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विपक्ष ने की बिहार में राइट टू हेल्थ की मांग, सत्ता पक्ष बोला- जरूरत नहीं - बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था

पहले कोरोना काल में अस्पतालों में कुव्यवस्था और अब नीति आयोग की रिपोर्ट ने बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था (Health System of Bihar) की पोल खोल दी है. यही वजह है कि विपक्ष ने सरकार से नीति में बदलाव करते हुए बिहार में राइट टू हेल्थ (Right to Health in Bihar) की मांग की है.

बिहार में राइट टू हेल्थ की मांग
बिहार में राइट टू हेल्थ की मांग
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Published : Mar 3, 2022, 5:28 PM IST

पटना: बिहार में राइट टू हेल्थ (Right to Health in Bihar) की मांग जोर पकड़ने लगी है. विपक्षी विधायकों ने कहा कि कोरोना काल में बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था (Health System of Bihar) की कलई खुल गई. बिहार जैसे बड़े राज्यों के लिए बेहतर स्वास्थ्य व्यवस्था मुहैया कराना सरकार के लिए बड़ी चुनौती है. सभी को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा मिले इसके लिए जरूरी है कि राइट टू हेल्थ लागू हो. हालांकि सत्ता पक्ष का मानना है कि इसकी कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि सूबे में पहले से ही सभी को सुविधाएं दी जा रही हैं.

ये भी पढ़ें: सदन में उठा निजी मेडिकल कॉलेजों में फीस कटौती का मामला, CM ने कहा- 'निश्चित रूप से विचार करना पड़ेगा'

बिहार में चिकित्सकों की कमी: विपक्ष का कहना है कि बिहार में चिकित्सकों की कमी (Shortage of Doctors in Bihar) है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक एक हजार की आबादी पर एक चिकित्सक होना चाहिए लेकिन बिहार में 20,000 की आबादी पर एक चिकित्सक है. वहीं राष्ट्रीय स्तर पर प्रत्येक ग्यारह हजार लोगों पर एक चिकित्सक है. नीति आयोग की रिपोर्ट में भी स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर बिहार निचले पायदान पर रहा है. लचर स्वास्थ्य व्यवस्था का नतीजा कोरोना की दूसरी लहर के दौरान देखने को मिला, जब ऑक्सीजन की कमी के कारण हजारों लोगों ने दम तोड़ दिया.

बिहार में राइट टू हेल्थ लागू हो: आरजेडी विधायक रामानुज प्रसाद ने कहा कि बिहार में चिकित्सा व्यवस्था लचर है. कोरोना संकट के दौरान राज्य में एक परिवार ऐसा नहीं रहा, जिसने अपने सगे-संबंधियों को नहीं खोया हो. राज्य में स्वास्थ्य इंफ्रास्ट्रक्चर और चिकित्सकों की भारी कमी है. लिहाजा सरकार को तत्काल राइट टू हेल्थ लागू करने पर विचार करना चाहिए.

बिहार में स्वास्थ्य माफिया हावी: वहीं, कांग्रेस विधायक डॉ. शकील अहमद ने कहा है कि बिहार में स्वास्थ्य माफिया आम लोगों का शोषण करते हैं. लोगों को बेहतर इलाज नहीं मिल पाता है. अगर राज्य के अंदर बिहार में राइट टू हेल्थ लागू हो जाए और केंद्र की सरकार स्पेशल स्टेटस दे दे तो आम लोगों का जनजीवन सामान्य हो पाएगा.

राइट टू हेल्थ जरूरी: उधर, भाकपा माले विधायक अजीत कुशवाहा ने कहा कि मैं जिस क्षेत्र से आता हूं, वहां की आबादी 12 लाख है और वह मात्र 15 डॉक्टर हैं. ऐसे में आप समझ सकते हैं कि संकट की स्थिति में वहां के लोगों ने कैसे जान बचायी होगी. सरकार को बिहार में राइट टू हेल्थ लागू करना चाहिए, जिससे आम लोगों का जनजीवन सामान्य हो सके.

