पटना: दीपावली पर दूसरों का घर रोशन करने वाले कुम्हारों का जीवन खुद अंधेरे में है. बदलते हुए हालात में स्थिति यह है कि महंगे दामों पर मिट्टी खरीदने के बाद तैयार किए जाने वाले दीयों से उनकी लागत तक नहीं निकल पाती है. वहीं, कुछ साल पहले दीपावली नजदीक आते ही मिट्टी के दीये की मांग बढ जाती थी, लेकिन अब उन्हें खरीदने वाले दूर दूर तक नजर नहीं आते. क्योंकि चाइनीज झालरों की बढ़ती मांग ने दीयों की जगह ले ली है. जिसका सीधा असर कुम्हारों पर पड़ रहा है.
चाइनीज लाइट ने ली दीये की जगह
कुम्हार का कहना है कि मिट्टी का दीया बनाना अब कोई रोजगार नहीं रह गया है. इससे रोजी-रोटी भी चलाना मुश्किल हो गया है. उन्होंने बताया कि अब मिट्टी भी अगल-बगल से नहीं मिलता गंगा किनारे से लाना पड़ता है, जो कि महंगा सौदा है. फिर भी अपनी परंपरा का निर्वहन करते हुए पूजा-पाठ के लिए थोड़े बहुत दीये बना लेते हैं. वहीं, उनका कहना है कि जबसे चाइनीज लाइट मार्केट में आया है, तब से दीये की मांग बहुत घट गई है.
'बगैर मिट्टी के दीये की शुभ दीपावली संभव नहीं'
वहीं, कुम्हार ने बताया कि बगैर मिट्टी के दीये की शुभ दीपावली संभव नहीं है, क्योंकि इसमें शुद्ध घी या तेल डालकर इसे जलाया जाता है. जो वातावरण के लिए बेहतर होता है और छोटे-छोटे कीड़े मकोड़े भी इसमें जलकर राख हो जाते हैं. फिर भी आधुनिकता की दौड़ में इसकी अनदेखी हो रही है. साथ ही उन्होंने बताया कि दीपावली में दीये बिकने के बाद जो बच जाते हैं. वह सब धीरे-धीरे पूजा-पाठ के नाम पर साल भर बेचते रहते हैं.