पटना: मंगलवार को शराबबंदी आंदोलन की अध्यक्ष पूजा भारती छाबड़ा (President of Prohibition Movement Pooja Bharti Chhabra) की अगुवाई में राजस्थान से आई टीम ने सीएम नीतीश कुमार से मुलाकात की (Team from Rajasthan met CM Nitish Kumar) है. इस दौरान मुख्यमंत्री ने 5 सदस्यीय टीम के सदस्यों को बताया कि किस तरह से बिहार सरकार नशामुक्ति उन्मूलन की दिशा में लगातार काम कर रही है. कहा जा रहा है कि बिहार के शराबबंदी मॉड्यूल को राजस्थान सरकार भी अपनाना चाह रही है. जिस वजह से राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Rajasthan CM Ashok Gehlot) के निर्देश पर शराबबंदी के अध्ययन के लिए राज्य सरकार द्वारा गठित पांच सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल दल बिहार भ्रमण पर आया है. साल 2016 से बिहार में शराबबंदी (Liquor Ban In Bihar) लागू है.
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अप्रैल 2016 से शराबबंदी: दरअसल, 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में जीत के बाद नीतीश कुमार ने बिहार में शराबबंदी लागू करने का फैसला लिया था. 1 अप्रैल 2016 से लागू हुए कानून के मुताबिक कोई भी व्यक्ति किसी भी नशीले पदार्थ या शराब का निर्माण वितरण परिवहन संग्रह भंडार खरीद बिक्री या उपभोग नहीं कर सकता है. हालांकि बिहार में जहरीली शराब से मौत के बाद शराबबंदी कानून को लेकर सवाल भी उठे हैं. जब बिहार में शराबबंदी लागू हुई थी, उस समय सरकार को शराबबंदी की वजह से 4000 करोड़ की क्षति हुई थी. उसके बाद यह आंकड़ा धीरे-धीरे बढ़ता गया. उस समय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा था कि सामाजिक नुकसान इससे भी कहीं बढ़कर है. हम अन्य माध्यमों से घाटे की भरपाई करेंगे.
शराबबंदी से महिलाएं खुश: शराबबंदी को लेकर बिहार सरकार पूरे तौर पर आशान्वित है. नीतीश कुमार लगातार समीक्षा भी कर रहे हैं. सरकार का मानना है कि राज्य में कुल 1 करोड़ 1500000 लोगों ने शराब की लत छोड़ी है. बिहार में शराबबंदी लागू होने के बाद से महिलाओं के खिलाफ अपराध में कमी आने की बात कही जाती है. एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक 2016 में जिस साल शराबबंदी लागू हुई थी, उस साल महिलाओं के खिलाफ अपराध के कम मामले आए थे लेकिन उसके बाद के सालों में आंकड़ों में इजाफा हुआ. भारत में महिलाओं के खिलाफ होने वाले कुल अपराधों में बिहार का प्रतिशत 2016 में घटकर 4 फीसदी हुआ था लेकिन फिर वह 2019 में बढ़कर 4.6 प्रतिशत पर पहुंच गया. इस हिसाब से भारत में बिहार राज्य महिलाओं के खिलाफ अपराध में आठवें पायदान पर है.
महिला अपराध में कमी: राज्य में बलात्कार के मामले में भी शुरुआती दौर में कमी आई लेकिन बाद में मामले बढ़ते चले गए. राज्य में महिलाओं के खिलाफ होने वाले घरेलू हिंसा में कमी जरूर दर्ज की गई है. साल दो हजार अट्ठारह में एडीआरआई और डीएमआई ने दो अलग-अलग शोध किए. जिसमें बताया गया कि बिहार में महंगी साड़ियों की खरीद और पनीर की खपत कई गुना बढ़ गई. घर के फैसले में महिलाओं की भूमिका में इजाफा हुआ. ये बात दीगर है कि दोनों शोध मुख्यमंत्री के निर्देश से हुए थे.
शराबबंदी के फायदे: सरकार का दावा है कि शराबबंदी से पहले बिहार में सड़क दुर्घटनाएं ज्यादा होती थी और लोग मौत के मुंह में समा जाते थे लेकिन शराबबंदी लागू होने के बाद से बिहार में सड़क दुर्घटनाओं में कमी आई है. एक आंकड़े के मुताबिक राज्य में हर 1 मिनट में कम से कम 3 लीटर शराब की बरामदगी और 10 मिनट में एक की गिरफ्तारी की जाती है. राज्य में शराबबंदी कानून का उल्लंघन करने के मामले में हजारों लोग जेल के अंदर हैं और लाखों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई जा चुकी है. बिहार के न्यायालय में दो लाख से ज्यादा मामले लंबित हैं. शराबबंदी कानून लागू होने से बिहार में लोग अमन-चैन महसूस कर रहे हैं. शराब पीकर लोग जहां सड़कों पर हंगामा नहीं करते, वहीं महिलाओं के लिए माहौल अनुकूल हुआ है और वह देर रात तक सड़कों पर भ्रमण कर सकती हैं.
