पटना: सनातनी मान्यता में कुछ दोस्ती सबसे ऊपर रखी गई है, जिसमें सेवा भी है और श्रद्धा भी. राम और हनुमान, कृष्ण और सुदामा. सियासत में ये नाम तो बड़े आसानी से दे दिए जाते हैं कि कौन किसके लिए कृष्ण और किसके लिए सुदामा है. कौन किसका राम और कौन किनके हनुमान हैं.
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लेकिन जब सुदामा के दामन को थामने की बात हो तो हाथ दिए बगैर ही वापस हो जाते हैं. जब हनुमान को मान देने की बात आती है तो बस मन की बात करके लोग चुप हो जाते हैं. देश की सियासत में चिराग पासवान के साथ भी कुछ ऐसा ही हो रहा है. 2020 में बिहार के चुनाव में चिराग पासवान बीजेपी के लिए हनुमान तो बन गए, लेकिन जैसे ही 1 साल 2020 में जुड़ा एक और एक ग्यारह 20 और 21 होने के बजाय सिर्फ एक रह गया. यही हाल वर्तमान में चिराग गुट का है.
चुप नहीं रहेंगे राम
अब चिराग इस बात को जोर-जोर से कह रहे हैं कि हनुमान के साथ जो हो रहा है उसे देखकर राम चुप नहीं रहेंगे, लेकिन हनुमान का मान रखने के लिए राम कब मुंह खोलेंगे, पूरे देश में इसकी सियासी चर्चा शुरू हो गई है. हालांकि पहले हनुमान तो कुछ नहीं बोल रहे थे, लेकिन अब हनुमान ने भी मुंह खोल दिया कि अगर मान नहीं रखा गया तो कोर्ट का दरवाजा खुला हुआ है.
मैं कोर्ट जाऊंगा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर कई तरह के कयास लगाये जा रहे हैं. कई नामों पर चर्चा भी हो रही है. सबसे ज्यादा चर्चा चिराग पासवान की है. चिराग पासवान की पार्टी टूट गई. चाचा पारस ने 5 सांसदों के साथ अपना गुट बना लिया. अब पारस को मंत्रिमंडल में शामिल करने की चर्चा शुरू हो गई है.
चढ़ गई हनुमान की तेवरी
मोदी के हनुमान को इस बात का अंदाजा था कि बीजेपी के लोग उनके साथ खड़े होंगे. बात करेंगे, मान-मनुहार करवाएंगे, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ तो हनुमान की तेवरी चढ़ गई. चिराग पासवान ने पूरे बीजेपी और मंत्रिमंडल विस्तार करने वाले लोगों को साफ संदेश दे दिया कि अगर पशुपति कुमार पारस को लोजपा कोटे से केंद्र में मंत्री बनाया गया तो वह कोर्ट चले जाएंगे.
ईटीवी भारत से खास बातचीत करते हुए चिराग पासवान ने कहा कि निजी तौर पर अगर उन्हें इतना सम्मान दिया जाता है तो उन्हें खुशी होगी कि उनके चाचा मंत्री बन गए लेकिन अगर उन्हें लोजपा कोटे से मंत्री बनाया जाता है तो वह कोर्ट चले जाएंगे. चिराग पासवान के इस बयान के बाद सियासी गलियारे में नए समीकरण की चर्चा शुरू हो गई है.
मोदी-नीतीश के भंवर जाल में फंस गई लोजपा
मोदी मंत्रिमंडल के विस्तार को लेकर चर्चा तेज है. एक चर्चा इसी के साथ फिर शुरू हो गई है कि इस बार मंत्रिमंडल के होने वाले विस्तार में लोजपा का शामिल होना नामुमकिन है. दरअसल, लोजपा नीतीश और नरेंद्र मोदी के सियासी चक्रव्यूह में फंस गई है.
