पटनाः सोमवार से बिहार विधान सभा (Bihar Legislative Assembly) का मॉनसून सत्र (Monsoon session) शुरू हो रहा है. सत्र को लेकर सत्तापक्ष और विपक्ष, अपनी-अपनी रणनीति पुख्ता तौर पर तैयार कर चुके हैं. मुद्दे, जनता की बात, महंगाई, बढ़ी कीमत, भ्रष्टाचार, अफसरशाही, पढ़ाई, कमाई, दवाई, सुनवाई, कार्रवाई विधानसभा सत्र में काफी जोर-जोर से बोले जाएंगे. मुद्दों की राजनीति और जनता के मुद्दों की सियासत सदन में साफ दिखेगी. लेकिन कई ऐसे सवाल हैं, जिनको लेकर जनता अभी भी पशोपेश में है कि इस बार फिर सदन की कार्रवाई कहीं बिहार के मूल मुद्दों का मजाक ना बना जाय.
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बिहार विधानसभा क्षेत्र में 23 मार्च को बजट सत्र में हुई पुलिस की कार्रवाई, विधायकों के साथ मारपीट का मामला विपक्ष के मुद्दों में सबसे ऊपर है. हालांकि विपक्ष को शांत करने के लिए सत्ता पक्ष की तरफ से दो पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई कर तो दी गई लेकिन इससे विपक्ष चुप होगा, लगता नहीं है. क्योंकि 25 से ज्यादा विधायकों के साथ मारपीट की बात सामने आई थी. जबकि सिर्फ दो पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई की गई है. आखिर पुलिस को बचाने के पीछे कौन लोग हैं? जो गलती हुई उसका मूल जिम्मेदार कौन है? सदन में इस बात का मजबूती से उठना तय है और विपक्ष इस मुद्दे को अपने हाथ से जाने भी नहीं देगा.
बिहार विधानसभा में इस बार कोरोना वायरस को लेकर हंगामा तय है. एक तरफ जहां विपक्ष राज्य में कोरोना से हुई मौत, ऑक्सीजन की किल्लत, ऑक्सीजन से अस्पतालों में हुई मौत और बदहाल अस्पताल व्यवस्था को मुद्दा बनाएगा. वहीं विपक्ष भी तेजस्वी को लेकर मुद्दे तैयार कर रखा है. कोरोना के समय तेजस्वी का बिहार से बाहर रहना, राजद नेताओं द्वारा सरकार का सहयोग न करना, जैसे उत्तर से सत्ता पक्ष भी तैयार है.
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लेकिन इस आरोप-प्रत्यारोप के बीच कुछ नहीं होगा. जनता के मुद्दे जो कोरोना के लेकर जूझ रहे हैं और आने वाले समय में जनता को भी उससे दो-चार होना पड़ेगा. क्योंकि वैक्सीन की कमी और 6 महीने में छह करोड़ लोगों को टीका लगाने का टारगेट पूरा होता नहीं दिख रहा है. इस मुद्दे पर सिर्फ सदन में बहस होगी. सदन स्थगित होगा. लोग बाहर आकर बयान देंगे. जनता देखेगी कि उनकी चर्चा हो रही है.
बिहार विधानसभा के सत्र में जाति आधारित जनगणना का मुद्दा भी अहम रहेगा. इसमें विपक्ष के हाथ ज्यादा मजबूत हैं. केंद्र और राज्य में चल रही सरकार भाजपा और जदयू के गठबंधन से है. जदयू यह चाहती है कि जाति आधारित जनगणना हो. लेकिन केंद्र सरकार जाति आधारित जनगणना से अब खुद को किनारे करती नजर आ रही है. ऐसे में विपक्ष यह सवाल जरूर उठाएगा कि नीतीश कुमार स्पष्ट करें कि जब सदन से जाति आधारित जनगणना का मामला पास हो चुका है, तो केंद्र को लेकर नीतीश का रूप क्या होगा.
