पटना: बिहार के पटना जिले के तारेगना गांव का खगोलीय और अंतरिक्ष भौतिकी से गहरा संबंध है, क्योंकि तारेगना खगोल शास्त्र के प्रख्यात भारतीय वैज्ञानिक आर्यभट्ट (Eminent Indian Scientist Aryabhatta) की कर्मस्थली है. आर्यभट्ट ने तारेगना डीह यानी टीले पर अपनी प्रयोगशाला बनाकर खगोलीय अध्ययन किया था लेकिन हैरत की बात ये है कि वह गांव आज अपना परिचय खोता जा रहा है. इसे ना तो पर्यटन क्षेत्र के रूप में चिह्नित किया गया है और ना ही यहां पर आर्यभट्ट के नाम पर किसी भी तरह का सरकारी निर्माण कराया गया है. हालांकि 22 जुलाई 2009 को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने आर्यभट्ट के नाम पर तारेगना में विकास का ऐलान भी किया था लेकिन इस ओर कोई पहल नहीं हुई. सरकार और प्रशासन की उपेक्षा से ग्रामीणों में काफी नाराजगी है.
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आर्यभट्ट की कर्मस्थली तारेगना: आर्यभट्ट की कर्मस्थली तारेगना (Aryabhatta Work Place Taregna) के ग्रामीणों का कहना है कि आर्यभट्ट ने जिस तारेगना डीह यानी टीले पर अपनी प्रयोगशाला बनाकर खगोलीय अध्ययन किया था, वहां तक पहुंचने के लिए ठीक से एक सड़क तक नहीं बनी. वैज्ञानिकों और सरकारी लोगों को आर्यभट्ट के मूल कर्मस्थल की दूर्दशा जरूर देखनी चाहिए थी. तारेगना गांव दरअसल तारेगना रेलवे-स्टेशन से मात्र डेढ़ दो किलोमीटर दूर और मसौढी बाजार के पीछे है, लेकिन वहां जाते-जाते विकास की रोशनी मद्धम पड़ जाती है. वहीं, डॉ. सुनील गावस्कर राहुल चंद्रा समेत कई बुद्धिजीवियों ने हस्ताक्षर अभियान चलाकर प्रधानमंत्री को तारेगना में आर्यभट्ट की प्रतिमा (Aryabhatta Statue in Taregna) लगाने और क्षेत्र बनाने की मांग करने की बात कही है.
तारेगना में आर्यभट्ट की प्रतिमा: आर्यभट्ट के नाम पर प्रतिमा लगाने और पर्यटन क्षेत्र के रूप में से बढ़ावा देने की मांग के बीच विदेश मंत्रालय के अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद के सदस्य और इसरो में काम कर चुके उपेंद्र अनमोल ने तारेगना का दौरा करते हुए कहा कि वैज्ञानिक विरासत को बचाना बेहद जरूरी है. उन्होंने कहा कि जहां से पूरी दुनिया को आर्यभट्ट ने नई-नई चीजें दी. सौरमंडल से लेकर कई गणितज्ञ फॉर्मूला विश्व को देने वाले आर्यभट्ट के नाम पर यहां कुछ नहीं होना बेहद आश्चर्यजनक है. ऐसे में पीएमओ कार्यालय में और इसरो के सहयोग से विश्व की सबसे बड़ी प्रतिमा आर्यभट्ट की तारेगना में लगे और इसे पर्यटन क्षेत्र में बढ़ावा मिले, इस बात को लेकर चर्चा होनी जरूरी है.
तारेगना में विकास नहीं: कहा जाता है कि गुप्त काल में कभी नालंदा विश्वविद्यालय में ज्ञान प्राप्त कर लौट रहे आर्यभट्ट पटना से सटे मसौढ़ी के तारेगना में ठहरे थे और यहां पर अपने शिष्यों के साथ वेधशाला बनाकर तारों की गणना करते थे. जिस वजह से इसका नाम तारेगना पड़ा था लेकिन आज सरकारी उदासीनता का दंश झेल रहा है. दुखत बात ये है कि आज तक ना तो उस जगह पर आर्यभट्ट के नाम पर प्रतिमा लगी और ना ही पर्यटन स्थल के रूप में चिह्नित किया गया है. तारेगना गांव में किसी तरह का विकास भी नहीं हुआ (No Development in Taregna) है.
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