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पढ़ें, बिहार में 1980 से हो रहे पलायन की पूरी रिपोर्ट, कैसे लगेगी इसपर रोक?

बिहार में उद्योगों का न होना, क्वालिटी एजुकेशन की कमी, बाढ़ की समस्या और बढ़ता अपराध ये कुछ ऐसी वजह हैं, जो पलायन को बढ़ावा देती हैं. साल दर साल बढ़ता पलायन कब थमेगा ये किसी नहीं सोचा. हां, कोरोना काल में लोग वापस जरूर आए हैं. पढ़ें पूरी रिपोर्ट...

बिहार की खबर
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Published : Jun 14, 2020, 7:14 PM IST

पटना: देशभर में सबसे ज्यादा पलायन बिहार और यूपी से होता है. बिहार में 1980 के बाद से शुरू हुआ पलायन का दौर साल दर साल बढ़ता गया और फिर रुका नहीं. 1990 में पलायन की रफ्तार तेजी से बढ़ने लगी. लोग अपने घरों को छोड़कर अन्य राज्यों में कमाने जाने लगे. पलायन का प्रतिशत साल दर साल बढ़ता चला गया.

देश में 1991 से 2001 में माइग्रेशन का प्रतिशत 2.4 था. लेकिन 2001 से 2011 अवधि के दौरान माइग्रेशन 4.5 प्रतिशत हो गया. यानी कि लगभग 2 गुना हो गया. बिहार से सबसे अधिक गोवा, दिल्ली, महाराष्ट्र, गुजरात, तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक जैसे राज्यों में लोग जाते हैं. जाने वाले लोगों में मजदूरी का कार्य करने वाले लोगों की संख्या सबसे अधिक होती है. वहीं कोचिंग, तकनीकी शिक्षा और उसके बाद रोजगार के लिए भी हर साल बड़ी संख्या लोग में दूसरे राज्यों में पलायन कर जाते हैं.

पटना से अविनाश की रिपोर्ट

पलायन की समस्या
पलायन को लेकर अभी तक बिहार सरकार की ओर से कभी भी विस्तृत अध्ययन नहीं किया गया. 2016-17 में केंद्र सरकार के आर्थिक सर्वेक्षण में यह बात सामने आई कि बिहार और यूपी से सबसे अधिक लोग पलायन करते हैं. 2001 से 2011 के बीच पलायन पिछले दशक के मुकाबले दोगुना हो चुका है. सर्वेक्षण में देश के 75 जिलों में से बिहार के दो दर्जन जिले सम्मलित थे. इनमें कई जिले बाढ़ प्रभावित रहते हैं. उत्तर बिहार के कोसी प्रभावित जिलों से हर साल लाखों की संख्या में मजदूरी करने जाते हैं.

फिर शुरू हुआ पलायन, (सीतामढ़ी की तस्वीर)
फिर शुरू हुआ पलायन, (सीतामढ़ी की तस्वीर)

एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट का अध्ययन
एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट ने कुछ साल पहले एक अध्ययन कराया था. चुनाव के समय हुए अध्ययन में यह बात निकलकर सामने आयी थी कि यदि छठ या पर्व के समय कोई चुनाव होता है तो वोटिंग प्रतिशत में इजाफा होता है. संस्थान के पूर्व निदेशक डीएम दिवाकर का कहना है कि नीतीश सरकार ने भी दिल्ली की एक संस्था से अध्ययन करवाया था, जिसमें यह बात सामने आई कि माइग्रेंट लेबर पहले कोलकाता, पंजाब और हरियाणा जाते थे. लेकिन अब गुजरात, महाराष्ट्र, दिल्ली सहित कई जगह जाने लगे हैं.

पलायन का दर्द
पलायन का दर्द

क्राइम, बाढ़ और उद्योग-धंधों की कमी
डीएम दिवाकर के अनुसार बिहार से सबसे अधिक पलायन कृषि क्षेत्र से होता है. कृषि क्षेत्र के अलावा कंस्ट्रक्शन से जुड़े हुए लोग सबसे अधिक होते हैं. इसके अलावा छोटे उद्योग धंधों में काम करने वाले लोग भी बड़ी संख्या में जाते हैं. उन्होंने बताया कि बिहार में गुणवत्ता वाले शिक्षण संस्थान नहीं है और इसी कारण जिनके पास परचेसिंग पावर है. वो अपने बच्चों को दूसरे राज्यों में भेजते हैं. इनमें कोटा और हैदराबाद के लिए सबसे ज्यादा छात्र रवाना होते हैं.

विशेषज्ञ डीएम दिवाकर
विशेषज्ञ डीएम दिवाकर
  • वरिष्ठ पत्रकार अशोक मिश्रा ने कहा कि बिहार में 1980 के बाद से पलायन बढ़ना शुरू हुआ और लगातार बढ़ता ही गया.
    वरिष्ठ पत्रकार अशोक मिश्रा
    वरिष्ठ पत्रकार अशोक मिश्रा

दो जून की रोटी के लिये पलायन
बिहार में ऐसे तो पलायन वर्षों से होता रहा है. लेकिन 90 के दशक के बाद पलायन में काफी तेजी आने लगी क्योंकि बिहार की अधिकांश फैक्ट्रियां बंद हो गई. क्राइम बढ़ गया. रोजगार नहीं रहने से 2 जून की रोटी के लिए लोगों का बाहर जाना मजबूरी हो गया. लेकिन दुर्भाग्य से पलायन कभी भी चुनाव में कोई बड़ा मुद्दा नहीं बना और न ही बिहार सरकार ने कभी भी गंभीरता से इसे लेते हुए इस पर विस्तृत रूप से अध्ययन ही कराया. कोरोना महामारी के समय जब प्रवासी लाखों की संख्या में लौट रहे हैं, तो बिहार सरकार ने प्रवासियों का स्किल मैपिंग कराने का फैसला लिया और उस पर काम भी हो रहा है. लेकिन बिहार में चुनावी साल है देखना है पलायन इस बार भी मुद्दा बनता है या नहीं.

