पटना: राजधानी पटना से सटे पालीगंज बाजार इन दिनों बन रहे तिलकुट की सौंधी खुशबू से पूरा बाजार गुलजार हो रहा है. मकर संक्रांति पर्व की तैयारीयों को लेकर बाजारों में हर तरफ रंग बिरंगे तिलकुट की दुकानें सजी हैं. मकर संक्रांति में अब कुछ ही दिन बचे हैं. अब लोग तिलकुट की खरीदारी करते नजर आ रहे हैं.
पालीगंज और दुल्हिन बाजार में लगभग एक दर्जन गया के कारीगर दुकान लगाकर ग्राहकों की मांग पर एक से बढ़कर एक तिलकुट की कुटाई करने में जुटे हैं. वहीं बाजारों के हर चौक चौराहों पर तिलकुट की दुकानें सजी हुई हैं. मकर संक्रांति नजदीक आने के कारण कारीगर दिन रात मेहनत कर रहे हैं.
400 से 450 रुपये बिकता है खोवा तिलकुट
ग्रामीण इलाके में गुड़ और तिल से बने तिलकुट की काफी डिमांड रहती है. जो तकरीबन 200 से 280 रुपये किलो बाजार में बिकते हैं. दूसरी ओर चीनी और तिल से बने तिलकुट की भी डिमांड भी रहती है. जिसकी कीमत 180 से 200 रुपये किलो है. इसके अलावे ग्राहकों की फरमाइश पर खोवा और तिल से बने तिलकुट भी कुटे जाते हैं. जो तकरीबन 400 से 450 रुपये प्रति किलो बिकते हैं.
'गया के तिलकुट की डिमांड ज्यादा है. लोग इसे काफी पसंद भी करते हैं क्योंकि गया में जो तिलकुट बनता है उसका स्वाद ही कुछ अलग होता है. इसलिये हम सभी लोग ग्राहकों को स्वादिष्ट तिलकुट उपलब्ध कराने के लिए गया से पालीगंज आये हैं'- चंदन कुमार, तिलकुट दुकानदार
गया के तिलकुट की काफी है डिमांड
तिलकुट दुकानदार ने बताया कि पिछले कई सालों से पालीगंज में गया का प्रसिद्ध तिलकुट बनाकर बेच रहे हैं. ग्राहक काफी पसंद भी कर रहे हैं. तिलकुट भी कई तरह के बनते हैं, खासकर चीनी, गुड़ और खोवा के स्वादिष्ट तिलकुट हैं. जिसकी डिमांड पिछले साल ज्यादा थी. लेकिन इस वर्ष कोरोना के कारण ग्राहक तिलकुट खरीदने कम आ रहे हैं. ऑडर भी कम मिल रहा है. जिससे नुकसान होने का भय बना हुआ है.
पिछले साल की तरह इस बार ज्यादा पूंजी लगा कर विभिन्न तरह के खस्ता खुशबूदार तिलकुट स्टॉक किया था. लेकिन अब मकर संक्रांति में मात्र चार दिन ही बचे हैं. अभी तक जो तिलकुट की बिक्री होनी चाहिये थी, उस हिसाब से नहीं हुई है. कोरोना संक्रमण के चलते सालों से चला आ रहा धंधा मंदा पड़ा है- अशरफ अली, दुकानदार
अशरफ अली कहते हैं- मकर संक्रांति पर कुछ उमीद जगी थी कि तिलकुट की अच्छी बिक्री होगी. जिसके मुनाफे से परिवार का भरण पोषण होगा. लेकिन सब उल्टा पड़ गया. पूंजी फंसने की संभावना ज्यादा लग रही है.
मकर संक्रांति पर्व का इतिहास
बता दें कि मकर सक्रांति के दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व है. मकर संक्रांति को मौसम में बदलाव का सूचक भी माना जाता है. मकर संक्रांति के बाद वातावरण में कुछ गर्मी होने लगती है. फिर बसंत ऋतु के बाद ग्रीष्म ऋतु आती है. वहीं कुछ अन्य कथाओं के अनुसार मकर संक्रांति के दिन देवता पृथ्वी पर अवतरित होते हैं और गंगा स्नान करते हैं. इस वजह से भी गंगा स्नान का विशेष महत्व माना गया है.
तिल और गुड़ खाने से कटता है ग्रह
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन पवित्र नदी में स्नान, दान, पूजा आदि करने से व्यक्ति का पुण्य प्रभाव हजार गुना बढ़ जाता है. इस दिन से खरमास खत्म होने के साथ शुभ माह प्रारंभ हो जाता है. इस खास दिन को सुख और समृद्धि का दिन मन जाता है. साथ ही मकर संक्रांति के दिन तिल और गुड़ खाने से ग्रह भी कटता है.