पटना: बिहार की राजधानी पटना का पटना नाम होने से पहले कई नाम रहे हैं. कभी इसका नाम पुष्पपुर हुआ करता था. फिर बाद में इसका नाम कुसुमपुर पड़ा, फिर आगे चलकर पाटलिग्राम, फिर पाटलिपुत्र, फिर अजीमाबाद और शेरशाह ने आखिरी बार इसका नाम पटना किया. इतिहासकार बताते हैं कि पुष्पपुर, कुसुमपुर, पाटलिग्राम, पाटलिपुत्र और पटना नाम में काफी समानता है. इन सब का कनेक्शन पाटलि वृक्ष (patli tree identity of patna) से है.
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पटना का नाम था पुष्पपुर: इतिहासकारों की मानें तो वर्तमान का जो पटना है वह हजारों वर्ष पहले एक बड़ा गांव हुआ करता था. यहां पाटलि के काफी वृक्ष थे. पाटलि वृक्ष के पुष्प काफी सुगंधित होते थे और यहां अन्य सारे भी पुष्प खूब होते थे इसलिए इसका नाम पुष्पपुर और कुसुमपुर पड़ा.
पाटलि वृक्ष की बहुलता के कारण नाम पड़ा पाटलिपुत्र : फिर बाद में इसका नाम पाटलिग्राम हुआ और जब यह गांव से नगर के रूप में विकसित हुआ तो इसका नाम पाटलिपुत्र पड़ गया. जिस पाटलि वृक्ष की बहुलता के कारण पटना का नाम पाटलिपुत्र हुआ करता था, वही वृक्ष आज विलुप्त होने के कगार पर है.
![पाटलि के फूल से बनते थे इत्र](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/bh-pat-04-patli-vriksh-pkg-7204423_18012023173452_1801f_1674043492_234.jpg)
किसी ने आज तक नहीं देखा पाटलि का फूल: इस वृक्ष की खासियत यह है कि इस वृक्ष के फूल को आज तक किसी ने नहीं देखा ना ही इसकी कलियां नजर आती हैं. लोग जब सुबह उठकर इस पेड़ के नीचे जाते हैं तो पेड़ के नीचे काफी पुष्प बिखरे रहते हैं, जो खूब सुगंध करते हैं. तब पता चलता है कि यह पुष्प पाटलि वृक्ष के ही हैं.
दुनिया भर में थी पाटलि फूल की डिमांड: पटना के इतिहास के बारे में गहरी जानकारी रखने वाले बिहार म्यूजियम के डिप्टी डायरेक्टर डॉ अशोक सिन्हा ने बताया कि पटना में किसी जमाने में बहुतायत में पाटलि के वृक्ष हुआ करते थे. इसके फूल का पटना से एक्सपोर्ट वर्तमान के वर्मा, श्रीलंका, चीन, अफगानिस्तान, तजाकिस्तान जैसे विभिन्न एशियाई देशों में हुआ करता था. पाटलि के फूल इत्र बनाने के काम में आते थे.
![औषधीय गुण से भरपूर है पाटलि वृक्ष](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/bh-pat-04-patli-vriksh-pkg-7204423_18012023173452_1801f_1674043492_869.jpg)
"इसके अलावा कई औषधीय कार्यों में भी पाटलि के फूल का इस्तेमाल किया जाता था. पाटलि की लकड़ियां बड़े दरवाजे बनाने के काम में आती थी क्योंकि इसका पेड़ एकदम सीधा होता है. आज यह वृक्ष विलुप्त होने के कगार पर है. काफी कम संख्या में इसके पेड़ बचे हुए हैं और वह भी गिने-चुने जगह पर हैं."- डॉ अशोक सिन्हा, डिप्टी डायरेक्टर, बिहार म्यूजियम
इन स्थानों पर दिख जाएंगे आपको पाटलि वृक्ष: पाटलि वृक्ष का एक पेड़ पटना म्यूजियम में मौजूद है, एक राजभवन में है, एक पटना जू में है और दो-तीन पेड़ हार्डिंग रोड के इलाके में है. यह पेड़ विलुप्त हो रहा था. ऐसे में इसके कई छोटे पौधे विभिन्न जगहों पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के द्वारा लगाए गए हैं जो अभी पौधे के आकार में ही है और अधिक बड़े नहीं हुए हैं.