राइट टू हेल्थ की जरूरत नहीं: हालांकि जेडीयू विधायक डॉ. संजीव कुमार ने कहा है कि बिहार में स्वास्थ्य व्यवस्था बेहतर हुई है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में बेहतर काम किया है. एक तरह से पहले से ही बिहार में राइट टू हेल्थ लागू है. सरकार आम लोगों के स्वास्थ्य को लेकर संवेदनशील है और लगातार सुविधाओं में इजाफा किया जा रहा है.

ये भी पढ़ें: निजी मेडिकल कॉलेजों में फीस कटौती पर सरकार के जवाब से MLA संतुष्ट, कहा- उम्मीद है कार्रवाई जरूर होगी

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पटना: बिहार में राइट टू हेल्थ (Right to Health in Bihar) की मांग जोर पकड़ने लगी है. विपक्षी विधायकों ने कहा कि कोरोना काल में बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था (Health System of Bihar) की कलई खुल गई. बिहार जैसे बड़े राज्यों के लिए बेहतर स्वास्थ्य व्यवस्था मुहैया कराना सरकार के लिए बड़ी चुनौती है. सभी को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा मिले इसके लिए जरूरी है कि राइट टू हेल्थ लागू हो. हालांकि सत्ता पक्ष का मानना है कि इसकी कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि सूबे में पहले से ही सभी को सुविधाएं दी जा रही हैं.

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बिहार में चिकित्सकों की कमी: विपक्ष का कहना है कि बिहार में चिकित्सकों की कमी (Shortage of Doctors in Bihar) है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक एक हजार की आबादी पर एक चिकित्सक होना चाहिए लेकिन बिहार में 20,000 की आबादी पर एक चिकित्सक है. वहीं राष्ट्रीय स्तर पर प्रत्येक ग्यारह हजार लोगों पर एक चिकित्सक है. नीति आयोग की रिपोर्ट में भी स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर बिहार निचले पायदान पर रहा है. लचर स्वास्थ्य व्यवस्था का नतीजा कोरोना की दूसरी लहर के दौरान देखने को मिला, जब ऑक्सीजन की कमी के कारण हजारों लोगों ने दम तोड़ दिया.

बिहार में राइट टू हेल्थ लागू हो: आरजेडी विधायक रामानुज प्रसाद ने कहा कि बिहार में चिकित्सा व्यवस्था लचर है. कोरोना संकट के दौरान राज्य में एक परिवार ऐसा नहीं रहा, जिसने अपने सगे-संबंधियों को नहीं खोया हो. राज्य में स्वास्थ्य इंफ्रास्ट्रक्चर और चिकित्सकों की भारी कमी है. लिहाजा सरकार को तत्काल राइट टू हेल्थ लागू करने पर विचार करना चाहिए.

बिहार में स्वास्थ्य माफिया हावी: वहीं, कांग्रेस विधायक डॉ. शकील अहमद ने कहा है कि बिहार में स्वास्थ्य माफिया आम लोगों का शोषण करते हैं. लोगों को बेहतर इलाज नहीं मिल पाता है. अगर राज्य के अंदर बिहार में राइट टू हेल्थ लागू हो जाए और केंद्र की सरकार स्पेशल स्टेटस दे दे तो आम लोगों का जनजीवन सामान्य हो पाएगा.

राइट टू हेल्थ जरूरी: उधर, भाकपा माले विधायक अजीत कुशवाहा ने कहा कि मैं जिस क्षेत्र से आता हूं, वहां की आबादी 12 लाख है और वह मात्र 15 डॉक्टर हैं. ऐसे में आप समझ सकते हैं कि संकट की स्थिति में वहां के लोगों ने कैसे जान बचायी होगी. सरकार को बिहार में राइट टू हेल्थ लागू करना चाहिए, जिससे आम लोगों का जनजीवन सामान्य हो सके.

राइट टू हेल्थ की जरूरत नहीं: हालांकि जेडीयू विधायक डॉ. संजीव कुमार ने कहा है कि बिहार में स्वास्थ्य व्यवस्था बेहतर हुई है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में बेहतर काम किया है. एक तरह से पहले से ही बिहार में राइट टू हेल्थ लागू है. सरकार आम लोगों के स्वास्थ्य को लेकर संवेदनशील है और लगातार सुविधाओं में इजाफा किया जा रहा है.

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