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राज्यपाल कोटे से MLC बनने वाले मंत्री अशोक चौधरी की सदस्यता पर संकट, HC के फैसले पर नजर - Veterans Forum for Transparency in Public Life

भवन निर्माण मंत्री अशोक चौधरी (Ashok Chaudhary) की एमएलसी मनोनयन और मंत्री बनने मामले में मुश्किलें बढ़ सकती हैं. मामले को कोर्ट में ले जाने वाले एडवोकेट दीनू कुमार के अनुसार सुप्रीम कोर्ट के आदेश का बिहार में उल्लंघन किया गया है. पटना हाईकोर्ट ने भी इसे गंभीरता से लिया है.

अशोक चौधरी
अशोक चौधरी
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Published : Sep 23, 2021, 5:41 PM IST

पटना: राज्यपाल कोटे से एमएलसी मनोनीत भवन निर्माण मंत्री अशोक चौधरी (Building Construction Minister Ashok Chaudhary) और खान व भूतत्व विभाग के मंत्री जनक राम (Mines and Geology Minister Janak Ram) की मुश्किलें बढ़ सकती हैं. वेटरन फोरम फॉर ट्रांसपेरेंसी इन पब्लिक लाइफ (Veterans Forum for Transparency in Public Life) की ओर से याचिका दायर करने वाले एडवोकेट दीनू कुमार के अनुसार भवन निर्माण मंत्री पर दो मामले हैं. जेडीयू विधान पार्षद अशोक चौधरी बिना किसी सदन के सदस्य होते हुए लंबे समय तक मंत्री रहे. 6 महीने का कार्यकाल पूरा होने पर उन्हें हटा दिया गया और दोबारा किसी सदन के सदस्य नहीं होने के बावजूद कुछ ही दिनों बाद नई सरकार में मंत्री बना दिया गया. यह पूरी तरह से संविधान के विरुद्ध है.

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पटना हाइकोर्ट के एडवोकेट दीनू कुमार ने कहा कि भारत के संविधान के प्रावधानों के तहत साहित्य, कला, विज्ञान, सामाजिक कार्यकर्ता और सहकारिता आंदोलन से जुड़े हुए विशिष्ट लोगों का ही मनोनयन राज्यपाल कोटे से हो सकता है. साथ ही यह भी बताया गया है कि सामाजिक कार्यकर्ता को काम का अनुभव व्यवहारिक ज्ञान और विशिष्ट होना चाहिए, लेकिन 12 विधान पार्षदों के मनोनयन में इसकी पूरी तरह से मुख्यमंत्री ने अनदेखी की है. संविधान में मनोनयन से बनने वाले विधान परिषद के सदस्यों को मंत्री बनाने का कोई प्रावधान नहीं है. मुख्यमंत्री ने अशोक चौधरी और जनक राम को मंत्री बनाकर अपने पद का दुरुपयोग किया है. उन्होंने कहा कि देश में पांच राज्यों कर्नाटक, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, बिहार और आंध्र प्रदेश में विधानसभा और विधान परिषद दोनों हैं. कर्नाटक के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी है, वैसे राजनीतिक दल संविधान के मापदंडों के अनुसार कभी भी राज्यपाल कोटे से मनोनयन नहीं करते रहे हैं, यह भी सत्य है.

देखें रिपोर्ट

दरअसल 6 मई 2020 को विधान परिषद का कार्यकाल समाप्त होने के बाद भी अशोक चौधरी 5 नवंबर 2020 तक मंत्री बने रहे. 6 महीना पूरा होने पर कैबिनेट विभाग ने उन्हें मंत्री पद से हटाया, लेकिन फिर 16 नवंबर 2020 को बिना किसी सदन के सदस्य रहते हुए अशोक चौधरी को फिर मंत्री बनाया गया. वहीं 17 मार्च 2021 को अशोक चौधरी को विधान परिषद का सदस्य राज्यपाल कोटे से मनोनीत किया गया. एडवोकेट दीनू कुमार के अनुसार 16 नवंबर 2020 को अशोक चौधरी को मंत्री बनाना और राज्यपाल कोटे से मार्च में विधान परिषद का सदस्य मनोनीत करना दोनों सही नहीं है.

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हालांकि इस पूरे मामले में भवन निर्माण मंत्री अशोक चौधरी बोलने से बच रहे हैं. उनका कहना है कि मामला कोर्ट में है, इसलिए इस पर टीका टिप्पणी करना सही नहीं होगा. उन्होंने कहा कि कोर्ट का फैसला आने दीजिए.

राज्यपाल कोटे से विभिन्न क्षेत्रों में विशिष्टता प्राप्त व्यक्तियों को ही मनोनीत करने का सांवैधानिक प्रावधान है. इसके कारण ही भवन निर्माण मंत्री अशोक चौधरी और भूत्त्व खनन मंत्री जनक राम की मुश्किलें बढ़ गई है. अशोक चौधरी की मुश्किल इसलिए अधिक बढ़ी है, क्योंकि उन्हें पहले छह महीना बिना किसी सदन के सदस्य रहते हुए मंत्री बनाया गया और फिर नई सरकार में भी बिना किसी सदन के सदस्य रहते हुए मंत्री पद दिया गया. हालांकि इस मामले में पटना हाइकोर्ट में विस्तृत सुनवाई होगी. कोर्ट का क्या फैसला आता है, उस पर अब सबकी नजर रहेगी.

