पटना: बिहार सरकार जातीय गणना कराने और उसकी रिपोर्ट जारी करने के बाद खुद अपनी पीठ थपथपाने में लगी है, लेकिन कई जाति के लोग इस जातीय गणना को सही नहीं मान रहे हैं. लोगों का कहना है कि राजनीतिक लाभ लेने के लिए जल्दबाजी में सरकार ने इसे पूरा करा लिया है, जिस वजह से इसके आंकड़ें पूरी तरह सही नहीं हैं. ब्राह्मण, भूमिहार, राजपूत, कायस्थ, कुशवाहा, दुसाध, बनिया समेत कई दर्जन जातियों के लोग इस रिपोर्ट पर सवाल खड़े कर रहे हैं. उनका कहना है कि सर्वे टीम उनके घर नहीं आई थी, और रिपोर्ट में उनकी संख्या को कम बताया गया है.
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पटना के लोगों ने उठाए रिपोर्ट पर सवालः इंजीनियर राजकुमार पासवान ने बताया कि साल 2011 में जो दुसाध समाज की आबादी थी उससे इस रिपोर्ट में काम हो गई है और जिस समाज की 12% आबादी थी उसकी आज 14% से अधिक हो गई है. उन्होंने कहा कि पासवान की आबादी 6% से अधिक थी और आज दुसाध की आबादी साढ़े 5% से कम हो गई है. वह सरकार से सवाल पूछेंगे कि क्या 2011 के बाद सिर्फ एक जाति के लोगों ने ही बच्चे पैदा किए हैं. जिससे उनकी जनसंख्या बढ़ी है और बाकी की कम हुई है.
"इस रिपोर्ट को फर्जी मानते हैं क्योंकि जाति गणना के क्रम में शुरू में हमारे मकान की गिनती हुई लेकिन बाद में कोई भी संख्या गिनने के लिए हमारे पास नहीं पहुंचा. पटना में लाखों कायस्थ समाज के लोग रहते हैं और कायस्थ समाज की भी एक प्रतिशत से अधिक जनसंख्या कम बताई गई है. इस रिपोर्ट पर हमें भरोसा नहीं है"-राजकुमार पासवान, स्थानीय
'इस रिपोर्ट पर भरोसा नहीं': वहीं, विनोद कुमार गुप्ता ने बताया कि बनिया समाज की वास्तविक आबादी इस संख्या से काफी अधिक है क्योंकि यह नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव की रिपोर्ट है. इसलिए सिर्फ कुर्मी और यादव जाति की संख्या बढ़ा दी गई है और बाकी की संख्या कम कर दी गई है. उनके यहां कोई सर्वे टीम नहीं पहुंची और सर्वे टीम ने एक जगह पहुंचकर सभी मकानों की गिनती कर दी है. उन्हें इस रिपोर्ट पर बिल्कुल भी भरोसा नहीं और उन्हें लगता है की रिपोर्ट में फर्जीवाड़ा हुआ है.
अभय कुमार कुशवाहा का कहना है- "यह रिपोर्ट पूरी तरह से फर्जी है. जातीय गणना में था कि सर्वे टीम परिवार में कितने लोग हैं इसकी संख्या जानने के बाद परिवार के आमदनी का स्रोत क्या है, सब चीज के बारे में नोट करने के बाद परिवार के मुखिया से हस्ताक्षर कराएगी. परिवार का मुखिया यदि घर पर नहीं है तो परिवार की किसी सदस्य का हस्ताक्षर होना चाहिए. लेकिन ऐसा हुआ ही नहीं. सर्वे टीम लोगों के घर पर नहीं गई. मैं पटना वार्ड नंबर 15 में रहता हूं और मेरे वार्ड में कोई टीम नहीं आई".
'रिपोर्ट में कुशवाहा समाज के आंकड़े गलत': अभय कुमार कुशवाहा ने बताया कि जब पता चला कि जातीय गणना पूरी हो गई है, तब उन्होंने अपने मोहल्ले के कुछ लोगों के साथ मुख्यमंत्री सचिवालय में आवेदन दिया कि संज्ञान लिया जाए कि उनके यहां कोई सर्वे टीम नहीं पहुंची है. इसकी भी उन्हें रिपोर्ट नहीं मिली. ऐसे में इस सर्वे रिपोर्ट पर उन्हें कोई भरोसा नहीं है और रिपोर्ट फर्जी है. कुशवाहा समाज के वास्तविक आंकड़े से कम इस रिपोर्ट में संख्या दर्ज की गई है.
यादव समाज के लोग आंकड़े से संतुष्टः वहीं, पटना की बेऊर के मनोहर कुमार यादव ने कहा कि वह सर्वे रिपोर्ट से संतुष्ट हैं, क्योंकि सर्वे टीम उनके घर पर आई थी और उनसे सब कुछ पूछ कर सर्वे के सवाल भरे गए थे. यादव समाज का जो आंकड़ा दिया गया है वह उससे संतुष्ट हैं. हालांकि यदि कोई कह रहा है कि उनके घर सर्वे टीम नहीं पहुंची तो इस पर भी सरकार को देखना चाहिए.
जारी आंकड़ों के मुताबिक जातियों का प्रतिशतः आपको बता दें कि बिहार सरकार की ओर से जारी किए गए जातीय सर्वे के आंकड़ों के मुताबिक बिहार की कुल आबादी 13 करोड़ से ज्यादा है. जिनमें राजपूत-3.45, भूमिहार-2.89, ब्राह्मण-3.66 और कायस्थ-0.60% हैं. वहीं 24 फीसदी पिछड़ा वर्ग और 36 फीसदी अत्यंत पिछड़ा वर्ग हैं, अनुसूचित जाति की आबादी 19 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति की आबादी 1.68 फीसदी बताई गई है. बिहार में सबसे ज्यादा जाति यादवों की है. आकड़ें के मुताबिक इनकी आबादी 14 फीसद है जबकि कुर्मी 2.8 और कुशवाहा 4.2 प्रतिशत हैं. वहीं राज्य में मुसलमानों की आबादी 17.7 फीसदी है.