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पटना: सड़क किनारे POP का काम करने वालों की आर्थिक स्थिति दयनीय, जीवन के पटरी पर लौटने का इंतजार - Patna News

कोरोना (Corona) के चलते पटना में सड़क किनारे पीओपी का काम करने वालों की स्थिति बदहाल हो गई है. ये लोग बमुश्किल अपने परिवार का पेट पाल रहे हैं. क्या है शिल्पकारों की स्थिति पढ़िए इस रिपोर्ट में...

पटना में शिल्पकारों की स्थिति
पटना में शिल्पकारों की स्थिति
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Published : Jul 9, 2021, 3:11 PM IST

पटना: कोरोना (Covid-19 Effect) का असर देश के सभी वर्गों पर गंभीर रूप से देखने को मिल रहा है. कोरोना के कारण उत्पन्न हुए हालात से सभी वर्ग परेशान हैं. लोगों के आर्थिक हालात काफी दयनीय हो गए हैं. हालांकि लॉकडाउन (Lockdown) खत्म हो गया है और धीरे-धीरे बाजार अब पटरियों पर आने लगे हैं.

ये भी पढ़ें:Lockdown Effect: बोधगया में कोरोना महामारी से पर्यटन उद्योग तबाह, अब तक 200 करोड़ से ज्यादा का नुकसान

पटना में बेली रोड पर सड़क किनारे काफी संख्या में बंजारे पीओपी का काम करते हैं. ये लोग प्लास्टर ऑफ पेरिस और नारियल के छिलके से विभिन्न प्रकार की मूर्तियों को रूप देते हैं. इसके अलावा ये कई कलाकृतियां भी तैयार करते हैं. घरों के इंटीरियर डिजाइनिंग के लिए भी काफी संख्या में पीओपी के बॉर्डर तैयार किए जाते हैं.

इसके अलावा ये कारीगर घरों की छत को सुंदर बनाने के लिए भी कई प्रकार की डिजाइनिंग तैयार करते हैं. लॉकडाउन में हुए बंदी की वजह से कंस्ट्रक्शन का काम बुरी तरह से प्रभावित है और लोगों के आर्थिक हालत भी अच्छे नहीं है. ऐसे में जो कारीगर घरों को सुंदर बनाने के लिए जो विभिन्न उत्पाद बनाया करते हैं, उनकी माली हालत दयनीय हो गई है.

देखें ये वीडियो

इनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है. पटना के बड़े-बड़े खूबसूरत मकानों में जो पीओपी की डिजाइनिंग नजर आते हैं. वह इन्हीं के बनाए हुए रहते हैं. ऐसे में अगर बात करें तो लोगों के पास पैसे ना होने और कंस्ट्रक्शन का काम ना के बराबर होने की वजह से इन बंजारों के उत्पाद बिक नहीं पा रहे हैं.

कालाकृति बनाने वाले ये लोग दशहरा, सरस्वती पूजा, कृष्ण जन्माष्टमी और गणेशोत्सव के मौकों पर विभिन्न देवी-देवताओं की मूर्तियां भी बनाते हैं. लेकिन बीते डेढ़ वर्षों से कोरोना के कारण उत्पन्न हुई स्थिति की वजह से पर्व और त्योहार धूमधाम से नहीं मन रहे हैं. ऐसे में इनके उत्पाद भी पूरी तरह से बिक नहीं पा रहे हैं. सरकार और प्रशासन की तरफ से भी इनके भोजन का कोई इंतजाम नहीं किया जा रहा है. ये लोग बमुश्किल से अपने परिवार का पेट पाल रहे हैं.