पटना: राज्यपाल कोटे से एमएलसी मनोनीत भवन निर्माण मंत्री अशोक चौधरी (Building Construction Minister Ashok Chaudhary) और खान व भूतत्व विभाग के मंत्री जनक राम (Mines and Geology Minister Janak Ram) की मुश्किलें बढ़ सकती हैं. वेटरन फोरम फॉर ट्रांसपेरेंसी इन पब्लिक लाइफ (Veterans Forum for Transparency in Public Life) की ओर से याचिका दायर करने वाले एडवोकेट दीनू कुमार के अनुसार भवन निर्माण मंत्री पर दो मामले हैं. जेडीयू विधान पार्षद अशोक चौधरी बिना किसी सदन के सदस्य होते हुए लंबे समय तक मंत्री रहे. 6 महीने का कार्यकाल पूरा होने पर उन्हें हटा दिया गया और दोबारा किसी सदन के सदस्य नहीं होने के बावजूद कुछ ही दिनों बाद नई सरकार में मंत्री बना दिया गया. यह पूरी तरह से संविधान के विरुद्ध है.

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पटना हाइकोर्ट के एडवोकेट दीनू कुमार ने कहा कि भारत के संविधान के प्रावधानों के तहत साहित्य, कला, विज्ञान, सामाजिक कार्यकर्ता और सहकारिता आंदोलन से जुड़े हुए विशिष्ट लोगों का ही मनोनयन राज्यपाल कोटे से हो सकता है. साथ ही यह भी बताया गया है कि सामाजिक कार्यकर्ता को काम का अनुभव व्यवहारिक ज्ञान और विशिष्ट होना चाहिए, लेकिन 12 विधान पार्षदों के मनोनयन में इसकी पूरी तरह से मुख्यमंत्री ने अनदेखी की है. संविधान में मनोनयन से बनने वाले विधान परिषद के सदस्यों को मंत्री बनाने का कोई प्रावधान नहीं है. मुख्यमंत्री ने अशोक चौधरी और जनक राम को मंत्री बनाकर अपने पद का दुरुपयोग किया है. उन्होंने कहा कि देश में पांच राज्यों कर्नाटक, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, बिहार और आंध्र प्रदेश में विधानसभा और विधान परिषद दोनों हैं. कर्नाटक के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी है, वैसे राजनीतिक दल संविधान के मापदंडों के अनुसार कभी भी राज्यपाल कोटे से मनोनयन नहीं करते रहे हैं, यह भी सत्य है.

देखें रिपोर्ट

दरअसल 6 मई 2020 को विधान परिषद का कार्यकाल समाप्त होने के बाद भी अशोक चौधरी 5 नवंबर 2020 तक मंत्री बने रहे. 6 महीना पूरा होने पर कैबिनेट विभाग ने उन्हें मंत्री पद से हटाया, लेकिन फिर 16 नवंबर 2020 को बिना किसी सदन के सदस्य रहते हुए अशोक चौधरी को फिर मंत्री बनाया गया. वहीं 17 मार्च 2021 को अशोक चौधरी को विधान परिषद का सदस्य राज्यपाल कोटे से मनोनीत किया गया. एडवोकेट दीनू कुमार के अनुसार 16 नवंबर 2020 को अशोक चौधरी को मंत्री बनाना और राज्यपाल कोटे से मार्च में विधान परिषद का सदस्य मनोनीत करना दोनों सही नहीं है.

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हालांकि इस पूरे मामले में भवन निर्माण मंत्री अशोक चौधरी बोलने से बच रहे हैं. उनका कहना है कि मामला कोर्ट में है, इसलिए इस पर टीका टिप्पणी करना सही नहीं होगा. उन्होंने कहा कि कोर्ट का फैसला आने दीजिए.

राज्यपाल कोटे से विभिन्न क्षेत्रों में विशिष्टता प्राप्त व्यक्तियों को ही मनोनीत करने का सांवैधानिक प्रावधान है. इसके कारण ही भवन निर्माण मंत्री अशोक चौधरी और भूत्त्व खनन मंत्री जनक राम की मुश्किलें बढ़ गई है. अशोक चौधरी की मुश्किल इसलिए अधिक बढ़ी है, क्योंकि उन्हें पहले छह महीना बिना किसी सदन के सदस्य रहते हुए मंत्री बनाया गया और फिर नई सरकार में भी बिना किसी सदन के सदस्य रहते हुए मंत्री पद दिया गया. हालांकि इस मामले में पटना हाइकोर्ट में विस्तृत सुनवाई होगी. कोर्ट का क्या फैसला आता है, उस पर अब सबकी नजर रहेगी.

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