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पटना में आदिवासी समाज के लोगों ने मनाया सोहराय पर्व

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Published : Jan 2, 2022, 11:03 PM IST

पटना के मांझी थान में बड़ी संख्या में आदिवासी समाज के लोगों ने सोहराय पर्व (Sohrai Festival Celebrated in Manjhi Than) मनाया. इस पर्व को जनवरी महीने के पहले रविवार को मनाया जाता है.

Tribal Society Celebrated Sohrai Festival in Patna
पटना में आदिवासी समाज के लोगों ने मनाया सोहराय पर्व

पटना: राजधानी पटना में रविवार को मांझी थान में बड़ी संख्या में आदिवासी और संथाल समाज के लोगों ने सोहराय पर्व मनाया (People of Tribal Society Celebrated Sohrai Festival). इस दौरान बड़ी संख्या में मांझी थान में आदिवासी समाज के लोगों ने पूजापाठ किया. आदिवासी समाज के प्रमुख पुजारी बुद्धिनाथ सोरेन ने कहा कि वे हर साल इस पर्व को जनवरी महीने के पहले रविवार को मनाते हैं. यह प्रकृति पर्व है, इसको वे लोग खुले मैदान में मनाते हैं.

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उन्होंने कहा कि पटना में इन लोगों का एक मंदिर है. हर साल आदिवासी समाज के लोग यहां आकर सोहराय पर्व मनाते हैं. उन्होंने कहा कि इस पर्व में वे अपने पूर्वजों की भी पूजा करते हैं और प्रकृति की भी पूजा होती है. जिसमें सूर्य और चंद्रमा की भी पूजा की जाती है.

वहीं, बांका से आयी रेखा सोरेन ने कहा कि यह हमारा परंपरागत पर्व है और हमारे पूर्वज भी इसको मनाते आ रहे हैं. यह पर्व प्रकृति से जुड़ा हुआ है. जनवरी महीने के पहले रविवार से शुरू होता है. आदिवासी समाज के लोग इसे लगातार 15 दिनों तक मनाते हैं.

आदिवासी समाज के संगठन के प्रदेश उपाध्यक्ष सुदामा ने कहा कि मुख्य रूप से प्रकृति पर्व के रूप में वे लोग इसे मनाते हैं. इसमें हम लोग पूर्वजों की पूजा करते हैं. आदिवासी समाज के लोग बहुत पवित्रता के साथ इसे मनाते हैं.

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पटना: राजधानी पटना में रविवार को मांझी थान में बड़ी संख्या में आदिवासी और संथाल समाज के लोगों ने सोहराय पर्व मनाया (People of Tribal Society Celebrated Sohrai Festival). इस दौरान बड़ी संख्या में मांझी थान में आदिवासी समाज के लोगों ने पूजापाठ किया. आदिवासी समाज के प्रमुख पुजारी बुद्धिनाथ सोरेन ने कहा कि वे हर साल इस पर्व को जनवरी महीने के पहले रविवार को मनाते हैं. यह प्रकृति पर्व है, इसको वे लोग खुले मैदान में मनाते हैं.

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उन्होंने कहा कि पटना में इन लोगों का एक मंदिर है. हर साल आदिवासी समाज के लोग यहां आकर सोहराय पर्व मनाते हैं. उन्होंने कहा कि इस पर्व में वे अपने पूर्वजों की भी पूजा करते हैं और प्रकृति की भी पूजा होती है. जिसमें सूर्य और चंद्रमा की भी पूजा की जाती है.

वहीं, बांका से आयी रेखा सोरेन ने कहा कि यह हमारा परंपरागत पर्व है और हमारे पूर्वज भी इसको मनाते आ रहे हैं. यह पर्व प्रकृति से जुड़ा हुआ है. जनवरी महीने के पहले रविवार से शुरू होता है. आदिवासी समाज के लोग इसे लगातार 15 दिनों तक मनाते हैं.

आदिवासी समाज के संगठन के प्रदेश उपाध्यक्ष सुदामा ने कहा कि मुख्य रूप से प्रकृति पर्व के रूप में वे लोग इसे मनाते हैं. इसमें हम लोग पूर्वजों की पूजा करते हैं. आदिवासी समाज के लोग बहुत पवित्रता के साथ इसे मनाते हैं.

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