पटना : बिहार की राजनीति में कई सालों तक राज करने वाली पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) का इस लोकसभा चुनाव में सूपड़ा साफ हो गया है. जातीये समीकरण को साधकर राज्य की सत्ता पर 15 वर्षो तक काबिज रहने वाली तथा केंद्र में सरकार बनाने में 'किंगमेकर' की भूमिका निभाने वाली राजद इस चुनाव में कई सीटों पर मुकाबले में तो जरूर रही, लेकिन एक भी सीट जीत नहीं सकी.
राजद के इस प्रदर्शन के बाद बिहार की राजनीतिक फिजा में कई सवाल तैरने लगे हैं तथा अब राजद भी अपनी रणनीति में बदलाव के संकेत दे रहा है.
एमवाई समीकरण ध्वस्त
चुनाव परिणामों को गौर से देखा जाए तो राजद का वोट बैंक समझे जाने वाले मुस्लिम-यादव (एमवाई) समीकरण में भी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) ने सेंध लगाई है. माना जा रहा है कि राजद अगर अपने वोटबैंक को समेटने में कामयाब होता तो उजियारपुर में राजग प्रत्याशी नित्यानंद राय 2.77 लाख के मतों से नहीं जीतते. इसके अलावा बेगसूराय, सीवान, मधुबनी सीटों पर भी राजग उम्मीदवारों की जीत का अंतर कम होता.
पत्रकारों का क्या है कहना
पटना के वरिष्ठ पत्रकार संतोष सिंह कहते हैं कि बिहार में जब त्रिकोणात्मक मुकाबले होते थे, तब भी राजद के हिस्से 30 से 31 प्रतिशत वोट आते थे. इस चुनाव में जब राजग और महागठबंधन में आमने-सामने का मुकाबला था, तब भी राजद को इतने ही वोट मिले. उन्होंने कहा कि लालू प्रसाद को बिहार में जमीन से राजनीति का क्षत्रप बनाने की कहानी के पीछे एकमात्र गठजोड़ जातिवाद का रहा है, लेकिन अब रणनीति में बदलाव आवश्यक है.
उठना होगा जातिवाद से उपर
उनका कहना है, 'इस चुनाव में राजद का वोट बैंक दरका है. राजद को अब ना केवल जातिवाद की राजनीति से उपर उठकर सभी जातियों को साथ लेकर चलने की रणनीति बनानी होगी, बल्कि राजनीति में नकारात्मक अभियान को भी छोड़कर जनता के बीच जाना होगा.'
क्या कहते हैं राजनीतिक विश्लेषक
इधर, राजनीतिक विश्लेषक मनोज चौरसिया कहते हैं कि राजद प्रमुख लालू प्रसाद के जेल जाने के बाद उनके पुत्र तेजस्वी का पार्टी पर वर्चस्व हो गया, जबकि कई अनुभवी नेता हाशिये पर चले गए. उनका कहना है कि इस समय राजद के लिए आत्ममंथन का समय है.
उन्होंने कहा, 'राजद को शून्य से आगे बढ़ना होगा और एक विजन के साथ जनता के बीच जाना होगा. इसके अलावे परिवारवाद छोड़कर अनुभवी नेता को भी पार्टी के महत्वपूर्ण निर्णयों में भागीदारी देनी होगी, जिससे लोगों को लालू प्रसाद की कमी का एहसास ना हो.'
राजद ने दिए बदलाव के संकेत
राजद ने भी इस हार से सबक सीख बदलाव के संकेत दिए हैं. राजद के प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी कहते हैं कि इस हार से सबक मिली है. इस हार को लेकर मंथन किया जाएगा और हार क्यों हुई है, रणनीति में चूक की पहचान कर उसमें सुधार करने की कोशिश की जाएगी. उन्होंने कहा, 'हार हुई है, लेकिन विचारधारा मरी नहीं है. हमलोग खड़े होंगे और फिर से लड़ेंगे.'
रणनीति में बदलाव करेगा राजद
राजनीतिक विश्लेषक सुरेंद्र किशोर हालांकि इससे सहमत नहीं दिखते. उन्होंने कहा, कि 'राजद ने जो गंवई गीत सीखा है, वही गाएगा.' इसमें बदलाव की उम्मीद कम है. मेरे विचार से राजद की राजनीति अपने प्रतिद्वंद्वी की गलती का इंतजार कर उसका लाभ लेने की होगी.'
उन्होंने यह भी कहा कि राजद का प्रतिद्वंदी स्वच्छ छवि का है, जबकि राजद की छवि किसी से छिपी नहीं है. जब मतदाता के सामने स्वच्छ छवि का विकल्प मौजूद है, तो कोई राजद की ओर क्यों जाएगा?किशोर हालांकि यह भी कहते हैं कि राजद अगर रणनीति में बदलाव भी करता है तो लोग इसे कितना पसंद करेंगे यह देखने की बात होगी. उन्होंने स्पष्ट कहा कि इसकी उम्मीद नहीं है.
कई पार्टी के अध्यक्ष भी हारे
इस चुनाव में लालू प्रसाद की राजद पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी रालोसपा, जीतन राम मांझी की पार्टी हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) और मुकेश सहनी की पार्टी विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) सहित अन्य कई दलों के साथ चुनाव मैदान में उतरी. ईवीएम ने ऐसा चमत्कार किया कि ये तीनों नेता भी पूरे कुशवाहा, दलित, सहनी और निषाद समाज का समर्थन हासिल नहीं कर सके. यही कारण है कि इन तीनों दलों के अध्यक्ष को भी हार को सामना करना पड़ा.
राजद का खाता तक नहीं खुला
इस लोकसभा चुनाव में बिहार में राजग ने 39 सीटों पर सफलता हासिल की है, जबकि एक सीट (किशनगंज) पर कांग्रेस को जीत मिली है. महागठबंधन में शामिल राजद का खाता तक नहीं खुला. आंकड़ों पर गौर करें तो बिहार की 243 विधानसभा क्षेत्रों में सिर्फ 18 सीटों पर महागठबंधन के प्रत्याशी आगे रहे.
बहरहाल, इस चुनाव में राजद का सूपड़ा साफ हो गया. अब आनेवाले विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी को नए सिरे से सोचना होगा.