पटना: देशभर में सबसे ज्यादा पलायन बिहार और यूपी से होता है. बिहार में 1980 के बाद से शुरू हुआ पलायन का दौर साल दर साल बढ़ता गया और फिर रुका नहीं. 1990 में पलायन की रफ्तार तेजी से बढ़ने लगी. लोग अपने घरों को छोड़कर अन्य राज्यों में कमाने जाने लगे. पलायन का प्रतिशत साल दर साल बढ़ता चला गया.

देश में 1991 से 2001 में माइग्रेशन का प्रतिशत 2.4 था. लेकिन 2001 से 2011 अवधि के दौरान माइग्रेशन 4.5 प्रतिशत हो गया. यानी कि लगभग 2 गुना हो गया. बिहार से सबसे अधिक गोवा, दिल्ली, महाराष्ट्र, गुजरात, तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक जैसे राज्यों में लोग जाते हैं. जाने वाले लोगों में मजदूरी का कार्य करने वाले लोगों की संख्या सबसे अधिक होती है. वहीं कोचिंग, तकनीकी शिक्षा और उसके बाद रोजगार के लिए भी हर साल बड़ी संख्या लोग में दूसरे राज्यों में पलायन कर जाते हैं.

पटना से अविनाश की रिपोर्ट

पलायन की समस्या
पलायन को लेकर अभी तक बिहार सरकार की ओर से कभी भी विस्तृत अध्ययन नहीं किया गया. 2016-17 में केंद्र सरकार के आर्थिक सर्वेक्षण में यह बात सामने आई कि बिहार और यूपी से सबसे अधिक लोग पलायन करते हैं. 2001 से 2011 के बीच पलायन पिछले दशक के मुकाबले दोगुना हो चुका है. सर्वेक्षण में देश के 75 जिलों में से बिहार के दो दर्जन जिले सम्मलित थे. इनमें कई जिले बाढ़ प्रभावित रहते हैं. उत्तर बिहार के कोसी प्रभावित जिलों से हर साल लाखों की संख्या में मजदूरी करने जाते हैं.

फिर शुरू हुआ पलायन, (सीतामढ़ी की तस्वीर)
फिर शुरू हुआ पलायन, (सीतामढ़ी की तस्वीर)

एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट का अध्ययन
एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट ने कुछ साल पहले एक अध्ययन कराया था. चुनाव के समय हुए अध्ययन में यह बात निकलकर सामने आयी थी कि यदि छठ या पर्व के समय कोई चुनाव होता है तो वोटिंग प्रतिशत में इजाफा होता है. संस्थान के पूर्व निदेशक डीएम दिवाकर का कहना है कि नीतीश सरकार ने भी दिल्ली की एक संस्था से अध्ययन करवाया था, जिसमें यह बात सामने आई कि माइग्रेंट लेबर पहले कोलकाता, पंजाब और हरियाणा जाते थे. लेकिन अब गुजरात, महाराष्ट्र, दिल्ली सहित कई जगह जाने लगे हैं.

पलायन का दर्द
पलायन का दर्द

क्राइम, बाढ़ और उद्योग-धंधों की कमी
डीएम दिवाकर के अनुसार बिहार से सबसे अधिक पलायन कृषि क्षेत्र से होता है. कृषि क्षेत्र के अलावा कंस्ट्रक्शन से जुड़े हुए लोग सबसे अधिक होते हैं. इसके अलावा छोटे उद्योग धंधों में काम करने वाले लोग भी बड़ी संख्या में जाते हैं. उन्होंने बताया कि बिहार में गुणवत्ता वाले शिक्षण संस्थान नहीं है और इसी कारण जिनके पास परचेसिंग पावर है. वो अपने बच्चों को दूसरे राज्यों में भेजते हैं. इनमें कोटा और हैदराबाद के लिए सबसे ज्यादा छात्र रवाना होते हैं.

विशेषज्ञ डीएम दिवाकर
विशेषज्ञ डीएम दिवाकर
  • वरिष्ठ पत्रकार अशोक मिश्रा ने कहा कि बिहार में 1980 के बाद से पलायन बढ़ना शुरू हुआ और लगातार बढ़ता ही गया.
    वरिष्ठ पत्रकार अशोक मिश्रा
    वरिष्ठ पत्रकार अशोक मिश्रा

दो जून की रोटी के लिये पलायन
बिहार में ऐसे तो पलायन वर्षों से होता रहा है. लेकिन 90 के दशक के बाद पलायन में काफी तेजी आने लगी क्योंकि बिहार की अधिकांश फैक्ट्रियां बंद हो गई. क्राइम बढ़ गया. रोजगार नहीं रहने से 2 जून की रोटी के लिए लोगों का बाहर जाना मजबूरी हो गया. लेकिन दुर्भाग्य से पलायन कभी भी चुनाव में कोई बड़ा मुद्दा नहीं बना और न ही बिहार सरकार ने कभी भी गंभीरता से इसे लेते हुए इस पर विस्तृत रूप से अध्ययन ही कराया. कोरोना महामारी के समय जब प्रवासी लाखों की संख्या में लौट रहे हैं, तो बिहार सरकार ने प्रवासियों का स्किल मैपिंग कराने का फैसला लिया और उस पर काम भी हो रहा है. लेकिन बिहार में चुनावी साल है देखना है पलायन इस बार भी मुद्दा बनता है या नहीं.

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