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पटना: चाइनीज बल्व की चमक के सामने कुम्हारों के लिए मिट्टी के दीये बनाना घाटे का सौदा!

कुम्हार ने बताया कि बगैर मिट्टी के दीये की शुभ दीपावली संभव नहीं है, क्योंकि इसमें शुद्ध घी या तेल डालकर इसे जलाया जाता है. जो वातावरण के लिए बेहतर होता है और छोटे-छोटे कीड़े मकोड़े भी इसमें जलकर राख हो जाते हैं. फिर भी आधुनिकता की दौड़ में इसकी अनदेखी हो रही है.

कुम्हार
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Published : Oct 26, 2019, 9:42 AM IST

पटना: दीपावली पर दूसरों का घर रोशन करने वाले कुम्हारों का जीवन खुद अंधेरे में है. बदलते हुए हालात में स्थिति यह है कि महंगे दामों पर मिट्टी खरीदने के बाद तैयार किए जाने वाले दीयों से उनकी लागत तक नहीं निकल पाती है. वहीं, कुछ साल पहले दीपावली नजदीक आते ही मिट्टी के दीये की मांग बढ जाती थी, लेकिन अब उन्हें खरीदने वाले दूर दूर तक नजर नहीं आते. क्योंकि चाइनीज झालरों की बढ़ती मांग ने दीयों की जगह ले ली है. जिसका सीधा असर कुम्हारों पर पड़ रहा है.

चाइनीज लाइट ने ली दीये की जगह
कुम्हार का कहना है कि मिट्टी का दीया बनाना अब कोई रोजगार नहीं रह गया है. इससे रोजी-रोटी भी चलाना मुश्किल हो गया है. उन्होंने बताया कि अब मिट्टी भी अगल-बगल से नहीं मिलता गंगा किनारे से लाना पड़ता है, जो कि महंगा सौदा है. फिर भी अपनी परंपरा का निर्वहन करते हुए पूजा-पाठ के लिए थोड़े बहुत दीये बना लेते हैं. वहीं, उनका कहना है कि जबसे चाइनीज लाइट मार्केट में आया है, तब से दीये की मांग बहुत घट गई है.

मिट्टी का दीया बनाना अब फायदेमंद नहीं

'बगैर मिट्टी के दीये की शुभ दीपावली संभव नहीं'
वहीं, कुम्हार ने बताया कि बगैर मिट्टी के दीये की शुभ दीपावली संभव नहीं है, क्योंकि इसमें शुद्ध घी या तेल डालकर इसे जलाया जाता है. जो वातावरण के लिए बेहतर होता है और छोटे-छोटे कीड़े मकोड़े भी इसमें जलकर राख हो जाते हैं. फिर भी आधुनिकता की दौड़ में इसकी अनदेखी हो रही है. साथ ही उन्होंने बताया कि दीपावली में दीये बिकने के बाद जो बच जाते हैं. वह सब धीरे-धीरे पूजा-पाठ के नाम पर साल भर बेचते रहते हैं.

पटना: दीपावली पर दूसरों का घर रोशन करने वाले कुम्हारों का जीवन खुद अंधेरे में है. बदलते हुए हालात में स्थिति यह है कि महंगे दामों पर मिट्टी खरीदने के बाद तैयार किए जाने वाले दीयों से उनकी लागत तक नहीं निकल पाती है. वहीं, कुछ साल पहले दीपावली नजदीक आते ही मिट्टी के दीये की मांग बढ जाती थी, लेकिन अब उन्हें खरीदने वाले दूर दूर तक नजर नहीं आते. क्योंकि चाइनीज झालरों की बढ़ती मांग ने दीयों की जगह ले ली है. जिसका सीधा असर कुम्हारों पर पड़ रहा है.

