्ग में 5 यादव और तीन कुशवाहा को जगह मिलीहै. वैश्य को ही 3 सीट दी गई है और कुर्मी को 1 सीट मिलीहै. वहीं, अति पिछड़ा वर्ग से 6 उम्मीदवारों को इस बार मौका मिला है. जिसमें चंद्रवंशी, गंगोत, गोसाई,केवट,धानुक जैसी जातियों को एक-एक सीट दीगईहै. जहां तकएससी एसटी की बात करें तो पासवान को 4 रविदास को एक और मुसर को 1 सीट मिलीहै.

महागठबंधन कीमुश्किलें बढ़ीं
एन डी ए ने स्वर्ण मतदाताओं को खुश करने के लिए 13 स्वर्ण उम्मीदवार भी उताराहै.जिसमें सबसे अधिक राजपूतों को 7 सीट दी गई है. ब्राह्मण को भी 2 सीट मिलीहै, जबकि भूमिहार को 3 सीट और एक कायस्थ को सीट मिलीहै. एनडीए में 1 सीट मुस्लिम को भी दीगईहै. जिस पर विपक्ष निशाना भी साध रहा है.कुल मिलाकर एनडीए ने महागठबंधन कीमुश्किलेंबढ़ाने की कोशिश की है.
ऐसे तो महागठबंधन का सबसे बड़ा वोट बैंक यादवों का रहा है. आरजेडी इसी वोट बैंक के सहारे लंबे समय तक राज करती रही साथ में मुस्लिम वोट बैंक भी आरजेडी के साथ रहा है, लेकिन नीतीश कुमार के आने के बाद स्थितियां जरूर बदली. इसके बावजूद यादव वोट आरजेडी के साथ ही रहा.इसलिएएनडीए ने 5 यादव उम्मीदवारों को मौका देकर यादव वोट को अपने पक्ष में साधने की कोशिश की है.

बयान देते नेता और प्रोफेसर

आरसीपी सिंह का क्या है कहना
इसके अलावा राजपूत का एक बड़ा वोट बैंक हमेशा से राजद के साथ रहा है, इसलिएएनडीए ने 7 राजपूत उम्मीदवारों को इस बार चुनाव मैदान में उतारा है. हालांकि जदयू के राष्ट्रीय महासचिव आरसीपी सिंह का कहना है कि हमारे नेताने विकास का काम किया है, जो कहा उसे पूरा किया है और हम जनता के बीच इसी को लेकर जाएंगे.
जातीय समीकरण साधने पर बीजेपी के प्रवक्ता निखिल आनंद ने सफाई देते हुए कहा कि समाजवाद का मुखौटा पहन परिवारवाद और जातिवाद की राजनीति कौन करते हैं वह किसी से छिपा नहीं है. हम लोग राष्ट्रवाद की परिधि में उन वर्गों को मौका दे रहे हैं जो आज तक संसद नहीं पहुंचे थे.

विशेषज्ञों का क्या कहना
हालांकि विशेषज्ञ डीएम दिवाकर का कहना है कि सभी गठबंधन और दल के लिए जातीय समीकरण साधना मजबूरी है. विकास की बात तो जरूर करते हैं,लेकिन वोट देने के समय लोग जातीय बंधन में बंध जाते हैं.इसेसोशल इंजीनियरिंग से लेकर कई तरह के नाम दिए जाते हैं, लेकिन हकीकत में जातीय समीकरण पार्टियों की मजबूरी है.
बहरहाल,महागठबंधन में जिस तरह के दल और उनका वोट बैंक है उससे मुकाबला करने के लिए विशेषज्ञ इसे एनडीए की रणनीति बता रहे हैं. ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगाकि बिहार में 40 लोकसभा सीट का रिजल्ट क्या होता है.

