पटना: बिहार की धरती क्रांति की धरती रही है. राज्य की सरजमीं से सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक और सांस्कृतिक आंदोलन होते रहे हैं. साहित्य जगत को भी बिहार की धरती ने कई सूरमा दिए हैं. खासकर स्वतंत्रता आंदोलन में 'सरफरोशी की तमन्ना' शेर को पढ़कर सिपाही फांसी चढ़ जाते थे उसकी रचना भी राम प्रसाद बिस्मिल के बजाय एक बिहारी ने ही की थी.
बिस्मिल अजीमाबादी की लिखी शायरी ने लिया आंदोलन का रुप
जंग-ए-आजादी के सिपाहियों के लहू में क्रांति की लहर पैदा करने में उस दौर के शायरों और कवियों ने बढ़-चढ़कर भूमिका निभाई थी. उसी दौर में एक शेर ने आंदोलन का रूप ले लिया. पटना सिटी के मंगल तालाब के पीछे लोदी कटरा इलाके के रहने वाले बिस्मिल अजीमाबादी की लिखी शायरी वो शायरी आजादी के दीवानों के जुबान पर हर वक्त रहता था.
पटना के रहने वाले थे बिस्मिल अजीमाबादी
इस शेर को मशहूर क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल ने फांसी के फंदे पर झूलने से पहले आखिरी बार पढ़ा था. उसी के बाद से इसके रचनाकारों में उनका नाम शुमार होने लगा. लेकिन हकीकत कुछ और है इसे लिखने वाले राम प्रसाद बिस्मिल नहीं बल्कि बिस्मिल अजीमाबादी थे जो पटना सिटी के रहने वाले थे. इनका असली नाम सैयद शाह मोहम्मद हसन था अपनी शायरी का शौक बिस्मिल अजीमाबादी के नाम से पूरा करते थे.
1921 के कांग्रेस के कोलकाता अधिवेशन में पढ़ा गया यह शेर
बिस्मिल अजीमाबादी के इस शेर को 1921 के कांग्रेस के कोलकाता अधिवेशन में पढ़ा गया था. उस दौर के एक चर्चित अखबार 'सबाह' में भी इस शेर को प्रमुखता से छापा गया था. उसका असर इतना हुआ कि युवाओं खासकर क्रांतिकारियों के बीच यह काफी प्रचलित हो गया. अंग्रेजों के दबाव के वजह से बाद में अखबार सबाह का प्रकाशन भी बंद कर दिया गया. अंग्रेजों ने बड़ी तेजी से बिस्मिल अजीमाबादी की खोज भी शुरू कर दी लेकिन बड़ी मुश्किल से वह अपनी जान बचाने में सफल रहे.
राम प्रसाद बिस्मिल ने फांसी का इस्तकबाल करने से पहले पढ़ा शेर
उधर प्रसिद्ध काकोरी ट्रेन लूट कांड में अभियुक्त बना कर अंग्रेजों ने राम प्रसाद बिस्मिल समेत 15 क्रांतिकारियों को जेल में डाल दिया इनके खिलाफ केस चला और बिस्मिल समेत तीन अन्य को फांसी की सजा दी गई. राम प्रसाद बिस्मिल ने फांसी पर झूलने से पहले इसी शेर को पढ़ा और हंसते हंसते कुर्बान हो गए.
1978 को दुनिया से रुखसत हो गए बिस्मिल अजीमाबादी
20 जून 1978 को बिस्मिल अजीमाबादी का निधन हो गया. 1980 में बिहार उर्दू अकादमी की मदद से शिकायत-ए-हस्ती का प्रकाशन हुआ. इसमें बिस्मिल अजीमाबादी का नाम का उल्लेख भी मिलता है.