पटना: दिवाली पर्व को लेकर कई सारी पौराणिक मान्यताएं हैं. कहा जाता है कि दिवाली के दिन अयोध्या के राजा राम अपने चौदह वर्ष का वनवास काट कर वापस अपने नगरी लौटे थे, जिससे अयोध्यावासियों का हृदय अपने परम प्रिय राजा के आगमन से हर्षोल्लास से भर उठा था. उन्होंने श्री राम के स्वागत में घी के दीपक जलाए थे, तभी से हिंदू धर्म के लोग दीपावली का त्योहार मनाते आ रहे हैं. दीपावली में मिट्टी के दीये के साथ-साथ डायन दीया जलाने की भी परंपरा है.
डायन दीया जलाने की पौराणिक परंपरा: दिवाली में वैसे तो मिट्टी के दीये और चाईनीज बल्ब से हर घर जगमग होता है, लेकिन इस बीच दिवाली की रात डायन दीया जलाने की भी पुरानी परंपरा रही है. इसके पीछे कहानी यह भी है की डायन दीया जलाने से घर में बुरी शक्तियों का वास नहीं हो पाता है. यानी अगर दिवाली की रात चौखट पर डायन दिया जलाएंगे तो ऐसे में भूत, भानगढ़, गलत आत्मा का वास घर में नहीं होगा.
घर के चौखट पर जलाते हैं डायन दीया: घर में नकारात्मक शक्तियों का वास न हो इसको लेकर दिवाली की रात सभी लोग अपने घर के बाहर वाली चौखट पर डायन दीया जलाते हैं. डायन दीया की बाजारों में बहुत डिमांड रहती है. डायन दीया बनाने वाले कुम्हारों का कहना है कि हर घर में दीया जलाने की पुरानी परंपरा रही है, ऐसे में बाजार में इसकी खूब बिक्री होती है.
कुम्हार कारीगर बनाते हैं डायन दीया: पटना के धनरूआ के बरनी बाजार में कुम्हार कारीगरों के द्वारा डायन दीया बनाया जा रहा है. कुम्हार कारीगरों ने बताया कि डायन दीया में मिट्टी की एक महिला आकृति का पुतला बनाया जाता है, जिसमें पांच दीये लगाए जाते हैं. पांच छोटे-छोटे दीयों को घी डाल कर जलाया जाता है तो पांच तत्व का प्रतिनिधित्व करता है.
"दिवाली में डायन दिया की बाजारों में खूब डिमांड होती है. डायन दिया बनाने के लिए हम लोग दिवाली आने से 2 महीना पहले से ही तैयारियों में जुट जाते हैं. डायन दीया जलाने से बुरी शक्तियां घर में प्रवेश नहीं करती हैं"- आशा देवी, कुम्हार
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