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पटना: बदतर स्थिति में आर्ट कॉलेज का हॉस्टल, गंदगी में रहने को मजबूर हैं छात्र

आलम यह है कि हॉस्टल के बाहर से ही अंदर की स्थिति का पता लग जाता है. मेन गेट पर बिजली का तार खुला लटका हुआ है. अंदर घुसते ही बिजली के तारों का जाल दिखता है, जो हादसों को न्योता दे रहा है.

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Published : Jul 23, 2019, 9:56 PM IST

पटना: राजधानी के विद्यापति मार्ग पर कला एवं शिल्प के लिए राज्य का एकमात्र महाविद्यालय स्थित है. यह ललित एवं मूर्तिकला में बिहार झारखंड का एकलौता कॉलेज है. जहां इंटर पास छात्र बैचलर ऑफ फाइन आर्ट की पढ़ाई करते हैं. यहां पढ़ने वाले छात्रों की दशा बेहद दयनीय है. दरअसल, इन छात्रों के लिए बना छात्रावास खंडहर हो चुका है.

आलम यह है कि हॉस्टल के बाहर से ही अंदर की स्थिति का पता लग जाता है. मेन गेट पर बिजली का तार खुला लटका हुआ है. अंदर घुसते ही बिजली तारों का जाल दिखता है, जो हादसों को न्योता दे रहा है. छात्र बताते हैं कि महीने भर से हॉस्टल का मोटर जला हुआ है. जिस कारण पानी की गंभीर परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. हॉस्टल में पीने का शुद्ध पानी तक नहीं है.

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परिसर में फैली गंदगी

कब हुआ था निर्माण ?
बता दें कि बैचलर ऑफ फाइन आर्ट की पढ़ाई 4 साल की होती है. इस संस्थान की स्थापना 25 जनवरी 1939 को हुई थी. देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद भी इस कॉलेज के सदस्य रहे हैं. इस छात्रावास में बुनियादी सुविधाओं का अभाव है.

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खराब पड़े वाटर फ्यूरीफायर

बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव
छात्रों ने बताया कि पीने के पानी या किसी अन्य जरूरी कामों के लिए एक मात्र साधन सप्लाई वाटर है, जो अपने समय पर आता है. छात्रों को पानी स्टोर करके रखना पड़ता है. हॉस्टल में साफ-सफाई का हाल भी बहुत खराब है. परिसर में चारों तरफ गंदगी का अंबार लगा हुआ है. ऐसे में छात्रों को काफी परेशानी होती है. छात्र आए दिन बीमार पड़ते रहते हैं.

ईटीवी भारत संवाददाता की रिपोर्ट

फंड की कमी के कारण बढ़ रही कुव्यवस्था
कॉलेज की मूर्ति कला विभाग के अध्यापक और हॉस्टल के इंचार्ज विनोद कुमार ने बताया कि हॉस्टल में पानी की समस्या के बाबत वह बीते 15 दिनों से पीएचईडी विभाग को लेटर लिख रहे हैं. लेकिन, विभाग की ओर से कोई कार्रवाई नहीं हो रही है. उन्होंने कहा कि पानी एक गंभीर समस्या है और हॉस्टल में पानी की वैकल्पिक व्यवस्था पर भी ध्यान दिया जा रहा है. उन्होंने यह भी कहा कि छात्रावास में फंड की कमी के कारण कुव्यवस्था बढ़ती जा रही है.

पटना: राजधानी के विद्यापति मार्ग पर कला एवं शिल्प के लिए राज्य का एकमात्र महाविद्यालय स्थित है. यह ललित एवं मूर्तिकला में बिहार झारखंड का एकलौता कॉलेज है. जहां इंटर पास छात्र बैचलर ऑफ फाइन आर्ट की पढ़ाई करते हैं. यहां पढ़ने वाले छात्रों की दशा बेहद दयनीय है. दरअसल, इन छात्रों के लिए बना छात्रावास खंडहर हो चुका है.

आलम यह है कि हॉस्टल के बाहर से ही अंदर की स्थिति का पता लग जाता है. मेन गेट पर बिजली का तार खुला लटका हुआ है. अंदर घुसते ही बिजली तारों का जाल दिखता है, जो हादसों को न्योता दे रहा है. छात्र बताते हैं कि महीने भर से हॉस्टल का मोटर जला हुआ है. जिस कारण पानी की गंभीर परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. हॉस्टल में पीने का शुद्ध पानी तक नहीं है.

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परिसर में फैली गंदगी

कब हुआ था निर्माण ?
बता दें कि बैचलर ऑफ फाइन आर्ट की पढ़ाई 4 साल की होती है. इस संस्थान की स्थापना 25 जनवरी 1939 को हुई थी. देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद भी इस कॉलेज के सदस्य रहे हैं. इस छात्रावास में बुनियादी सुविधाओं का अभाव है.

