पटना: बिहार में इन दिनों दलित समाज को लेकर खूब राजनीति हो रही है. नीतीश कुमार (Nitish Kumar) हो या जीतन राम मांझी (Jitan Ram Manjhi) या फिर लालू यादव (Lalu Yadav), सभी की पार्टियों की ओर से दावे हो रहे हैं कि उनकी सरकारों ने दलितों का 'उद्धार' किया है. हालांकि जमीनी हकीकत नेताओं के दावों से इतर है. ईटीवी संवाददाता ने राजधानी के एक मुसहरी टोली में जाकर पड़ताल की और लोगों से उनकी राय जानने की कोशिश की.
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स्लम बस्ती की हकीकत
बिहार में दलितों का विकास किसने किया, विकास हुआ या नहीं, दलित किसे अपना नेता मानते हैं? इन तमाम सवालों का जवाब जानने के लिए ईटीवी भारत की टीम राजधानी पटना के बेली रोड स्थित जगदेव पथ के पास मुसहरी टोला में पहुंची. इस मुसहरी टोला में सबसे ज्यादा दलित समुदाय के लोग रहते हैं. जो जैसे-तैसे परिवार का भरण पोषण करते हैं.
काम नहीं मिलने से नाराजगी
सड़कों पर से फेंके हुए कागज और प्लास्टिक चुनने वाली एक महिला से जब हमारे संवाददाता ने पूछा कि सरकार से कोई रोजगार मिला आपको, तो उसका जवाब था नहीं. महिला ने कहा कि किसी तरह का कोई नाम नहीं मिला है. कागज और कचरा चुनकर किसी तरह गुजारा करते हैं.
लोगों का आरोप, हालात नहीं बदले
नीतीश सरकार का दावा है कि हमारी सरकार में दलितों का विकास हुआ है, लेकिन जब हमने दलित बस्ती में जाकर विकास के बारे में चर्चा की तो लोगों ने कहा इस सरकार में तो हम लोगों को कुछ मिला ही नहीं. हम लोग जो काम पहले करते थे, आज भी वही करते हैं.
'चापाकल और शौचालय भी नहीं मिला'
कई लोगों ने बातचीत में तल्खी के साथ कहा कि हम लोगों को अभी तक किसी भी योजना का लाभ नहीं मिल पाया है. जो पहले का मकान बना है. उसी मकान में हम लोग रहते हैं. हम लोगों की बस्ती में न तो सरकार द्वारा कोई शौचालय बनवाया गया है और ना ही पानी पीने की व्यवस्था की गई है.
नीतीश-मांझी से नाराजगी
वहीं, जब हमारे संवाददाता ने लोगों से बात की और पूछा कि आप लोगों को नीतीश कुमार या फिर जीतन राम मांझी की सरकार से कुछ भला हुआ तो लोगों ने अपनी नाराजगी जताते हुए कहा कि दोनों नेताओं ने हम लोगों को अभी तक कुछ भी नहीं दिया. इस दलित बस्ती के महिलाओं ने कहा कि अभी तक हम लोगों के पास सरकार का राशन भी नहीं मिलता है.
'मांझी ने कुछ नहीं किया'
पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी द्वारा दलित विकास की बात हमेशा कही जाती है, लेकिन जब हमने उनकी बातों को लेकर उनके ही समुदाय के लोगों से जाना तो उन्होंने मांझी के नाम पर अपनी नाराजगी दिखाई. उन्होंने कहा कि वह हम लोगों के समाज के तो हैं, लेकिन कुछ किए नहीं. वो तो सिर्फ हमारे नाम पर राजनीति ही करते हैं.
कोरोना संक्रमण की वजह से लगे लॉकडाउन में हुई परेशानियों को लेकर भी दलित समाज के लोगों का गुस्सा साफ दिखा. उन्होंने कहा कि संक्रमण काल के दौरान जब सभी काम बंद हो गए थे तो सरकार द्वारा कहा गया था कि सभी लोगों को मुफ्त में राशन दिया जाएगा, लेकिन हम लोगों को आज तक राशन भी उपलब्ध नहीं हो पाया है.
दलितों में लालू के प्रति 'सॉफ्टनेस'
हालांकि इस स्लम बस्ती में रहने वाले दलित समुदाय के कई लोगों में आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव द्वारा किए गए कार्यों को लेकर भी खूब चर्चा सुनने को मिली. इन लोगों का मानना है कि लालू प्रसाद की सरकार में जो भी हमारे मोहल्ले में विकास हुआ है, उन्हीं की देन है.
महिला सुरक्षा पर नीतीश की तारीफ
वहीं, महिला सुरक्षा को लेकर जरूर लोग नीतीश कुमार से खुश दिखे. महिलाओं ने कहा कि जब से नीतीश कुमार सत्ता में आए हैं, तब से बाहर निकलने में डर नहीं लगता है. शहर में दिन-रात कहीं भी घूम सकते हैं.
बिहार में दलित पॉलिटिक्स
60 के दशक के अंत में बिहार में दलित राजनीति को पंख लगना शुरू हुआ था. जून 1971 में पहली बार एक दलित नेता भोला प्रसाद शास्त्री ने सत्ता संभाली थी. बाद के सालों में लालू यादव और रामविलास पासवान और नीतीश कुमार सरीखे नेताओं ने दलितों के नाम पर खूब राजनीति की. लालू ने अपने कार्यकाल के दौरान कई सारी योजनाओं की शुरुआत की.
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दलित विकास मिशन का गठन
वहीं, साल 2005 में बिहार की सत्ता संभालने के बाद नीतीश कुमार ने दलितों के विकास को लेकर 'दलित विकास मिशन' का गठन किया. 'महादलित' कैटगरी बनाने के उनके फैसले ने जितनी सुर्खियां बटोरी, चुनावों में वोट भी खूब दिलाए.
मांझी ने की कई घोषणाएं
वहीं, साल 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद नीतीश कुमार ने इस्तीफा देकर दलित समुदाय से आने वाले जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बनाया. मांझी ने भी अपने कार्यकाल के दौरान कई सारी योजनाओं की घोषणा की. कई सारी लागू हुईं और कई सारी उनके पद से हटने के बाद रोक दी गईं.