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सुप्रीम कोर्ट से बिहार सरकार की याचिका खारिज, समय बर्बाद करने पर 20 हजार का लगाया जुर्माना - बिहार सरकार की याचिका खारिज

राज्य सरकार ने एकल पीठ की तरफ से दिसंबर 2018 में दिए गए फैसले को खंडपीठ में चुनौती दी थी. हाई कोर्ट ने कहा था कि मामले में कुछ समय तक सुनवाई के बाद वकीलों ने संयुक्त रूप से आग्रह किया कि सहमति के आधार पर अपील का निपटारा किया जाए. इसी मुताबिक आदेश दिया जाता है.

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Published : Apr 2, 2021, 7:20 PM IST

पटना/नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार की एक अपील को खारिज करते हुए कोर्ट का समय बर्बाद करने के लिए राज्य सरकार पर 20 हजार रुपए का जुर्माना लगाया है. विभिन्न पक्षों के एक मामले पर सहमत होने के बाद पटना हाई कोर्ट की तरफ से मामले का निस्तारण करने से ये अपील जुड़ी हुई थी.

जज एसके कौल और जज आरएस रेड्डी ने कहा कि राज्य सरकार ने हाई कोर्ट की खंडपीठ के आदेश के खिलाफ पिछले साल सितंबर में सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) दाखिल की थी. हाई कोर्ट ने इसकी याचिका का सहमति के आधार पर निस्तारण कर दिया था.

राज्य सरकार जिम्मेदार अधिकारियों से जुर्माना वसूले
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि मामले पर कुछ समय सुनवाई के बाद राज्य सरकार की तरफ से पेश हुए वकील ने संयुक्त रूप से आग्रह किया कि अपील का सहमति के आधार पर निपटारा किया जाए. पीठ ने कहा कि इसके बाद सहमति के आधार पर निपटारा कर दिया गया. इसके बावजूद विशेष अनुमति याचिका दायर की गई. हम इसे अदालती प्रक्रिया का पूरी तरह दुरुपयोग मानते हैं और वो भी एक राज्य सरकार की तरफ से. साथ ही ये कोर्ट के समय की भी बर्बादी है.

ये भी पढ़ें: प्रभावी यातायात योजना के लिए सुप्रीम कोर्ट ने समिति गठित करने के निर्देश दिए

एकल पीठ के फैसले को चुनौती दी थी
एकल पीठ ने 22 मार्च के अपने आदेश में कहा कि इस प्रकार हम एसएलपी पर 20 हजार रुपए का जुर्माना करते हैं, जिसे चार हफ्ते के अंदर सुप्रीम कोर्ट समूह सी (गैर लिपिकीय) कर्मचारी कल्याण संगठन के पास जमा कराया जाए. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार ये जुर्माना उन अधिकारियों से वसूले, जो इस दु:साहस के लिए जिम्मेदार हैं. हाई कोर्ट के एकल जज की पीठ ने दिसंबर 2018 में एक नौकरशाह की याचिका पर फैसला सुनाया था, जिसमें उन्होंने जून 2016 में सेवा से बर्खास्त करने के सरकार के फैसले को चुनौती दी थी.

ये भी पढ़ें: जबरन धर्मांतरण के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर

नौकरशाह के खिलाफ कथित तौर पर अवैध रूप से संपत्ति अर्जित करने के लिए एफआईआर दर्ज की गई थी, उन्हें निलंबित कर दिया गया और उनके खिलाफ विभागीय कार्रवाई शुरू की गई. एकल पीठ ने जून 2016 के बर्खास्तगी के आदेश को खारिज कर दिया था और जांच रिपोर्ट भी खारिज कर दी थी. राज्य सरकार ने एकल पीठ की तरफ से दिसंबर 2018 में दिए गए फैसले को खंडपीठ में चुनौती दी थी. हाई कोर्ट ने कहा था कि मामले में कुछ समय तक सुनवाई के बाद वकीलों ने संयुक्त रूप से आग्रह किया कि सहमति के आधार पर अपील का निपटारा किया जाए. इसी मुताबिक आदेश दिया जाता है.

पटना/नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार की एक अपील को खारिज करते हुए कोर्ट का समय बर्बाद करने के लिए राज्य सरकार पर 20 हजार रुपए का जुर्माना लगाया है. विभिन्न पक्षों के एक मामले पर सहमत होने के बाद पटना हाई कोर्ट की तरफ से मामले का निस्तारण करने से ये अपील जुड़ी हुई थी.

जज एसके कौल और जज आरएस रेड्डी ने कहा कि राज्य सरकार ने हाई कोर्ट की खंडपीठ के आदेश के खिलाफ पिछले साल सितंबर में सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) दाखिल की थी. हाई कोर्ट ने इसकी याचिका का सहमति के आधार पर निस्तारण कर दिया था.

राज्य सरकार जिम्मेदार अधिकारियों से जुर्माना वसूले
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि मामले पर कुछ समय सुनवाई के बाद राज्य सरकार की तरफ से पेश हुए वकील ने संयुक्त रूप से आग्रह किया कि अपील का सहमति के आधार पर निपटारा किया जाए. पीठ ने कहा कि इसके बाद सहमति के आधार पर निपटारा कर दिया गया. इसके बावजूद विशेष अनुमति याचिका दायर की गई. हम इसे अदालती प्रक्रिया का पूरी तरह दुरुपयोग मानते हैं और वो भी एक राज्य सरकार की तरफ से. साथ ही ये कोर्ट के समय की भी बर्बादी है.

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एकल पीठ के फैसले को चुनौती दी थी
एकल पीठ ने 22 मार्च के अपने आदेश में कहा कि इस प्रकार हम एसएलपी पर 20 हजार रुपए का जुर्माना करते हैं, जिसे चार हफ्ते के अंदर सुप्रीम कोर्ट समूह सी (गैर लिपिकीय) कर्मचारी कल्याण संगठन के पास जमा कराया जाए. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार ये जुर्माना उन अधिकारियों से वसूले, जो इस दु:साहस के लिए जिम्मेदार हैं. हाई कोर्ट के एकल जज की पीठ ने दिसंबर 2018 में एक नौकरशाह की याचिका पर फैसला सुनाया था, जिसमें उन्होंने जून 2016 में सेवा से बर्खास्त करने के सरकार के फैसले को चुनौती दी थी.

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नौकरशाह के खिलाफ कथित तौर पर अवैध रूप से संपत्ति अर्जित करने के लिए एफआईआर दर्ज की गई थी, उन्हें निलंबित कर दिया गया और उनके खिलाफ विभागीय कार्रवाई शुरू की गई. एकल पीठ ने जून 2016 के बर्खास्तगी के आदेश को खारिज कर दिया था और जांच रिपोर्ट भी खारिज कर दी थी. राज्य सरकार ने एकल पीठ की तरफ से दिसंबर 2018 में दिए गए फैसले को खंडपीठ में चुनौती दी थी. हाई कोर्ट ने कहा था कि मामले में कुछ समय तक सुनवाई के बाद वकीलों ने संयुक्त रूप से आग्रह किया कि सहमति के आधार पर अपील का निपटारा किया जाए. इसी मुताबिक आदेश दिया जाता है.

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