शराबबंदी के नुकसान: वहीं, शराबबंदी कानून के कुछ नुकसान भी हुए हैं. शराबबंदी कानून को सख्ती से लागू नहीं किए जाने की वजह से शराब माफियाओं का एक सिंडिकेट खड़ा हो गया और एक बड़ी संख्या में युवा शराब के अवैध कारोबार में लग गए. पुलिस महकमे में भ्रष्टाचार बढ़ गया और पुलिसकर्मी अवैध कमाई में जुट गए. बड़ी संख्या में पुलिसकर्मी निलंबित और बर्खास्त भी हुए. न्यायिक व्यवस्था के लिए शराबबंदी बड़ी चुनौती के रूप में सामने आई. सरकार ने बगैर इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलप किए शराबबंदी कानून लागू किया, जिसका नतीजा हुआ कि आज बिहार के अलग-अलग न्यायालय में दो लाख से ज्यादा केस लंबित हैं. लंबित केसों की संख्या को लेकर कई बार सुप्रीम कोर्ट भी चिंता जाहिर कर चुका है.
शराबबंदी कानून में सुधार की गुंजाइश: राजस्थान की टीम बिहार के दौरे पर है. 5 सदस्य टीम 5 दिनों तक बिहार में रहेगी और अलग-अलग अलग इलाकों का दौरा करेगी. बिहार सरकार के अलग-अलग विभागों के साथ भी टीम बैठक कर शराबबंदी से हुए नुकसान और भरपाई के बारे में जानकारी लेगी. पूजा छाबड़ा के नेतृत्व में टीम ने मुख्यमंत्री से मुलाकात की. सीएम से मुलाकात के बाद पूजा छाबड़ा ने बताया कि हम बिहार के बाद गुजरात के शराबबंदी मॉडल को भी समझने जाएंगे. उन्होंने कहा कि बिहार का शराबबंदी मॉडल बेहतर है और राजस्थान में इस मॉडल को लागू किया जा सकता है. आपको बता दें कि 2019 में भी टीम बिहार के दौरे पर आई थी. हालांकि इस टीम को इस बारे में विशेष जानकारी नहीं है. यहां से मंथन करने के बाद रिपोर्ट राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को सौंपी जाएगी.
जहरीली शराब से अन्य प्रदेशों में भी मौत: बिहार में शराबबंदी के बावजूद जिस तरह से जहरीली शराब पीने से लोगों की मौतें हो रही है, उसको लेकर लगातार सवाल उठ रहे हैं. विपक्ष के साथ-साथ नीतीश कुमार की सहयोगी बीजेपी भी समीक्षा की मांग कर रही है. विपक्ष के कई नेता तो शराबबंदी कानून को वापस लेने की मांग कर चुके हैं. इसके बावजूद राजस्थान की सरकार नीतीश के शराबबंदी मॉडल को क्यों अपनाना चाहती है. इस पर पूजा भारतीय छाबड़ा का कहना है कि जिस राज्य में शराबबंदी लागू नहीं है, वहां पर भी जहरीली शराब से मौत हो रही है. इसका यह मतलब नहीं है कि शराबबंदी कानून लागू नहीं हो सकता है. उन्होंने कहा कि बिहार के बगल में उत्तर प्रदेश के साथ-साथ राजस्थान में भी जहरीली शराब से लोगों की मौतें हुई हैं.
नीतीश कुमार का शराबबंदी मॉडल: जिस तरह से नीतीश कुमार का शराबबंदी मॉडल राजस्थान से आई टीम को पसंद आ रहा है, उससे बिहार का सत्ता पक्ष काफी उत्साहित नजर आ रहा है. बीजेपी विधायक इंजीनियर शैलेंद्र ने कहा कि बिहार का शराबबंदी कानून बेहतर है और तारीफ चारों ओर इसकी तारीफ हो रही है. इसके लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार साधुवाद के पात्र हैं और उनके प्रयासों का ही नतीजा है कि दूसरे राज्य से भी लोग बिहार मॉडल को समझने आ रहे हैं. वहीं, जेडीयू विधायक रिंकू सिंह ने कहा है कि नीतीश कुमार के प्रयासों से बिहार में शराबबंदी कानून लागू हुए हैं और उसका व्यापक असर देखा जा रहा है. दूसरे राज्य भी बिहार मॉडल का अनुसरण कर रहे हैं.
शराबबंदी कानून में कई खामियां: विपक्ष शराबबंदी कानून की सराहना तो करता है लेकिन साथ-साथ संशोधन की बात भी करता है. कांग्रेस विधायक शकील अहमद ने कहा कि मैं शराबबंदी कानून का पक्षधर हूं. राज्य में शराबबंदी लागू होने से उसके सकारात्मक नतीजे सामने आए हैं. राजस्थान से टीम आई है, यहां से अध्ययन कर टीम मुख्यमंत्री को रिपोर्ट सौंपेगी, फिर उसी आधार पर वहां भी शराबबंदी लागू किया जा सकता है. वहीं, आरजेडी विधायक राहुल तिवारी कहते हैं कि शराबबंदी सही मंशा से लागू हुई थी लेकिन कानून में कई तरह की खामियां है. न्यायालयों पर अनावश्यक दबाव बढ़े हैं. न्यायिक व्यवस्था के सामने बड़ी चुनौती आ गई है.
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वहीं, वरिष्ठ पत्रकार अरुण पांडे का मानना है कि बिहार में शराबबंदी सही नियत से लागू की गई थी लेकिन क्रियान्वयन ठीक तरीके से नहीं होने के चलते आज की तारीख में 20000 करोड़ से ज्यादा का काला कारोबार बिहार में हो रहा है. 400000 से ज्यादा की संख्या में पीने वाले लोग पकड़े गए हैं. जेलों में क्षमता से अधिक कैदी आ गए हैं और न्यायिक व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गई है. लिहाजा सरकार को समीक्षा करने की जरूरत है ताकि सख्ती से लागू किया जा सके.
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