पटना: कभी पटना का हिंदी साहित्य सम्मेलन देशभर के हिंदी विद्वानों का एक-दूसरे से मिलने का ठिकाना हुआ करता था. लेकिन समय के साथ हालात बदलते चले गए और तस्वीरें धुंधली हो चली. लेकिन एकबार फिर से इसके गौरव को वापस लाने की शुरूआत की गई है. हिंदी साहित्य सम्मेलन के शताब्दी समारोह के मौके पर देश के 100 हिंदी विद्वानों का पटना में जमावड़ा हुआ. जहां उन्हें हिंदी में बेहतरी योगदान के लिए सम्मानित किया गया.
विद्वानों को किया गया सम्मान
कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक के हिंदी विद्वानों को सम्मानित करने के लिए कार्यक्रम आयोजित किया गया. कार्यक्रम के मुख्य अथिति हरियाणा के राज्यपाल सत्यदेव नारायण आर्या ने सभी विद्वानों को शॉल और प्रमाण प्रतीक देकर सम्मानित किया. वहीं आंध्र प्रदेश के प्रो. मोहम्मद इकबाल को भी हिंदी में बेहतर काम करने के लिए सम्मानित किया गया.
हिन्दी की दशा सुधरने की उम्मीद
प्रो. मोहम्मद इकबाल ने कहा कि यह सम्मान पाकर मैं गौरवान्वित महसूस कर रहा हूँ. लेकिन उन्होंने देश में हिंदी के हालात पर चिंता जताते हुए कहा कि जब देश में भाजपा की सरकार आई तो हिंदी के बेहतर काम की उम्मीद जागी थी. लेकिन पांच सालों में कुछ नहीं हुआ. अब फिर से बीजेपी की सरकार बनी है. ऐसे में उम्मीद करता हूं कि हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए काम करेंगे और दक्षिण में भी हिंदी की स्थिति सुधरेगी.
'आजादी की लड़ाई में हिंदी राष्ट्रभाषा के पद पर प्रतिष्ठित थी'
उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल विश्वविद्यायल जौनपुर से सेवानिवृत्त हुए प्रो. सभापति मिश्र ने भी हिंदी के हालात पर दुख व्यक्त किया. उन्होंने कहा कि आजादी की लड़ाई में हिंदी राष्ट्रभाषा के पद पर प्रतिष्ठित थी. उन्होंने कहा हिंदी के साथ छल हुआ और संविधान में उसे राज्यभाषा का दर्जा दिया गया. लेकिन 70 साल के बाद भी हिंदी राष्ट्रभाषा नहीं बन पाई. आज भी हिंदी भाषा का संवर्ग भाषा में प्रचार-प्रसार किया जा रहा है.
'हिंदी अपने ही घर में उपेक्षा की शिकार'
प्रो. सभापति मिश्र ने कहा कि विश्व के पटल पर हिंदी अलग पहचान बना चुकी है. आज हिन्दी पढ़ी भी जा रही है और पढ़ाई भी जा रही है. विश्वभर में लगभग 150 विश्वविद्यालयों में हिंदी के विभाग हैं. लेकिन हिंदी अपने ही घर में उपेक्षा की शिकार है. इसलिए यह बहुत ही चिंता और दुख की बात है.