तो.. ऐसे पड़ा था पटना नाम: डॉ अशोक सिन्हा ने बताया कि पाटलिपुत्र से पटना नाम होने के पीछे कहानी है. पटना में एक बहुत बड़ा बंदरगाह था. गंगा, सोन और पुनपुन नदी के किनारे बसे होने के कारण पटना में कई बंदरगाह थे जिसे संस्कृत में पट्टन कहा जाता है. पट्टन को ही अपभ्रंश रूप में पटना कर दिया गया. इसके अलावा यहां प्रमुख देवी स्थल पटन देवी है जिसके नाम पर पटना नाम पड़ा.
इसके अलावा पाटलि वृक्ष कि जो लकड़ियां होती थी वह सीधी और काफी लंबी होती थी जिसे पटना से विभिन्न जगहों के लिए निर्यात किया जाता था और इसे पाटन कहा जाता था. पटना नाम के पीछे जो सबसे अधिकृत तथ्य है, वह शेरशाह सूरी द्वारा इसे पट्टन नाम से पटना किए जाने का ही मिलता है. पाटलिपुत्र से पटना नाम होने के बीच पटना का नाम अजीमाबाद हुआ करता था जो अजीम शाह के नाम पर पड़ा जो औरंगजेब के प्रिय पोते थे.
'विलुप्ति की कगार पर पहुंचे वृक्ष': पटना म्यूजियम के क्यूरेटर डॉ विनय कुमार ने कहा कि बिहार में बहुत कम संख्या में पाटलि के वृक्ष बचे हुए हैं. एक वृक्ष पटना म्यूजियम में है जो तब से है जब से यह म्यूजियम बना है. 1927 में पटना म्यूजियम बना था और उसके पहले से इसके परिसर में यह पाटलि वृक्ष मौजूद है.
पाटलि वृक्ष की ये है खासियत: विनय कुमार ने बताया कि इस वृक्ष की खासियत यह है कि 100 साल से अधिक पुराना वृक्ष होने के बावजूद देखने से नहीं लगता कि 100 साल से अधिक पुराना है क्योंकि इसका फैलाव अधिक नहीं होता और यह एकदम सीधा खड़ा लंबा रहता है. इसकी डालियों का झुकाव जमीन की तरफ होता है. इसके पत्ते विभिन्न सीजन में अलग-अलग रंग बदलते हैं. अभी के समय पाटलि वृक्ष के पत्ते हल्की लालिमा ले चुके हैं और गहरे लाल और भूरे रंग के नजर आ रहे हैं. लेकिन इसके पत्ते का जो मुख्य कलर है वह डार्क ग्रीन है.
"इस वृक्ष में जो फूल होते हैं वह लगभग 6 से 7 सेंटीमीटर लंबे धतूरे के फूल जैसे सफेद होते हैं. यह धतूरे से थोड़ी मोटे होते हैं और इसमें सुगंध रहता है. कभी भी इसके फूल को पेड़ पर नहीं देखा गया है. जब फूल खिलने का समय होता है उस समय पेड़ पर कलियां भी नजर नहीं आती है."- डॉ विनय कुमार, क्यूरेटर, पटना म्यूजियम
6 से 7 सेंटीमीटर लंबी सफेद फूल: पाटलि वृक्ष के फूल रात में खिलते हैं और रात में ही अपने आप जमीन पर गिर जाते हैं. विनय कुमार ने कहा कि वह लोग जब सुबह में पेड़ के नीचे पहुंचते हैं तो देखते हैं कि काफी संख्या में 6 से 7 सेंटीमीटर लंबी सफेद फूल पेड़ के नीचे बिखरे हुए हैं.उन्हें समझ में आ जाता है कि यह फूल इसी पेड़ का है. इसका कोई बीज नहीं होता और इस पेड़ के नीचे आस पास इसका छोटा पौधा भी नहीं उगता है.
औषधीय गुण से भरपूर है पाटलि वृक्ष: ऐसे में कयास लगाया जाता है कि इस पौधे की डालियों को कलम करके ही लगाया जाता है. अभी भी जो कुछ पौधे हाल के दिनों में बिहार सरकार की ओर से लगाए गए हैं, इसी प्रकार कलम तैयार करके लगाए गए हैं. वहीं पटना के राजकीय आयुर्वेद महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ संपूर्णानंद तिवारी ने जानकारी दी कि पाटलि वृक्ष औषधीय उद्देश्य से काफी धनी पौधा माना जाता है. इसके पांचों तत्व पत्ता, मूल (जड़), छाल, फूल और फल जिसे पंचांग कहा जाता है सभी लाभदायक है. उच्च रक्तचाप और हृदय रोग के लिए इसका इस्तेमाल होता है.