नीतीश कुमार ने साफ कह दिया कि लोजपा में टूट उनका अंदरूनी मामला है. चिराग जिसके हनुमान हैं, उसके आदेश का इंतजार कर रहे हैं. ऐसे में अगर मंत्रिमंडल में पशुपति पारस को शामिल किया जाता है तो यह माना जाएगा कि नीतीश कुमार की चाल थी, मोदी का मन, शाह के शह और नीतीश के दबाव में पारस मंत्री भी बन गए.
दामन पर दाग पसंद नहीं करेंगे नीतीश
हालांकि नीतीश कुमार अपने दामन पर इस दाग को लगाना कतई पसंद नहीं करेंगे. क्योंकि सियासी चर्चा यह भी है कि अगर लोजपा केंद्रीय मंत्रिमंडल में नहीं जाती है तो जदयू के खाते में मंत्री के और भी पद आ जाएंगे. बिहार में हंड्रेड परसेंट का स्ट्राइक रेट बीजेपी का है. 17 सीटों पर चुनाव लड़कर 16 सीटें जदयू ने भी जीती हैं. ऐसे में जदयू के खाते में अगर केंद्रीय मंत्रिमंडल की ज्यादा सीटें आती हैं तो इसे नीतीश की जीत मानी जाएगी. नीतीश कतई नहीं चाहेंगे कि यह मौका उनके हाथ से चला जाए.
विवाद सुलझाइए, कैबिनेट में आइए
भाजपा-जदयू के गठबंधन में बिहार में किसी भी बड़े फैसले को लेने से पहले नीतीश की राय ली जाती है. ऐसे में यह माना जा रहा है कि कैबिनेट विस्तार में अगर लोजपा की बात आएगी तो बगैर नीतीश कुमार से पूछे किसी भी नाम पर मुहर नहीं लगेगी. यह गठबंधन की मजबूरी समझी जाए या फिर बीजेपी की सियासी की जरूरत, लेकिन यह तय है कि नाम पर चर्चा नीतीश से जरूर होगी.
अब जबकि पारिवारिक लड़ाई में लोजपा उलझ गई है. नीतीश की ओर से जवाब भी यही होगा और बीजेपी का उत्तर भी कि पहले परिवार में विवाद सुलझाइए फिर आइए और कैबिनेट में जगह पाइए. क्योंकि इस विवाद के बीच अगर किसी भी एक गुट को चाहे वह चिराग का हो या फिर पशुपति काे केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह मिलती है तो नीतीश कुमार की राजनीतिक छवि और नरेंद्र मोदी के हनुमान बनने वाले वैसे तमाम नाम के भरोसे पर सवाल खड़ा हो जाएगा. जो न तो नीतीश चाहते हैं और ना ही नरेंद्र मोदी.
चिराग का रंग
चिराग पासवान ने कोर्ट जाने के बयान को देखकर नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी दोनों के हाथों में इस पूरे खेल का बल्ला पकड़ा दिया है. नरेंद्र मोदी नहीं चाहेंगे कि चिराग पासवान कोर्ट चले जाएं. ऐसे में नीतीश कुमार को मना लेना अब बीजेपी के लिए बहुत आसान होगा. क्योंकि पशुपति पारस को अगर मंत्रिमंडल में लिया जाता है और चिराग कोर्ट जाते हैं तो बड़ी किरकिरी हो जाएगी. बीजेपी उत्तर प्रदेश चुनाव के पहले यह नहीं चाहती कि ऐसे किसी सियासी नाराजगी को वह जनता के सामने जाने दे. इसमें नीतीश और नरेंद्र मोदी दोनों को महारत हासिल है.
बस इस बात का इंतजार था कि अगर मंत्रिमंडल में पारस को शामिल किया जाता है तो चिराग का रुख क्या होगा. उस पर चिराग की तल्खी ने एक बात साबित कर दिया कि मंत्रिमंडल का विस्तार हो. चाहे जितने मंत्री बनें, लेकिन पारस को उसमें न रखा जाए. अब इस विरोध को ना तो नीतीश और ना ही नरेंद्र मोदी नजरअंदाज करेंगे. क्योंकि जिस सियासी खेल की पटकथा लिखी गई थी चिराग ने उस पर अंतिम मुहर लगा दी.
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