चाइनीज लाइट ने ली दीये की जगह
कुम्हार का कहना है कि मिट्टी का दीया बनाना अब कोई रोजगार नहीं रह गया है. इससे रोजी-रोटी भी चलाना मुश्किल हो गया है. उन्होंने बताया कि अब मिट्टी भी अगल-बगल से नहीं मिलता गंगा किनारे से लाना पड़ता है, जो कि महंगा सौदा है. फिर भी अपनी परंपरा का निर्वहन करते हुए पूजा-पाठ के लिए थोड़े बहुत दीये बना लेते हैं. वहीं, उनका कहना है कि जबसे चाइनीज लाइट मार्केट में आया है, तब से दीये की मांग बहुत घट गई है.

मिट्टी का दीया बनाना अब फायदेमंद नहीं

'बगैर मिट्टी के दीये की शुभ दीपावली संभव नहीं'
वहीं, कुम्हार ने बताया कि बगैर मिट्टी के दीये की शुभ दीपावली संभव नहीं है, क्योंकि इसमें शुद्ध घी या तेल डालकर इसे जलाया जाता है. जो वातावरण के लिए बेहतर होता है और छोटे-छोटे कीड़े मकोड़े भी इसमें जलकर राख हो जाते हैं. फिर भी आधुनिकता की दौड़ में इसकी अनदेखी हो रही है. साथ ही उन्होंने बताया कि दीपावली में दीये बिकने के बाद जो बच जाते हैं. वह सब धीरे-धीरे पूजा-पाठ के नाम पर साल भर बेचते रहते हैं.

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Body:आधुनिकता की दौड़ ने सारे सिस्टम को उलट-पुलट कर रख दिया है यही वजह है कि कभी जमीन पर रेंगने वाला कुम्हार का चाक आज के दौर में छत पर फर्राटे भर रहे हैं।दीपावली में मिट्टी के दीये से गांव शहर जेवर और कस्बा को जगमग आने वाले कुमार आज भले ही मिट्टी से बने दिए की महत्व कम होने का रोना रो रहे लेकिन दूसरे अन्य स्रोतों के आय से वे भी खुशहाल दिख रहे हैं। तभी तो चाक कभी टूटी फूटी दुरा दलाल में रंगते हुए चला करती थी। आज छतों पर फर्राटे भर रही है।आज के दौर में कुम्हार जाति के लोग छत पर ही मिट्टी के बर्तन और दिये का निर्माण घुमाकर करते हैं और उसे पकाने के लिए भट्टी भी छत पर ही लगाते हैं।

मिट्टी के दीए बर्तन बनाने वाले कुम्हार बताते हैं कि मिट्टी का दिया बनाना अब कोई रोजगार नहीं रह गया है।मजबूरी है कि पर्व त्यौहार के मौके पर थोड़ा बहुत बना लेते हैं।क्योंकि अब मिट्टी भी अगल बगल से नहीं मिलता है गंगा किनारे से लाना पड़ता है जो महंगा सौदा है फिर भी अपनी परंपरा को निर्वहन करते हुए पूजा-पाठ के लिए थोड़ा बहुत दिए बना लेते हैं। क्योंकि इससे रोटी रोजी चलना मुश्किल हो गया है जबसे चाइनीस लाइट वगैरा मार्केट में आई है तब से इसकी मांग बहुत घट गई है।

जबकि बगैर मिट्टी के दिए गए शुभ दीपावली संभव नहीं है क्योंकि इसमें शुद्ध घी या तेल डालकर इसे जलाया जाता है जो वातावरण के लिए बेहतर होता है और छोटे-छोटे कीड़े मकोड़ों भी इसमें जलकर राख हो जाते हैं फिर भी आधुनिकता की दौड़ में इसकी अनदेखी हो रही है दीपावली में दिए बिकने के बाद जो बच जाते हैं वह सब धीरे-धीरे पूजा-पाठ के नाम पर साल भर बेचते रहते हैं।

वाइट-दिया बनाने वाले कुम्हार


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