पटनाः बिहार में नीतीश सरकार स्वास्थ्य व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन का दावा करती रही है. लेकिन सच्चाई इससे बहुत अलग है. राष्ट्रीय औसत के अनुसार एक लाख की आबादी पर 221 डॉक्टर-नर्स होने चाहिए, लेकिन बिहार में केवल 19.74 ही हैं. विशेषज्ञ कहते हैं कि बिहार में आबादी के अनुपात में डॉक्टरों-नर्सों की संख्या और स्वास्थ्य सुविधाएं काफी कम है, यही कारण है लिए यहां से भारी संख्या में लोग इलाज के लिए बाहर जाते हैं.
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जरूरत से 60% कम हैं डॉक्टर्स और नर्स
सीएजी ने हाल ही में विधानसभा में एक रिपोर्ट पेश की है जिससे सरकार के दावों पर सवाल खड़े हो रहे हैं. बिहार में 10 साल में 11 मेडिकल और एक डेंटल कॉलेज खोलने की बात कही गई थी लेकिन अब तक मात्र दो की शुरूआत हुई. 160 नर्सिंग संस्थान चालू होने थे उसमें से केवल दो ही शुरू हुए हैं और एक लाख की आबादी पर महज 19.74 डॉक्टर्स और नर्स हैं. जोकि राष्ट्रीय औसत से 60 फीसदी कम है.
बिहार के वरिष्ठ चिकित्सक और आईएमए के अध्यक्ष डॉक्टर अजय कुमार के अनुसार 'बिहार में एनआरएचएम के अनुसार 38 मेडिकल कॉलेज होने चाहिए थे, लेकिन आधे से भी कम हैं. बिहार में सरकारी और निजी डॉक्टर मिलाकर 40,000 के आसपास होंगे, लेकिन 1,00,000 डॉक्टर चाहिए. पांच मेडिकल कॉलेज अभी वेटिंग में है, लेकिन सरकार के पास फैकल्टी नहीं है. स्वास्थ्य सेवा में सुधार के लिए सरकार ने पॉलिसी में बदलाव किया तो स्थिति बदलेगी लेकिन उसमें भी लंबा समय लगेगा.'
विशेषज्ञ चिकित्सक डॉक्टर बसंत कुमार सिंह का कहना है 'नीतीश सरकार में स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी कई काम हुए हैं और आने वाले दिनों में बिहार में डॉक्टरों की कोई कमी नहीं रह जाएगी. लेकिन अब डॉक्टर सरकारी सेवा की जगह प्राइवेट सेवा में अधिक जाना चाहते हैं और यह सबसे बड़ी समस्या है'
पिछले दिनों विधानसभा में स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे ने विधायकों के सवाल पर यह माना कि बिहार में चिकित्सकों के 6,000 से अधिक पद रिक्त हैं और उसको भरने की प्रक्रिया चल रही है. लेकिन सीएजी की रिपोर्ट के अनुसार 12वीं पंचवर्षीय योजना के अनुसार बिहार में चिकित्सकों की आवश्यकता और उपलब्धता का जो आंकड़ा सामने आया है वह इससे अलग है. यहां डॉक्टर-नर्स की घोर कमी है. एक अच्छी बात है कि बिहार में आयुष चिकित्सकों की कमी नहीं है. 51 हजार 793 आयुष चिकित्सक होने चाहिए लेकिन इससे अधिक 53,918 आयुष चिकित्सक हैं.
स्वास्थ्य विभाग के अनुसार बिहार में स्टाफ नर्स ग्रेड ए का 9,130 पद खाली थे. जिसमें से 5,097 पिछले साल तक भरा गया है और अभी 4,033 पद और रिक्त हैं. इसके अलावा एएनएम के भी काफी पद रिक्त हैं. इन विभागों में बहाली की प्रक्रिया एक साल पहले शुरू हुई थी. जोकि अभी तक पूरी नहीं हुई है.
बिहार के मेडिकल कॉलेजों में शिक्षकों की संख्या जरूरत से 56 फीसदी कम है. सीएजी ने तो अपनी रिपोर्ट में यहां तक कहा है कि बिहार सरकार ने हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए जितनी राशि की व्यवस्था की उसमें से 75फीसदी राशि बच गई. आउटसोर्सिंग एजेंसियों को पेमेंट भी अधिक किया गया.
वहीं, दूसरी तरफ 2030 तक प्रति लाख आबादी पर 550 डॉक्टर और नर्स का लक्ष्य नीति आयोग ने रखा है. ऐसे में बिहार के लिए इस लक्ष्य को पाना आज की परिस्थिति को देखते हुए बड़ी चुनौती है. पीएमसीएच को 5,000 बेड का अस्पताल बनाने के काम शुरू हो गया है. निजी मेडिकल कॉलेज को आमंत्रित किया जा रहा है और सरकार के स्तर से नए मेडिकल कॉलेज का काम चल रहा है. लेकिन डॉक्टरों, नर्स और पैरामेडिकल स्टाफ की कमी सबसे बड़ी समस्या बनी हुई है और आज भी बड़ी संख्या में लोग बेहतर इलाज के लिए दूसरे शहरों में जा रहे हैं. कोरोना के समय भी इस कमी के कारण कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ा है.
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