ये भी पढ़ें:Lockdown Effect: 'सारी दुनिया का बोझ उठाने वाले' नहीं उठा पा रहे परिवार का खर्चा, कुलियों ने सरकार से लगाई मदद की गुहार

ईटीवी भारत ने सड़क किनारे रहकर मूर्ति और कलाकृति बनाने वाले इन लोगों से बातचीत की. पीओपी का काम करने वाली और बेली रोड पर गणेश उत्सव को लेकर भगवान गणेश की मूर्तियों को रूप दे रही बंजारन दरिया देवी ने बताया कि उनकी सुनवाई करने वाला कोई नहीं है. तीन-तीन बाल बच्चे हैं और कई सांझ उन्हें भूखे सोना पड़ता है. उनके उत्पादों की बिक्री बिल्कुल भी नहीं हो रही है.

उन्होंने बताया कि गणेश उत्सव का समय आ रहा है, ऐसे में वह गणपति की मूर्ति बनाने में लगी हुई हैं. लोग डरा रहे हैं कि फिर से लॉकडाउन लागू हो जाएगा. ऐसे में उन्हें इस बात की चिंता है कि फिर से इस साल अगर मूर्तियां नहीं बिकी तो वह क्या कमाएंगे और क्या खाएंगे.

"पहले बिक्री काफी अच्छी होती थी. प्रतिदिन 20 से 25 की संख्या में उनके उत्पाद बिकते थे लेकिन अब बमुश्किल से 1 से 2 उत्पाद बिक रहे हैं. कई दिन तो उनका कोई भी उत्पाद नहीं बिकता है. एक डिजाइन 70 से 80 रुपये में बिकता है. जब की इनकी लागत ही 50 रुपये तक आती है. मजदूरी भी नहीं निकल पा रहा है ऐसे में परिवार चलाना बहुत मुश्किल हो गया है."- धन राय, पीओपी का काम करने वाले शिल्पकार

"पहले उत्पादों की बिक्री खूब हुआ करती थी. मगर बीते डेढ़ वर्षों से बिक्री पूरी तरह से बंद हो गई है. कभी कभार भूले भटके कोई पहुंचता है तो 1-2 उत्पाद बिक जाते हैं. मगर इससे लागत भी नहीं निकल पाता है. लॉकडाउन की वजह से काफी घाटा हुआ है. कर्ज भी हो गया है. जैसे तैसे गुजर बसर कर रहे हैं. बच्चों का पेट पाल पालना भी मुश्किल हो गया है."- केसरी देवी, बंजारन

ये भी पढ़ें:Lockdown Effect: पुश्तैनी काम छोड़ने को मजबूर हुए लोहार, ये है वजह...

बता दें कि जबसे लॉकडाउन शुरू हुआ है उनकी गरीबी बढ़ गई है. ऐसे में अगर फिर से कंस्ट्रक्शन का काम शुरू होता है तो उम्मीद है कि इनकी जिंदगी धीरे-धीरे पटरी पर लौटनी शुरू हो जाएगी.

पटना: कोरोना (Covid-19 Effect) का असर देश के सभी वर्गों पर गंभीर रूप से देखने को मिल रहा है. कोरोना के कारण उत्पन्न हुए हालात से सभी वर्ग परेशान हैं. लोगों के आर्थिक हालात काफी दयनीय हो गए हैं. हालांकि लॉकडाउन (Lockdown) खत्म हो गया है और धीरे-धीरे बाजार अब पटरियों पर आने लगे हैं.

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पटना में बेली रोड पर सड़क किनारे काफी संख्या में बंजारे पीओपी का काम करते हैं. ये लोग प्लास्टर ऑफ पेरिस और नारियल के छिलके से विभिन्न प्रकार की मूर्तियों को रूप देते हैं. इसके अलावा ये कई कलाकृतियां भी तैयार करते हैं. घरों के इंटीरियर डिजाइनिंग के लिए भी काफी संख्या में पीओपी के बॉर्डर तैयार किए जाते हैं.

इसके अलावा ये कारीगर घरों की छत को सुंदर बनाने के लिए भी कई प्रकार की डिजाइनिंग तैयार करते हैं. लॉकडाउन में हुए बंदी की वजह से कंस्ट्रक्शन का काम बुरी तरह से प्रभावित है और लोगों के आर्थिक हालत भी अच्छे नहीं है. ऐसे में जो कारीगर घरों को सुंदर बनाने के लिए जो विभिन्न उत्पाद बनाया करते हैं, उनकी माली हालत दयनीय हो गई है.

