पटना: 3 मार्च 2014 को मुजफ्फरपुर में पीएम नरेन्द्र मोदी मंच पर बिहार के उस सामाजिक समीकरण के ताने बाने वाले नेताओं के साथ बैठे थे, जिन्होंने बिहार के विकास के लिए लगभग कई बार शपथ ली थी. उसी मंच से 2014 में रामविलास पासवान की पार्टी भाजपा की सहयोगी बनी. इसके साथ ही रालोसपा ने भी भाजपा नीति से समझौता किया था.
बिहार को बदलना है और बदलाव को लिखने के लिए नई टीम ने मन बना लिया है और उसी मन के साथ हर कोई आया हुआ है. इसकी पूरी कहानी उस मंच से कही गयी. बात सीधे नरेन्द्र मोदी की करें, तो उन्होंने बिहार के विकास के न होने की जबरदस्त गिनती जनता के सामने करवा दी. ये बातें उस दौर में कही जा रही थीं, जब 2005 में नीतीश कुमार के साथ सरकार बनाकर बीजेपी 2014 तक उनके साथ रही और इस रैली के चंद महीने पहले ही एनडीए गठबंधन से टूटकर जदयू अलग हो गई. बिहार के विकास के नहीं होने का ठीकरा राजनीतिक तरीके से विपक्षी दलों पर डाला गया और विकास को लेकर आए साथ आये मनों ने अपने लिए जनता से आशीर्वाद मांग लिया था. मन में जो था, सब कुछ सब लोगों ने कह दिया.
इन सवालों ने जीता बिहार का मन
मन में विकास की बात लेकर पहुंचे नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि गन्ने की पैदावार नहीं देने वाले कौन हैं? धान का असली दाम न देने वाले कौन लोग हैं? बिहार को बेरोजगार रखने वाले कौन लोग हैं? मैं इस परेशानी का हल ढूढ रहा हूं. मैं इस मंच से पूछता हूं, क्या पूर्वी भारत का विकास नहीं होना चाहिए? होना चाहिए कि नहीं होना चाहिए? जनता का जबाव मोदी को मिला. मोदी का मन गदगद हो गया. मोदी ने दावा कर दिया कि पूर्वी भारत और बिहार के विकास के बिना देश का विकास संभव ही नहीं है.
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31 मई 2020 और 3 मार्च 2014
अतीत के इस पन्ने का उदाहरण इसलिए देना पड़ा कि 31 मई को जब मोदी ने मन की बात की तो फिर 2014 के उसी बात को दोहरा दिया- पूर्वी भारत के विकास के बिना देश का विकास नहीं हो सकता. सवाल यही है कि मोदी के पहले कार्यकाल में बिहार की विकास की बात को कैसे याद किया गया. बिहार के विकास के बिना देश का विकास संभव नहीं है और उसे करने के लिए मजबूत सरकार चाहिए, पर बिहार ने अपने मन में मोदी को बसा लिया और दिल्ली की गद्दी पर बैठा दिया. लेकिन बिहार के मन का क्या हुआ. यहां लौटकर फिर किसी ने नहीं जाना.
पूर्वी भारत का विकास
नरेन्द्र मोदी के मन में 2014 में जो था, उसे जनता ने मान लिया और मोदी ने उसे मन की बात बना ली. उस समय के मन की बात को मंच से कह दिया और 31 मई को बिहार की बात को मन की बात कह कर रेडियो पर कह दिया. यह मोदी के मन की बात थी. लेकिन बिहार के जिस मन ने पीएम को मान दिया और बिहार के लोगों ने विकास के लिए जो खुशी अपने मन में पाली, आज वो 'मन की बात' को सुनकर उसी रास्ते पर जाकर खड़ी हो गयी, जो मार्च 2014 के पहले बिहार के लिए कही थी. उस रैली से पहले भी बिहार वोट देकर अपनी सरकार और रहनुमा खेाजता था और फिर से एक बार इसी बात की जद्दोजहद शुरू हो गयी. जब पूर्वी भारत और बिहार के विकास के बिना देश का विकास संभव नहीं है.
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सरकार के माथे पर पड़ा है बल
आज के मन की बात को फिर से समझा जाए, तो बिहार के विकास के बिना देश के विकास की बात का राग छेड़ने के पीछे पीएम मोदी का मकसद क्या है. इसका सहज आंकलन किया जा सकता है. बिहार में इसी साल चुनाव होने हैं. ऐसे में कोरोना काल में जिस तरह प्रवासी बिहार लौटे हैं. उसने सरकार के माथे पर बल डाल दिया है. अब नेताओं को यह समझ नहीं आ रहा है कि भरपाई कैसे की जाए.
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क्यों पलटे गए ये पन्ने?
31 मई की मोदी के मन की बात के बाद राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने बिहार के नेताओं से वीडियो चैट कर ली. ये वीडियो चैट बिहार के प्रवासियों को लुभाने के लिए बनाई गई नीति को लेकर भी हो सकती है. बहरहाल, सत्ता की हुकूमत के लिए होने वाली जंग में मुद्दों की गोटी और पासा फेंकने का काम शुरू हो गया है. पूर्वी भारत से पार्टी को मजबूत जनाधार मिले बिना सरकार की गद्दी दिल्ली में रहेगी यह संकट भी गहरा रहा है. दिल्ली और झारखंड के विधानसभा चुनावों में मिली हार के बाद बीजेपी बिहार और बंगाल को हारना नहीं चाहती. शायद यही वजह है कि 2014 के भाषण के पन्नों के कुछ अंश पीएम मोदी की 'मन की बात' में सुनने को मिले.