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दशहरा के बाद छठ की तैयारियां में जुटे लोग, 'सूप-डाला' बनाने वाले कारीगरों ने शुरू किया निर्माण - छठ की तैयारियां में जुटे लोग

छठ पूजा में सूप-डाला की मांग बढ़ जाती है. मांग को देखते हुए इसे बनाने वाले कारिगर अपने परिवार समेत सुबह से देर रात तक इसके निर्माण में जुट गए है.इसको बनाने वाले कारिगरों का कहना है कि इसको बनाने में मेहनत है, लेकिन 'हमारा साल भर का दाल-रोटी चल जाता है'.

'सूप-डाला' बनाने वाले कारिगरों ने शुरू किया निर्माण
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Published : Oct 10, 2019, 1:44 PM IST

पटना: भारत को त्योहारों का देश कहा जाता है. यहां अलग-अलग सभ्यता, धर्म और संस्कृति से जुड़े लोग रहते हैं. इसी कारण यहां सालों भर विभिन्न तरह के त्यौहार मनाए जाते हैं. सूबे में दशहरा संपन्न होने के बाद लोग अब आने वाले पर्व दीवाली और छठ पूजा की तैयारियों में जुट गए हैं. वहीं, इस पूजा में डाला और सूप का विशेष महत्व है. कारीगर भी मांग को देखते हुए अभी से ही इसे बनाने में लग गए हैं.

बांस के कतरन से बनता है सूप और डाला
पटना जिले के बाढ़ थाना के सामने सूप-डाला बनाने वाले एक कारीगर ने कहा कि ये हमारा पुश्तैनी काम है. इसके अलावा हमें कुछ और नहीं आता है. इसको बनाने में मेहनत है, लेकिन हमारी साल भर की दाल-रोटी चल जाती है. वहीं, एक अन्य महिला कारीगर का कहना था कि साल में एक बार छठ पर्व को लेकर सूप-डाला बनाने का काम मिलता है. पर्व की समाप्ति के बाद बांस से बने समानों की मांग कम हो जाती है.

तैयार सूप-डाला
तैयार सूप-डाला

'श्रद्धालु अर्घ्य देकर पाते है मनोवांछित फल'
कारीगरों का कहना है सूप पर अर्घ्य देकर श्रद्धालु मनोवांछित फल पाते हैं. हालांकि बांस के दाम में हर साल बढ़ोत्तरी होने से सूप-डाला बनाना महंगा होता जा रहा है. हम लोग पास के जिले लखीसराय से बांस लाते है. इसे कई भागों में अलग-अलग करने के बाद पानी में भिगोया जाता है. जिसके बाद इसे धूप में सुखा कर इसका निर्णाण किया जाता है.

सूप-डाला बनाते कारीगर
सूप-डाला बनाते कारीगर

छठ में जातियों के आधार पर कहीं कोई भेदभाव नहीं
इस पर्व की सबसे बड़ी खासियत है कि इस त्योहार में समाज में सभी को बराबरी का दर्जा दिया गया है. सूर्य देवता को बांस के बने सूप और डाले में रखकर प्रसाद अर्पित किया जाता है. इस सूप-डाले को सामा‍जिक रूप से अत्‍यंत पिछड़ी जाति के लोग बनाते हैं.

दशहरा के बाद छठ की तैयारियों में जुटे लोग

बिहार से छठ पूजा का विशेष संबंध
इस त्योहार को बिहार का सबसे बड़ा त्योहार भी कहा जाता है. हालांकि अब यह पर्व बिहार के अलावा देश के कई अन्य स्थानों पर भी मनाया जाने लगा है. बताया जाता है कि इस पर्व में सूर्य की पूजा के साथ-साथ षष्‍ठी देवी की पूजा-अर्चना की जाती है. सूबे के औरंगाबाद जिले के देव में प्रसिद्ध सूर्य मंदिर है. यहां साल भर दूर-दूर से लोग मनोकामनाओं को लेकर और दर्शन करने आते हैं. कार्तिक और चैत महीने में छठ के दौरान व्रत करने वालों और श्रद्धालुओं की भारी भीड़ जुटती है. ज्योतिषविदों का कहना है कि बिहार में सूर्य पूजा सदियों से प्रचलित है. सूर्य पुराण में इस देव मंदिर की महिमा का वर्णन मिलता है.

पटना: भारत को त्योहारों का देश कहा जाता है. यहां अलग-अलग सभ्यता, धर्म और संस्कृति से जुड़े लोग रहते हैं. इसी कारण यहां सालों भर विभिन्न तरह के त्यौहार मनाए जाते हैं. सूबे में दशहरा संपन्न होने के बाद लोग अब आने वाले पर्व दीवाली और छठ पूजा की तैयारियों में जुट गए हैं. वहीं, इस पूजा में डाला और सूप का विशेष महत्व है. कारीगर भी मांग को देखते हुए अभी से ही इसे बनाने में लग गए हैं.

बांस के कतरन से बनता है सूप और डाला
पटना जिले के बाढ़ थाना के सामने सूप-डाला बनाने वाले एक कारीगर ने कहा कि ये हमारा पुश्तैनी काम है. इसके अलावा हमें कुछ और नहीं आता है. इसको बनाने में मेहनत है, लेकिन हमारी साल भर की दाल-रोटी चल जाती है. वहीं, एक अन्य महिला कारीगर का कहना था कि साल में एक बार छठ पर्व को लेकर सूप-डाला बनाने का काम मिलता है. पर्व की समाप्ति के बाद बांस से बने समानों की मांग कम हो जाती है.