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इनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है. पटना के बड़े-बड़े खूबसूरत मकानों में जो पीओपी की डिजाइनिंग नजर आते हैं. वह इन्हीं के बनाए हुए रहते हैं. ऐसे में अगर बात करें तो लोगों के पास पैसे ना होने और कंस्ट्रक्शन का काम ना के बराबर होने की वजह से इन बंजारों के उत्पाद बिक नहीं पा रहे हैं.

कालाकृति बनाने वाले ये लोग दशहरा, सरस्वती पूजा, कृष्ण जन्माष्टमी और गणेशोत्सव के मौकों पर विभिन्न देवी-देवताओं की मूर्तियां भी बनाते हैं. लेकिन बीते डेढ़ वर्षों से कोरोना के कारण उत्पन्न हुई स्थिति की वजह से पर्व और त्योहार धूमधाम से नहीं मन रहे हैं. ऐसे में इनके उत्पाद भी पूरी तरह से बिक नहीं पा रहे हैं. सरकार और प्रशासन की तरफ से भी इनके भोजन का कोई इंतजाम नहीं किया जा रहा है. ये लोग बमुश्किल से अपने परिवार का पेट पाल रहे हैं.

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ईटीवी भारत ने सड़क किनारे रहकर मूर्ति और कलाकृति बनाने वाले इन लोगों से बातचीत की. पीओपी का काम करने वाली और बेली रोड पर गणेश उत्सव को लेकर भगवान गणेश की मूर्तियों को रूप दे रही बंजारन दरिया देवी ने बताया कि उनकी सुनवाई करने वाला कोई नहीं है. तीन-तीन बाल बच्चे हैं और कई सांझ उन्हें भूखे सोना पड़ता है. उनके उत्पादों की बिक्री बिल्कुल भी नहीं हो रही है.

उन्होंने बताया कि गणेश उत्सव का समय आ रहा है, ऐसे में वह गणपति की मूर्ति बनाने में लगी हुई हैं. लोग डरा रहे हैं कि फिर से लॉकडाउन लागू हो जाएगा. ऐसे में उन्हें इस बात की चिंता है कि फिर से इस साल अगर मूर्तियां नहीं बिकी तो वह क्या कमाएंगे और क्या खाएंगे.

"पहले बिक्री काफी अच्छी होती थी. प्रतिदिन 20 से 25 की संख्या में उनके उत्पाद बिकते थे लेकिन अब बमुश्किल से 1 से 2 उत्पाद बिक रहे हैं. कई दिन तो उनका कोई भी उत्पाद नहीं बिकता है. एक डिजाइन 70 से 80 रुपये में बिकता है. जब की इनकी लागत ही 50 रुपये तक आती है. मजदूरी भी नहीं निकल पा रहा है ऐसे में परिवार चलाना बहुत मुश्किल हो गया है."- धन राय, पीओपी का काम करने वाले शिल्पकार

"पहले उत्पादों की बिक्री खूब हुआ करती थी. मगर बीते डेढ़ वर्षों से बिक्री पूरी तरह से बंद हो गई है. कभी कभार भूले भटके कोई पहुंचता है तो 1-2 उत्पाद बिक जाते हैं. मगर इससे लागत भी नहीं निकल पाता है. लॉकडाउन की वजह से काफी घाटा हुआ है. कर्ज भी हो गया है. जैसे तैसे गुजर बसर कर रहे हैं. बच्चों का पेट पाल पालना भी मुश्किल हो गया है."- केसरी देवी, बंजारन

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बता दें कि जबसे लॉकडाउन शुरू हुआ है उनकी गरीबी बढ़ गई है. ऐसे में अगर फिर से कंस्ट्रक्शन का काम शुरू होता है तो उम्मीद है कि इनकी जिंदगी धीरे-धीरे पटरी पर लौटनी शुरू हो जाएगी.

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