पटना: 14 सितंबर के दिन ही हिंदी को राजभाषा का दर्जा प्राप्त हुआ था. तब से आजतक इस दिन को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है. हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए कई कोशिशें की जाती हैं. लेकिन साहित्यकारों का मानना है कि हिंदी जन भाषा है और इसे थोपने की जरूरत नहीं है. जरूरत इस बात की है कि दूसरी भाषाओं के शब्दों का समावेश हिंदी में किया जाए. वहीं हिंदी दिवस पर साहित्यकार प्रेम कुमार मणि ने इसको आगे बढ़ाने की प्ररेणा दी.
हिंदी जानने वालों की संख्या बढ़ी
साल दर साल हिंदी बोलने वालों और जानने वालों की संख्या बढ़ रही है लेकिन हिंदी के शब्दों का विस्तार नहीं हो रहा है. दूसरे भाषाओं को हम अपनी हिंदी के लिए नहीं ले पा रहे हैं. प्रसिद्ध साहित्यकार प्रेम कुमार मणि ने कहा कि हमें हिंदी भाषा का सम्मान करना चाहिए. लेकिन इससे किसी को डराने की जरूरत नहीं है.
हिंदी में अन्य भाषा का समावेश है जरुरी
जब हम दूसरे भाषाओं के शब्दों को हिंदी में रखने लगेंगे तभी हिंदी का प्रचार-प्रसार बढ़ेगा. जिस तरीके से ऑक्सफोर्ड के डिक्शनरी में एक हजार से ज्यादा हिंदी शब्दों का समावेश किया जा चुका है. उसी तरीके से हिंदी भाषा के लिए भी ऐसा करना जरूरी है. उन्होंने कहा कि पूरब से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तक लोग हिंदी बोलने और समझने की क्षमता रखते हैं. भारत के अलावा पाकिस्तान, वर्मा, नेपाल जैसे कई देश हैं, जहां हिंदी बोली और समझी जाती है. मैं तो मानता हूं कि पाकिस्तान की भाषा भी हिंदी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजराती है, लेकिन वह हिंदी बहुत अच्छी बोलते हैं.
हिंदी थोपने वाली भाषा नहीं
प्रेम कुमार मणि का यह भी कहना है कि सबसे पहले हिंदी की पढ़ाई अंग्रेजों के समय में अपने व्यवसायिक हितों की रक्षा के लिए फोर्ट विलियम कॉलेज में शुरू की गई. इसका प्रारूप भी तैयार किया गया, लेकिन बाद में भारत में उस स्वरूप को नकार दिया गया. जो हिंदी के लिए सही साबित नहीं हुआ. हिंदी जन भाषा है और इसे हमें किसी पर थोपने की जरूरत नहीं है. इससे किसी को आतंकित करने की भी आवश्यकता नहीं है हम जब तेलुगू और कन्नड़ नहीं बोल सकते तो यह क्यों उम्मीद करते हैं कि वह हिंदी बोले हिंदी खुद-ब-खुद अपना प्रचार-प्रसार कर लेती है.