तैयार सूप-डाला
तैयार सूप-डाला

'श्रद्धालु अर्घ्य देकर पाते है मनोवांछित फल'
कारीगरों का कहना है सूप पर अर्घ्य देकर श्रद्धालु मनोवांछित फल पाते हैं. हालांकि बांस के दाम में हर साल बढ़ोत्तरी होने से सूप-डाला बनाना महंगा होता जा रहा है. हम लोग पास के जिले लखीसराय से बांस लाते है. इसे कई भागों में अलग-अलग करने के बाद पानी में भिगोया जाता है. जिसके बाद इसे धूप में सुखा कर इसका निर्णाण किया जाता है.

सूप-डाला बनाते कारीगर
सूप-डाला बनाते कारीगर

छठ में जातियों के आधार पर कहीं कोई भेदभाव नहीं
इस पर्व की सबसे बड़ी खासियत है कि इस त्योहार में समाज में सभी को बराबरी का दर्जा दिया गया है. सूर्य देवता को बांस के बने सूप और डाले में रखकर प्रसाद अर्पित किया जाता है. इस सूप-डाले को सामा‍जिक रूप से अत्‍यंत पिछड़ी जाति के लोग बनाते हैं.

दशहरा के बाद छठ की तैयारियों में जुटे लोग

बिहार से छठ पूजा का विशेष संबंध
इस त्योहार को बिहार का सबसे बड़ा त्योहार भी कहा जाता है. हालांकि अब यह पर्व बिहार के अलावा देश के कई अन्य स्थानों पर भी मनाया जाने लगा है. बताया जाता है कि इस पर्व में सूर्य की पूजा के साथ-साथ षष्‍ठी देवी की पूजा-अर्चना की जाती है. सूबे के औरंगाबाद जिले के देव में प्रसिद्ध सूर्य मंदिर है. यहां साल भर दूर-दूर से लोग मनोकामनाओं को लेकर और दर्शन करने आते हैं. कार्तिक और चैत महीने में छठ के दौरान व्रत करने वालों और श्रद्धालुओं की भारी भीड़ जुटती है. ज्योतिषविदों का कहना है कि बिहार में सूर्य पूजा सदियों से प्रचलित है. सूर्य पुराण में इस देव मंदिर की महिमा का वर्णन मिलता है.

Intro:


Body:पराया ऐसा देखा गया है कि अनन्यास ही किया गया किसी वस्तु का निर्माण आगे चलकर रोजगार का रूप ले लेती है।वही हाल छठ पर्व मे आर्य देते समय काम में आने वाला सूप का है जिसने भी पहली बार इसका निर्माण किया होगा अपने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि आगे चलकर यह हर घर की जरूरत बन जाएगी। और इसका निर्माण एक कुटीर उद्योग का रूप ले लेगी।सभी प्रकार के अनाजों को चुनने बिजने के समय प्रयोग में आने वाला सूप बाढ़ सहित बिहार के कई जगह पर एक कुटीर उद्योग का रूप ले चुका है।

छठ पर्व में सूप की महत्त्व और अधिक बढ़ जाती है इसलिए दशहरा की समाप्ति के बाद इसके निर्माण में तेजी आ जाती है। इसके कार्य का बाल बच्चों के साथ जोर शोर से इसे बनाने में जुड़ जाते हैं। इस धंधे में जुटे ज्यादातर लोग मल्लिक परिवार से आते हैं। या यूं कहें कि मल्लिक परिवार का यह पुश्तैनी पेशा है तो कोई गलत नहीं होगा। बाढ़ थाना के सामने रहने वाले सभी मल्लिक परिवार इस पेशे से जुड़े हुए हैं। यह लोग बताते हैं कि इससे मनाने में कड़ी मेहनत जरूर लगती है।लेकिन दाल रोटी चल जाता है। वैसे तो यह लोग इस पैसे से सालों भर जुड़े रहते हैं।लेकिन छत पर आते ही सुप निर्माण की रफ्तार तेज हो जाती है क्योंकि उस वक्त सूप की मांग जबरदस्त इजाफा हो जाता है। छठ पर्व में कभी-कभी इसकी मांग में इतनी हो जाती है कि डबल कीमत देने पर भी कहीं कहीं नहीं मिल पाता है।

बांस के कतरन से बनने वाला सुप निर्माण भी गजब है सुख निर्माण में लगने वाला बांस लखीसराय से लाया जाता है।फिर इसे टुकड़ों में तब्दील किया जाता है पानी में फुलाया जाता है फिर इसका कतरन बनाया जाता है।जिसे धूप में सुखाया जाता है।तब शुरू होता है निर्माण कार्य जिससे महिलाओं की भागीदारी अधिक रहती है। कतरन निर्माण तक मर्द का काम रहता है और सुख निर्माण की बागडोर महिलाओं के हाथ में होती है और इस तरह एक अनजान आविष्कार बन गया रोजगार।

बाइट- सुनीता देवी (कारीगर)
बाइट-महेश मल्लिक (कारीगर)


Conclusion:
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