पटना : बिहार में निबंधित और सुयोग्य फार्मासिस्ट की पर्याप्त संख्या नहीं होने के कारण (registered and qualified pharmacists in bihar) लोगों के स्वास्थ्य पर होने वाले असर के मामले पर पटना हाईकोर्ट में सुनवाई हुई. एडिशनल चीफ जस्टिस सीएस सिंह की खंडपीठ ने इस जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार द्वारा दिए गए जवाब पर अपना असंतोष जाहिर किया. कोर्ट ने सरकार को सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के आलोक में फिर से जवाब देने के लिए 2 सप्ताह का समय दिया. बता दें कि ये जनहित याचिका मुकेश कुमार ने दायर किया है.
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याचिकाकर्ता के अधिवक्ता प्रशान्त सिन्हा ने माननीय कोर्ट को बताया कि डॉक्टरों द्वारा लिखे गए पर्ची पर निबंधित फार्मासिस्टों द्वारा दवा नहीं दी जाती है. उन्होंने बताया कि बहुत सारे सरकारी अस्पतालों में अनिबंधित नर्स, एएनएम, क्लर्क ही फार्मासिस्ट का कार्य करते हैं. वे बिना जानकारी और योग्यता के ही मरीजों को दवा देते हैं. जबकि यह कार्य निबंधित फार्मासिस्टों के द्वारा किया जाना है.
'आम आदमी के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़' : प्रशान्त सिन्हा ने कहा कि इस तरह से अधिकारियों द्वारा अनिबंधित नर्स, एएनएम, क्लर्क से काम लेना न केवल सम्बंधित कानून का उल्लंघन है, बल्कि आम आदमी के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ भी है. उन्होंने बताया कि फार्मेसी एक्ट, 1948 के तहत फार्मेसी से सम्बंधित विभिन्न प्रकार के कार्यों के अलग-अलग पदों का सृजन किया जाना चाहिए. लेकिन राज्य सरकार ने इस संबंध में कोई ठोस कार्रवाई नहीं की है. इस तरह आम लोगों के स्वास्थ्य और जीवन पर खतरा उत्पन्न हो रहा है.
2 सप्ताह बाद सुनवाई : याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने कोर्ट से अनुरोध किया कि फार्मेसी एक्ट, 1948 के अंतर्गत बिहार राज्य फार्मेसी कॉउन्सिल के क्रियाकलापों और भूमिका की जांच के लिए एक कमिटी गठित की जाए. ये कमिटी कॉउंसिल की क्रियाकलापों की जांच करे, क्योंकि ये गलत तरीके से जाली डिग्री देती है. उन्होंने कोर्ट को बताया कि बिहार राज्य फार्मेसी कॉउंसिल द्वारा बड़े पैमाने पर फर्जी पंजीकरण किया गया है. राज्य में बड़ी संख्या में फर्जी फार्मासिस्ट कार्य कर रहे हैं. मामले पर अगली सुनवाई 2 सप्ताह बाद की जाएगी.