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खराब पड़े वाटर फ्यूरीफायर

बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव
छात्रों ने बताया कि पीने के पानी या किसी अन्य जरूरी कामों के लिए एक मात्र साधन सप्लाई वाटर है, जो अपने समय पर आता है. छात्रों को पानी स्टोर करके रखना पड़ता है. हॉस्टल में साफ-सफाई का हाल भी बहुत खराब है. परिसर में चारों तरफ गंदगी का अंबार लगा हुआ है. ऐसे में छात्रों को काफी परेशानी होती है. छात्र आए दिन बीमार पड़ते रहते हैं.

ईटीवी भारत संवाददाता की रिपोर्ट

फंड की कमी के कारण बढ़ रही कुव्यवस्था
कॉलेज की मूर्ति कला विभाग के अध्यापक और हॉस्टल के इंचार्ज विनोद कुमार ने बताया कि हॉस्टल में पानी की समस्या के बाबत वह बीते 15 दिनों से पीएचईडी विभाग को लेटर लिख रहे हैं. लेकिन, विभाग की ओर से कोई कार्रवाई नहीं हो रही है. उन्होंने कहा कि पानी एक गंभीर समस्या है और हॉस्टल में पानी की वैकल्पिक व्यवस्था पर भी ध्यान दिया जा रहा है. उन्होंने यह भी कहा कि छात्रावास में फंड की कमी के कारण कुव्यवस्था बढ़ती जा रही है.

Intro:पटना के विद्यापति मार्ग स्थित कला एवं शिल्प महाविद्यालय ललित एवं मूर्तिकला में बिहार झारखंड का एकलौता कॉलेज है. यहां इंटर पास छात्र बैचलर ऑफ फाइन आर्ट की पढ़ाई करते हैं और इसका सत्र 4 साल का होता है. इस संस्थान की स्थापना 25 जनवरी 1939 को हुई थी और देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद भी इस कॉलेज के सदस्यों में रहे हैं.


Body:कला एवं शिल्प महाविद्यालय पटना के प्रांगण में में स्थित छात्रों के लिए हॉस्टल की दशा बहुत ही दयनीय स्थिति में है. हॉस्टल के मेन गेट पर बिजली का तार लटका हुआ है और अंदर घुसते ही बिजली की जर्जर तार का खुला जाल है जो किसी बड़े घटने की खुलकर चेतावनी दे रहा है. हॉस्टल में पानी की व्यवस्था काफी खराब है. छात्र बताते हैं कि महीने भर से हॉस्टल का मोटर जला हुआ है जिस कारण पानी की गंभीर परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. हॉस्टल में पीने का शुद्ध पानी तक नहीं है. छात्रों ने बताया कि पीने के पानी या किसी अन्य जरूरी कामों के लिए एक मात्र साधन सप्लाई वाटर है जो अपने समय पर आता है. पानी का इंतजार कर रहे छात्र बाल्टी में पानी भरकर स्टोर करते हैं ताकि पीने और किसी अन्य जरूरी काम के लिए उपयोग में ला सकें. हॉस्टल में साफ सफाई की भी व्यवस्था बहुत खराब है और चारों तरफ गंदगी का अंबार लगा हुआ है.


Conclusion:कॉलेज की मूर्ति कला विभाग के अध्यापक और हॉस्टल के इंचार्ज विनोद कुमार ने बताया कि हॉस्टल में पानी की समस्या की जानकारी उन्हें है और वह पिछले 15 दिनों से पीएचईडी विभाग को लेटर लिख रहे हैं लेकिन विभाग की ओर से कोई कार्रवाई नहीं हो रहा है. उन्होंने कहा कि पानी एक गंभीर समस्या है और हॉस्टल में पानी की वैकल्पिक व्यवस्था पर भी ध्यान दिया जा रहा है. प्रोफेसर विनोद कुमार ने पीएचईडी विभाग को लिखे गए पिछले सभी लेटर को दिखाया.

प्रोफेसर विनोद कुमार ने हॉस्टल में जर्जर तार के हालात पर बताया कि उन्हें खुद हॉस्टल में तार के बिखरे जाल को देखकर शर्म महसूस होती है लेकिन फंड का अभाव है जिस कारण बिजली की वायरिंग सही तरीके से नहीं हो पा रही है. उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय प्रबंधन की ओर से कॉलेज के हॉस्टल के लिए कोई विशेष फंड नहीं दिया जाता है. हॉस्टल में रहने वाले 32 छात्रों से जो 17 सौ रुपये का शुल्क मिलता है उसी से हॉस्टल चलता है जिसमें हॉस्टल का बिजली बिल सफाई कर्मी का भुगतान समेत अन्य खर्चे भी हैं.

हॉस्टल में गंदगी के आलम पर हॉस्टल इंचार्ज प्रोफेसर विनोद कुमार ने बताया कि हॉस्टल के लिए परमानेंट स्वीपर का अभाव है जिस कारण हॉस्टल में गंदगी फैली रहती है. उन्होंने बताया कि उन्हें रोजाना सफाई कर्मियों से दिहाड़ी पर काम करना पड़ता है.
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