पटनाः सिवान के एक दशक पुराने अपहरण मामले में पटना हाइकोर्ट ने (Siwan kidnapping case hearing in Patna High Court) सुनवाई करते हुए निगरानी ब्यूरो और आर्थिक अपराध इकाई को जांच करने के लिए पार्टी बनाने का निर्देश दिया है. जस्टिस राजीव प्रसाद ने मंसूर आलम की आपराधिक याचिका पर सुनवाई करते हुए इस केस को पुलिस और राजनीतिक व्यक्तियों की मिलीभगत बताया. इसलिए कोर्ट ने इन मामलों को एंटी करप्शन ( निगरानी) ब्यूरो व अन्य विशेष जांच एजेंसियो से जांच करवाने का निर्णय लिया. इस मामले पर अगली सुनवाई 8 दिसम्बर को होगी.
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क्या है मामलाः सिवान में 10 साल पहले अपहरण का एक मामला दर्ज हुआ था. में सुनवाई हुई क का है,जो सिवान के वसंतपुर थाना मे अगस्त 2012 को दर्ज हुआ था. एक दशक बीतने के बाद भी सिवान पुलिस न तो अपहृत बच्चे का कोई सुराग लगा पाई है और ना ही इस मामले के नामजद अभियुक्त की गिरफ्तारी कर सकी थी. सिवान पुलिस की इस कार्यशैली पर नाराज होते हुए हाई कोर्ट ने वहां के एसपी को तलब किया था.
मुख्य अभियुक्त ने किया सरेंडरः गुरुवार को सीवान एसपी कोर्ट पहुंचे थे. उन्होंने कोर्ट को बताया कि इस मामले का नामजद आरोपी ने आत्म समर्पण कर दिया. इस पर कोर्ट ने पूछा कि इतने सालों से आरोपी को गिरफ्तार करने की दबिश क्यों नहीं दी गयी थी. याचिकाकर्ता के वकील अजीत सिंह ने कोर्ट को बताया कि नामजद अभियुक्त स्थानीय नेता हैं और जब हाई कोर्ट ने एसपी को तलब किया तब मुख्य अभियुक्त ने सरेंडर किया.
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पहले से कई आरोपः एडवोकेट अजीत ने कोर्ट को दर्शाया कि स्थानीय वसंतपुर थाने में ही इस आरोपी के खिलाफ हत्या, चोरी और सरकारी राशि के गबन के आरोप में कई कांड दर्ज हैं. लेकिन पुलिस उक्त आरोपी के राजनीतिक छवि होने के कारण उससे मिली हुई है. यहां तक कि सरकारी नल जल योजना और बाढ़ राहत की राशि के गबन करने के मामले पर भी पुलिस ने उसकी गिरफ्तारी नहीं की.