Intro:पटना-- बिहार में पहले और दूसरे चरण के चुनाव के लिए नामांकन शुरू है एनडीए के घटक दल बीजेपी, जेडीयू और लोजपा ने उम्मीदवारों की घोषणा में इस बार जातीय समीकरण साधने की पूरी कोशिश की है । एक तरफ पिछड़ी और अति पिछड़ी जाति को 20 सीटें दी गई है तो वही सवर्ण को भी 13 सीटें बाटी गई है। लेकिन इन सीटों में यादवों और राजपूतों का विशेष ख्याल रखा गया है विशेषज्ञ एनडीए की मजबूरी बता रहे हैं और महागठबंधन का दबाव भी ।
पेश है खास रिपोर्ट---


Body: ऐसे तो महागठबंधन का सबसे बड़ा वोट बैंक यादवों का रहा है आरजेडी इसी वोट बैंक के सहारे लंबे समय तक राज करती रही साथ में मुस्लिम वोट बैंक भी आरजेडी के साथ रहा है लेकिन नीतीश कुमार के आने के बाद स्थितियां जरूर बदली इसके बावजूद यादव वोट आरजेडी के साथ ही रहा है और इसलिये एनडीए ने 5 यादव उम्मीदवारों को मौका देकर यादव वोट को अपने पक्ष में साधने की कोशिश की है इसके अलावा राजपूत का एक बड़ा वोट बैंक हमेशा से राजद के साथ रहा है इसलिये एन डी ए ने 7 राजपूत उम्मीदवारों को इस बार चुनाव मैदान में उतारा है। हालांकि जदयू के राष्ट्रीय महासचिव आर सीपी सिंह का कहना है कि हमारे नेता ने विकास का काम किया है जो कहा उसे पूरा किया है और हम जनता के बीच इसी को लेकर जाएंगे।
जातीय समीकरण साधने पर बीजेपी के प्रवक्ता निखिल आनंद ने सफाई देते हुए कहा कि समाजवाद का मुखौटा पहन परिवारवाद और जातिवाद की राजनीति कौन करते हैं वह किसी से छिपा नहीं है हम लोग राष्ट्रवाद की परिधि में उन वर्गों को मौका दे रहे हैं जो आज तक संसद नहीं पहुंचे थे।
हालांकि विशेषज्ञ डी एम दिवाकर का कहना है कि सभी गठबंधन और दल के लिए जातीय समीकरण साधना मजबूरी है विकास की बात तो जरूर करेंगे लेकिन वोट देने के समय लोग जातीय बंधन में बंध जाते हैं। ऐसे सोशल इंजीनियरिंग से लेकर कई तरह के नाम दिए जाते हैं लेकिन हकीकत में जातीय समीकरण पार्टियों की मजबूरी है।
बाइट्स-- आरसीपी सिंह राष्ट्रीय महासचिव जदयू
निखिल आनंद प्रवक्ता बीजेपी
डीएम दिवाकर प्रोफेसर ए एन सिन्हा इंस्टीटूट।


Conclusion:एनडीए ने उम्मीदवारों की घोषणा में सबसे अधिक स्थान पिछड़ा वर्ग के उम्मीदवारों को दी है पिछड़ा वर्ग में 5 यादव और तीन कुशवाहा को जगह मिला है वैश्य को ही 3 सीट दी गई है और कुर्मी को 1 सीट मिला है वहीं अति पिछड़ा वर्ग से 6 उम्मीदवारों को इस बार मौका मिला है जिसमें चंद्रवंशी, गंगोत, गोसाई,केवट,धानुक जैसी जातियों को एक-एक सीट दिया गया है जहां तक है एससी एसटी की बात करें तो पासवान को 4 रविदास को एक और मुसर को 1 सीट मिला है। एन डी ए ने स्वर्ण मतदाताओं को खुश करने के लिए 13 स्वर्ण उम्मीदवार भी उतारे हैं जिसमें सबसे अधिक के राजपूतों को 7 सीट दी गई है ब्राह्मण को भी 2 सीट मिला है जबकि भूमिहार को 3 सीट और एक कायस्थ को सीट मिला है। एन डी ए में 1 सीट मुस्लिम को भी दिया गया है जिस पर विपक्ष निशाना भी साध रहा है। कुल मिलाकर महागठबंधन कि मुश्किल है बढ़ाने की कोशिश एन डी ए ने की है क्योंकि महागठबंधन में जिस तरह के दल और उनका वोट बैंक है उससे मुकाबला करने के लिए विशेषज्ञ एनडीए की इसे रणनीति बता रहे हैं। ऐसे में यह देखना दिलचस्प है कि बिहार में 40 लोकसभा सीट का रिजल्ट क्या होता है।
अविनाश, पटना।
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