पटना: लोकसभा चुनाव 2014 से पहले नीतीश कुमार एनडीए से अलग हो गये. वे नरेंद्र मोदी का नाम प्रधान मंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में घोषित किये जाने से नाराज थे. इसके बाद नीतीश की पार्टी लोकसभा चुनाव में अकेले उतरी. उनकी पार्टी को मात्र दो सीट मिली, जबकि इससे पहले 2009 में एनडीए के साथ चुनाव लड़ने पर 20 सीट पर जीत मिली थी. नीतीश कुमार ने इस हार की जिम्मेवारी लेते हुए मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. तब उन्होंने जीतन राम मांझी पर भरोसा जताया.
मुख्यमंत्री बनाया फिर हटायाः मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सबसे पहले दलित नेता जीतन राम मांझी पर भरोसा किया. 20 मई 2014 को जीतन राम मांझी ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. एक साल भी नहीं बीते कि दोनों नेताओं के बीच ठन गई. लंबे संघर्ष के बाद नीतीश कुमार ने जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री पद से हटाकर खुद मुख्यमंत्री बने. 20 फरवरी 2015 को जीतन राम मांझी ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. इसके बाद उन्होंने हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा नाम से पार्टी बनायी. इस वक्त जीतन राम मांझी एनडीए का हिस्सा हैं.
प्रशांत किशोर को सलाहकार नियुक्त कियाः 2015 के चुनाव में नीतीश कुमार की नजदीकियां चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर से बढ़ी. प्रशांत किशोर ने 2015 के चुनाव में महागठबंधन के लिए काम किया. नीतीश कुमार एक बार फिर मुख्यमंत्री बने. नीतीश कुमार ने प्रशांत किशोर को अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी तक घोषित कर दिया. प्रशांत किशोर को मुख्यमंत्री ने सलाहकार नियुक्त किया. उन्हें राज्य मंत्री का दर्जा दिया गया. बाद में वह पार्टी के उपाध्यक्ष पद पर भी नियुक्त हुए. जल्द ही प्रशांत किशोर से नीतीश कुमार का मोहभंग हो गया. दोनों के रास्ते अलग-अलग हो गए.
"हमारे नेता नीतीश कुमार ने कई नेताओं को जगह दी, लेकिन वह नीतीश कुमार के सिद्धांतों से भटक गए और नीतीश कुमार को धोखा दिया. नतीजतन कार्यकर्ताओं की मनोभावना का ख्याल रखते हुए नीतीश कुमार को वैसे नेताओं को बाहर का रास्ता दिखाना पड़ा."- हिमराज राम, जदयू प्रवक्ता
आरसीपी की तूती बोलती थीः आरसीपी सिंह पर भी नीतीश कुमार ने खूब भरोसा किया. आरसीपी सिंह ने खुद को पार्टी के अंदर नंबर दो की जगह पर स्थापित किया. ऐसा कहा जाता है कि उस वक्त पार्टी के अंदर तमाम फैसले आरसीपी सिंह लिया करते थे. आरसीपी सिंह को नीतीश कुमार ने पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया. राष्ट्रीय अध्यक्ष रहते हुए आरसीपी सिंह ने नरेंद्र मोदी कैबिनेट में मंत्री बनने का फैसला लिया. इसके बाद दोनों नेताओं के बीच दूरियां बढ़ने लगीं. नीतीश ने उनका राज्यसभा का टिकट काट दिया. 6 जुलाई 2022 को आरसीपी सिंह को केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा देना पड़ा. फिलहाल, आरसीपी सिंह भाजपा के जुड़े हैं.
"जदयू एक व्यक्ति की पार्टी है. नीतीश कुमार प्रयोग करते रहते हैं. नीतीश कुमार ने किसी को नंबर दो बनाने की कोशिश नहीं की. जिस किसी को भी पार्टी में जगह दिया उनके पास ना तो जन आधार था ना ही उनकी कोई राजनीतिक हैसियत थी."- प्रेम रंजन पटेल, भाजपा प्रवक्ता
पुराने सहयोगी ललन को सौंपी दी 'तीर': आरसीपी सिंह के बाद नीतीश कुमार ने अपने पुराने सहयोगी ललन सिंह पर भरोसा किया. उन्हें पार्टी की कमान सौंप दी. जुलाई 2021 को ललन सिंह राष्ट्रीय अध्यक्ष बने. उनका कार्यकाल ढाई साल का रहा. 29 दिसंबर 2023 को ललन सिंह ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया. कहा जाता है कि ललन सिंह को लालू प्रसाद यादव के करीब आने के आरोप में हटाया गया. हालांकि, ललन सिंह इस बात से इंकार कर रहे हैं. लेकिन, जिस तरह से आनन फानन में जदयू पार्लियामेंट्री बोर्ड की बैठक बुलायी गयी उससे लगता है कि कुछ तो असहज परिस्थिति उत्पन्न हो रही थी.
"नीतीश कुमार ने कई नेताओं को नंबर दो की हैसियत दी लेकिन जिन्हें जगह दी वो अपने हिसाब से काम करने लगे. नीतीश कुमार को उनसे खतरा महसूस होने लगा. नतीजतन नीतीश कुमार ने उन्हें पद से हटा दिया."- डॉक्टर संजय कुमार, राजनीतिक विश्लेषक
ताम झाम के साथ कुशवाहा को पार्टी में लाया थाः नीतीश कुमार ने उपेंद्र कुशवाहा को बड़े ताम झाम के साथ दोबारा पार्टी में शामिल कराया. उपेंद्र कुशवाहा जदयू पार्लियामेंट्री बोर्ड के अध्यक्ष बने. उन्हें भी नंबर दो की हैसियत में लाने का आश्वासन मिला था. लेकिन, इस बीच नीतीश कुमार एनडीए छोड़कर महागठबंधन में शामिल हो गये. एक कार्यक्रम में उन्होंने तेजस्वी यादव को आगे बढ़ाने के संकेत दिया. इस मुद्दे पर उपेंद्र कुशवाहा ने पार्टी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. बाद में उन्होंने जदयू छोड़ दिया. फिलहाल उपेंद्र कुशवाहा ने राष्ट्रीय लोक जनता दल नाम से अपनी पार्टी का गठन किया है.
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