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इस सवाल का जवाब देना जदयू के लिए थोड़ा मुश्किल जरूर हो सकता है. क्योंकि विरोध की एक राजनीति इस मुद्दे से निश्चित तौर पर खड़ी होगी. जाति आधारित जनगणना को लेकर राजद मजबूत इसलिए भी दिख रही है, क्योंकि नीतीश जिस समर्थन के साथ सरकार चला रहे हैं, उसमें मुद्दे और नीति एक दूसरे के विरोध के साथ हैं.
बिहार विधानसभा के सत्र में सरकार पर कानून व्यवस्था और भ्रष्टाचार को लेकर बड़े आरोप लगेंगे. यह बिल्कुल सही है. जिसके भरोसे शराबबंदी कानून को नीतीश ने बिहार में लागू किया. अब उसी पुलिस पर शराब दिखाने के आरोप लग रहे हैं. ऐसे में नीतीश के सुशासन व्यवस्था पर बड़े सवाल उठ रहे हैं. बालू के खेल में जिस तरीके से अब तक एक दर्जन से ज्यादा डीएसपी दो दर्जन से ज्यादा इंस्पेक्टर थाना प्रभारी और जिले के पुलिस कप्तान बदले गए हैं.
उस पर नीतीश के सुशासन वाली व्यवस्था पर सवाल उठना लाजमी है. दरअसल, विपक्ष अब यह भी कहना शुरू कर चुका है कि बालू और शराब के खेल में सत्ता पक्ष के लोगों का ही संरक्षण है. पुलिस की मिलीभगत है. यह विभाग के प्रधान सचिव ही कह रहे हैं. ऐसे में इस मुद्दे पर जवाब दे पाना सरकार के लिए बड़ी चुनौती है. हालांकि दिखावे के लिए 2 जिलों के एसपी और बाकी पदाधिकारियों के तबादले उत्तर के तौर पर खड़े तो जरूर होंगे. लेकिन सदन इसे बहुत आसानी से विपक्ष को मना दे जाए और विपक्ष मान जाए नामुमकिन ही दिख रहा है.
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सदन में विपक्ष जिन सवालों को लाने जा रहा है, उस पर सरकार का चिंतित होना लाजमी है. दरअसल पंचायत चुनाव के लिए बिहार में तैयारी हो रही है. सरकार के गांव वाले विकास का पूरा मॉडल पंचायत चुनाव में साफ होगा. नीतीश के सात निश्चय का मॉडल गांव की संरचना को लिए हुए है. ऐसे में पंचायत चुनाव में नीतीश अपने वोट बैंक को फिर से बचाने की और पाने की पूरी कोशिश करेंगे. इसके लिए नीतीश कुमार अपने पार्टी के दो कुशवाहा नेताओं को बिहार भ्रमण के लिए उतार भी रखे हैं.
गांव की संरचना, बाढ़, कोरोना वायरस, सड़क की दिक्कत और कानून व्यवस्था विपक्ष के हाथ में तुरुप के पत्ते जैसा है. जिस पर सरकार को जवाब देने में निश्चित तौर पर दिक्कत आएगी. और यह विपक्ष का ज्यादा मजबूत पहलू भी है. क्योंकि पंचायत चुनाव को लेकर सरकार अपनी छवि जरूर मजबूती से सदन में रखना चाहेगी.
सदन के सत्र को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष अपनी-अपनी तैयारी में लगे हुए हैं. जनता के मुद्दों की बात होगी, जनता के मुद्दे का जवाब होगा. लेकिन बात और जवाब के बीच अगर कुछ नहीं होगा, तो जनता के लिए वह सब कुछ, जो हमेशा सदन की हंगामे वाली कार्यवाही की भेंट चढ़ जाती है.
अब देखना है इस बार सदन के सत्र में सत्ता पक्ष विपक्ष को मना कितना पाती है. विपक्ष जनता के पक्ष को लेकर सरकार को झुका कितना पाती है. लेकिन सिर्फ सदन में मन का चलता रहे तो 23 मार्च की घटना एक गवाह तो बन ही गई है, सदन के ना चलने की, जनता के सुनने की, अब सोचना तो इन्हीं माननीयों को है कि जनता की बात सुननी है या फिर पुलिस बुलाई जाएगी.
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